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अपसक्कति
अपसक्कति अप + √सक्क का वर्त, प्र० पु०, ए. व., दूर चला जाता है, बगल से होकर चला जाता है, विदा हो जाता है तेसञ्च डयमानानं एकेत्थ अपसक्कति, जा. अट्ठ. 4.309; एकेत्थ अपसक्कतीति एको एतेसु ओसक्कित्वा वा एकपस्सेन वा विसुं गच्छति, तदे न्ति व. व. - तित्थिया अपसक्कन्ति पाचि 98 अपसक्कन्तीति अपगच्छन्ति पाचि. अ. 68 न्तो पु. वर्त. कृ. प्र. वि., ए. व. अपसक्कन्तो च अकारणेनेव अन्धबालो महन्तं
अनत्थं अत्तनो अकासी ति रज्ञो
करिएससी ति. पे.
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व. अ. 265 ता स्त्री. भू. क. कृ. तेहि भिक्खूहि सा भिक्खुनी अपसादेतब्बा- अपराक्कताव, पाचि. 234 विकत्वा पू. का. कृ. - मग्गा ओक्कम्माति मग्गतो अपसविकत्वा उदा. अट्ठ. 308; थेरो एकपदनिक्खेपमत्तं अपसक्कित्वा अट्टासि वि. व. अड्ड. 80. अपसम्मज्जति अप + सं + √मज्ज का वर्त., प्र. पु. ए. व. [अपसम्माष्टि], झाडू लगाकर साफ कर देता है, झाडू लगा देता है, स्वच्छ कर देता है; न्ति ब. व. - तमेनं सामिका सम्मज्जनिं गत्वा भिय्योसोमत्ताय अपसम्मज्जन्ति आ. नि. 3(1).18 अपसम्मज्जन्तीति सारधन एकतो दुब्बलधनं
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अपसम्मज्जन्ति, अपसम्मज्जनिसङ्घातेन वातग्गाहिना सुप्पेन वा वत्थेन वा निहरन्ति अ. नि. अड. 3.197. अपसम्मज्जनी स्त्री, अप + सं √मज्ज से व्यु [ अपसम्मार्जिनी], धान को साफ कर देने वाला सूप, झाडू
तमेनं सामिका सम्मज्जनिं गहेत्वा भिय्योसोमत्ताय अपसम्मज्जन्ति, अ० नि० 3 (1).18; अपसम्मज्जनिसङ्घातेन वातग्गाहिना सुम्पेन वा वत्थेन वा नीहरन्ति अ. नि. अड. 3.197. अपसरति अप + √सर का वर्त. प्र. पु. ए. व. [ अपसरति]. बाहर निकल रहा है, निर्गत कर रहा है; - न्तेन वर्त. पु. तृ. वि. ए. व. तेजसापसरन्तेन जनानं पविकासय चू॰ वं. 65.20.
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.कृ..
अपसव्य / अपसब्य त्रि. ब. स. [ अपसव्य]. क. वह, जो वामभाग का नहीं है, दाहिना वामं कलेव सव्यं, अपसव्यं तु दक्खिणं, अभि. प. 719; ख. दाहिनी ओर अवस्थित, दक्षिण-भागीय निद्रुभित्वा अपसव्यतो करित्वा पक्कामि, उदा. 125 अपसव्यतो करित्वाति पण्डिता तादिसं पच्चेकबुद्ध दिस्वा वन्दित्वा पदविखणं करोन्ति, अयं पन अविञ्ञताय परिभवेन तं अपसव्यं कत्वा अत्तनो अपसव्यं अपदक्षिणं कत्वा गतो, अपसब्यामतो तिपि पाठो, उदा. अट्ठ. 238; दिस्वा निट्टुभित्वा अपसब्यं कत्वा दीघरत्तं... ब्याकरित्वा,
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अपसादेति
ध. प. अट्ठ. 1.270; - करण नपुं० [ अपसव्यकरण], किसी की ओर दक्षिणभाग कर लेना तस्स कम्मरसाति... हीळेत्वा निदुभन अपसव्यकरणवसेन पवत्तपापकम्मस्स उदा. अड. 238. अपसाद पु०, [ अप्रसाद], अप्पसाद के अन्त. द्रष्ट.. अपसादना स्त्री, अप + √सद के प्रेर, से व्यु., क्रि. ना. [ अपसादन] किसी को कम करके आंकना, तिरस्कार, अवमूल्यन उस्सादनञ्च ञत्वा अपसादनञ्च ञत्वा नेवुस्सादेय्य म. नि. 3.279, अयं आमिसगिद्धो एवमस्स गेहसितवसेन अपसादनापि नत्थीति अत्थो, म. नि. अट्ठ (भू.प.) 1(1).280 न चैव नाम सधम्मुक्कंसना भविस्सति न च परधम्मापसादना, अ. नि. 1 (1) 249, अपसादित त्रि. अप + √सद के प्रेर. का भू. क. क्र. [ अपसादित], क. दूरीकृत, अस्वीकृत, तिरस्कृत, दूर हटा दिया गया, बहिष्कृत तो पु. प्र. वि. ए. क. एवं अपसादितो च पन पुण्णमुखो पुस्तकोकिलो ततोमेव पटिनिवत्ति, जा. अड. 5.417; ता स्त्री. प्र. वि., ए. व. अथ खो सा गणकी रोहि आजीवकसावकेहि अपसादिता पुनदेव सावत्थिं पच्चागच्छि, पारा 201; ख. निन्दित, डांटाफटकारा गया अय्येन किर महाकरसपेन अय्यो आनन्दो वेदेहमुनि कुमारकवादेन अपसादितो ति, स. नि. 1(2). 197; गहपतीति यत्वा गहपतिना काकोपमाय अपसादितो कुखित्वा एसो ते, ध. प. अट्ठ 1.292. अपसादियमान त्रि अप + √सद के प्रेर के कर्म. वा. का वर्त. कृ. अस्वीकृत या तिरस्कृत किया जा रहा. भर्त्सना किया गया; ना पु०, प्र० वि०, ब० व. ते भिक्खूह अपसादियमाना रोदन्ति, महाव. 99. अपसादेति अप + √सद के प्रेर० का वर्त०, प्र० पु०, ए. व. [अपसादयति] क. दूर हटा देता है, निकाल बाहर करता है, अस्वीकार कर देता है भिक्खु चोदितो चोदकेन चोदकं अपसादेति म. नि. 1.134; अपसादेतीति किं नु खो तुम्हें बालस्स अब्यत्तस्स भणितेन एवं घट्टेति, म. नि. अट्ठ. ( मू.प.) 1 ( 1 ) . 378; ख. निन्दा करता है, डांटता-फटकारता है, अभियोग लगाता है, अपमानित करता है - मं भगवा परिसाय खेळासकवादेन अपसादेति, चूळव. 326; न्ति ब ८. भिक्खू अपसादेन्ति महाव. 99 धम्मयोगा भिक्खु झायी भिक्खू अपसादेन्ति, अ. नि. 2 ( 2 ).69; अपसादेन्तीति घट्टेति हिंसन्ति अ. नि. अड. 3.119 न्तो पु. वर्त. कृ. प्र. वि., - ए. व. किं नाम त्वं वरं दस्ससी ति अपसादेन्तो गाथमाह, जा. अट्ठ. 5.488; न्ता प्र. वि. ब. व. ते सब्बेपि
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