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अपरिमुत्त
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अपरियन्त बहनि च चित्तदोमनस्सानि, थेरीगा. 512; अपरिमितञ्च खयं पत्तं ... खयवयं सम्परसमानो, ध. प. अट्ठ. 1.43; अप. दुक्खन्ति अपरिमाणं एत्तकान्ति परिच्छिन्दितुं असक्कुणेय्यं, अपरियन्तकरं. .... थेरीगा. अट्ठ. 316; परसानुभावं अपरिमितं ममयिदं, अपरियन्त त्रि.. ब. स. [अपर्यन्त], वह, जिसका कोई ओरतयानुदिढ अतुलं दत्वा सङ्घ, पे. व. 256; ... अपरिमितं छोर न रहे, असीम, अन्तरहित - अनन्तो अयं लोको ... मम इदं अपरिमाणं दिब्बानुभावं पस्सा ति अत्तनो सम्पत्ति अपरियन्तोति, दी. नि. 1.20; अनन्तवाति अपरियन्तो, पच्चक्खतो ओ दस्सेन्तो वदति, पे. व. अट्ठ. 97; - सब्बगतोति अत्थो, उदा. अट्ठ. 277; - ता स्त्री., अपरियन्त जलधर त्रि., [अपरिमितजलधर], अत्यधिक जल को से व्यु., भाव. [अपर्यन्तता], असीमता, ओर-छोर से रहित धारण करने वाला, न मापने योग्य जल को रखने वाला - होना - ... संसारस्स अपरियन्ततं कम्मस्सकतञ्च विभावेन्तेन महासमुद्दो अपरिमितजलधरो गोपदे उदकं विय, मि. प. देसितं धम्म सुत्वा ..., पे. व. अट्ठ. 145; ... कम्मन्तानं 266; - आणवरधर त्रि., [अपरिमितज्ञानवरधर], सीमा- अपरियन्तताय अक्खाताय तेन हि त्व व घरावासं वस, रहित या अत्यधिक उत्तम ज्ञान रखने वाला, असीम उत्तम ध. प. अट्ठ. 1.79; - कत त्रि., तत्पु. स. [अपर्यन्तकृत], ज्ञान से युक्त - भिक्खु अपरिमितत्राणवरधरा असङ्गा अतुलगुणा अन्तरहित अथवा अनन्त विपाकों वाला (कर्म)- तं भगवा अतुलयसा ... धम्मचक्कानुप्पवत्तका पञापारमिं गता. मि. ... इमस्स अपरियन्तकतं कम्मं मम सासने पब्बजितस्स प. 311; - दस्सी त्रि., [अपरिमितदर्शिन]. असीम ज्ञान- परियन्तकतं भविस्सति, मि. प. 117; - गोचर त्रि., ब. स. दर्शन से युक्त, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी - अपरिमितदस्सिना गोतमेन, [अपर्यन्तगोचर], अनन्त आलम्बनों या विषयों वाला, प्रत्येक बुद्धेन देसितो धम्मोति, थेरगा. 91; - पञ त्रि., ब. स. विषय को अपना आलम्बन बनाने वाला - अनन्तगोचरन्ति [अपरिमितप्रज्ञ], असीम प्रसार वाली प्रज्ञा से युक्त, अनन्त अनन्तारम्मणस्स सब्बताणस्स वसेन अपरियन्तगोचर प्रज्ञा से युक्त - अनन्तपोति अपरिमितपओ, सु. नि. ध. प. अट्ठ. 2.114; - धनधञ त्रि., ब. स. अट्ठ. 2.122.
[अपर्यन्तधनधान्य], असीम धनसम्पदा वाला - अपरिमुत्त त्रि., परि + मुच के भू. क. कृ. का निषे. पहूतधनधासेति तिण्णं चतुन्न... अत्थाय ... धनधास्स [अपरिमुक्त], वह, जो पूर्ण रूप से मुक्त नहीं हुआ है - वसेन अपरियन्तधनधा , पे. व. अट्ठ. 86; - पारिसुद्धि अपरिमुत्तो सो दुक्खस्माति वदामि, स. नि. 1(2).158; ... स्त्री., कर्म. स. [अपर्यन्तपरिशुद्धि]. पूर्ण विशुद्धि, असीम अपरिमुत्तोव निरया, अपरिमुत्तो तिरच्छानयोनिया, अपरिमुत्तो शुद्धि - एवं गणनवसेन सपरियन्तम्पि पेत्तिविसया, अपरिमुत्तो अपायदुग्गतिविनिपाता, उदा. अट्ठ. अदिट्ठपरियन्तभावञ्च सन्धाय अपरियन्तपारिसुद्धि-सीलन्ति 86.
वुत्तं, विसुद्धि. 1.44; - पारिसुद्धिसील नपुं, कर्म. स. अपरिमेय्य त्रि., परि + मा के सं. कृ. का निषे. [अपरिमेय], [अपर्यन्तपरिशुद्धिशील], शीलों का एक प्रभेद, जिसका
नहीं मापने-जोखने योग्य, वह, जिसका सही-सही स्वरूप पालन यश जैसे दिखलाई देने वाले प्रयोजनों के कारण निर्धारण न किया जा सके, वह, जिसकी संख्या का निर्धारण नहीं किया जाता - ... पञ्चसीलानि-परियन्तपारिसुद्धिसील, न किया जा सके, असीम, विशाल - अपरिमेय्युपादाय, अपरियन्तपारिसुद्धि सील, परिपुण्णपारिसुद्धि सील, पत्थेमि तव सासनं, अप. 1.40; 37; हिमवावापरिमेय्यो, अपरामट्ठपारिसुद्धिसील पटिप्पस्सद्धिपारिसुद्धिसील न्ति, सागरोव दुरुत्तरो, अप. 1.113; अप्परिमेय्ये इतो कप्पे, विसुद्धि. 1.12; उपसम्पन्नानं अपरियन्तसिक्खापदानं-इदं ओक्काककुलसम्भवो, अप. 1.363.
अपरियन्तपारिसुद्धिसील, पटि. म. 37; छट्ठदुके अपरियत्त त्रि., परियत्त का निषे. [अपर्याप्त]. 1. अपर्याप्त, लाभयसञातिअङ्गजीवितवसेन दिट्ठपरियन्तं सपरियन्तं नाम, नहीं पर्याप्त - अथ वा अनलं अपरियत्तं..., म. नि. अट्ठ. विपरीत अपरियन्तं, विसुद्धि. 1.13; - वती स्त्री., (म.प.) 2.122; इदम्पि एत्तकं वत्थु एकस्सेव अपरियत्तं, जा. [अपर्यन्तवती], ओर-छोर या सीमा से रहित, निरर्थक - अट्ठ. 4.154; अप. अपरियन्तं; 2. असंतुष्ट, अतृप्त - अनिधानवतिं वाचं भासिता होति अकालेन अनपदेसं अनलकत्ताति अतित्ता अपरियत्तजाता, स. नि. अट्ठ. 1.49; - अपरियन्तवति अनत्थसंहितं. म. नि. 1.360; अपरियन्तवतिन्ति कर त्रि., सन्तोष या तृप्ति प्रदान न करने वाला - इदं अपरिच्छेद, .... म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(2).227; - सरीरं इदानेव ओलोकेन्तानं अपरियत्तकरं हत्वा इदानेव सिक्खापद त्रि., ब. स. [अपर्यन्तशिक्षापद], वह, जिसके
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