________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अपदान
364
अपधारेसि
3. साहस भरे कुशल कर्मों से, सम्बन्धित कथानक - द्वेनवुते खणस्स दुल्लभत्ता, खु. पा. अट्ठ. 134; - सन्ता उपरिवत्, इतोकप्पे, अपदानं पकित्तथि, अप. 1.257.
ब. व. - ... तं तं कम्मं अपदिसन्तायेव तेमासं वीतिनामेसु. अपदान नपुं.. [बौ. सं. अवदान], खु. नि. के 13वें संग्रह जा. अट्ठ. 1.212; - सेय्यु विधि., प्र. पु., ब. व. - ... अज्ञ का नाम, जिसके अन्तर्गत बुद्धापदान, पच्चेकबुद्धापदान, बाले अब्यत्ते अपदिसेय्यु, महाव. 149; - सि अद्य०, प्र. पु.. थेरापदान के साथ साथ बुद्ध के पूर्वजन्मों के उत्तम एवं ए. व. - कस्मा पन सत्था एवं दूरद्धानं अपदिसी ति, ध. प. त्यागपरायण को, थेरी-अपदान तथा अन्य बौद्ध सन्तों के अट्ठ. 2.118; - सिंसु ब. व. - तत्थ एकच्चे छ सत्थारे पूर्व जन्मों के उत्तम कर्मों के कथानक गाथाओं में हैं, इनमें अपदिसिंसु एतेहि ओक्कन्तमत्ते वूपसमेस्सती ति, खु. पा. से अनेक कथानक थेरगा. अट्ठ. एवं थेरीगा. अट्ठ में भी अट्ठ. 130; - सित्वा पू. का. कृ. - इमिना चतुपच्चयदायका उपलब्ध हैं तथा बौ. सं. के दिव्यावदान, अवदानशतक एवं गहट्ठा पच्चये अपदिसित्वा धम्मिकसमणब्राह्मणेहि ... अवदानकल्पलता में प्राप्त होते हैं; - अट्ठकथा स्त्री., अप. दीपेति, जा. अट्ठ. 3.205; - सितब्ब त्रि., सं. कृ. - की अपेक्षाकृत उत्तरकालीन एवं अपूर्ण अट्ठ, परम्परा के अपदिसितब्बा विसं कातब्बा ववत्थपेतब्बा, विहि ... अनुसार इसका नाम विसुद्धजनविलासिनी है तथा लेखक होति, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).99; अपदिसितब्बाति हेट्ठा आचार्य बुद्धघोष हैं, ग. वं. 59; 69(रो.).
कत्वा वत्तब्बाति, म. नि. टी. (मू.प.) 1(1).164. अपदानसोभन त्रि., तत्पु. स., परिणाम, विपाक या उत्तम अपदिस्सति अप + दिस के कर्म. वा. का वर्त, प्र. पु., ए.
कर्मों से शोभित होने वाला, या प्रकाशित होने वाला - व., सङ्केत किया जाता है, निर्धारित किया जाता है - एत्थ ...., अपदानसोभनी पञआति, अ. नि. 1(1).1243 च दिस्सति अपदिस्सति अस्स अयन्ति वोहरीयतीति देसो,
अपदानसोभनी पाति या पञआ नाम अपदानेन सोभति, पारा. अट्ठ. 2.167. बाला च पण्डिता च अत्तनो अत्तनो चरितेनेव पाकटा अपदीयन्ति अप + दा के कर्म. वा. का वर्त, प्र. पु., ब. होन्तीति अत्थो, अ. नि. अट्ठ. 2.73; तेन सोभतीति व., काट दिए जाते हैं, विनष्ट कर दिए जाते है, छिन्नअपदानसोभनी, अ. नि. टी. 2.70.
भिन्न कर दिये जाते है - अपदीयन्ति दोसा एतेन रक्खीयन्ति, अपदानिय पु., व्य. सं. एक स्थविर का नाम - इत्थं सुदं । लूयन्ति छिज्जन्ति वाति अपदानं, अ. नि. टी. 2.70. आयस्मा अपदानियो थेरो इमा गाथायो अभासित्थाति, अप. अपदेस पु., अप + दिस से व्यु., क्रि. ना. [अपदेश]. 1. 1.257.
अभिव्यक्ति, कथन, सङ्केत - अपदेसो निमित्ते च छले च अपदायन्ति अप + vदा का वर्त, प्र. पू., ब. व., विशोधित कथने मतो, अभि. प. 860; तत्थ इधाति देसापदेसे निपातो, करते हैं, क्लेशों का अवरवण्डन कर देते हैं - ते अपदायन्ति म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).22; तत्थ तेन हीति कारणापदेसो, सोधेन्ति सत्तसन्तानं एते हीति, सुगतापदानानि, तिस्सो अ. नि. अह. 2.195; 2. कारण, बहाना, व्याज - अथ नं सिक्खा , लीन. (दी.नि.टी.) 3.10.
मनुस्सानं.... अपदेसं कत्वा मुहत्तं वीतिनामेत्वा मनुस्सेसु अपदिसति अप + दिस का वर्त., प्र. पु., ए. व., सङ्केतित .... नगरं पाविसि, जा. अट्ट, 3.51; पुनपि थोक गन्त्वा तेनेव करता है, निर्धारित करता है, नियोजित कर देता है - अयं अपदेसेन ओतरित्वा अभिरुहि, ... अकासि ध. प. अठ्ठ. भणे लोके अग्गपुग्गलं सत्थारं सक्खिं अपदिसति, न युत्तं 1.354; आवु सो मोगल्लाना तिआदिना एतस्स दोसं आरोपेतंध, प. अट्ठ. 1.272; सत्थारं अपदिसति, इद्धानुभावमहन्ततापकासनापदेसेन अत्तनो ... दीपेति, उदा. जिनवचनं अप्पेति, उदा. अट्ठ. 15; - सामि उ. पु., ए. व. अट्ठ. 200; - रहित त्रि., तत्पु. स. [अपदेशरहित], बहाना - दिसापामोक्खं आचरियं अपदिसामी ति चिन्तेत्वा मुसावाद रहित, छदम-रहित, हेतुरहित - अनपदेसन्ति अपदेसरहितं. ... दिसापामोक्खाचरियस्स ... पच्चक्खासि, जा. अट्ठ. अ. नि. अट्ठ. 2.259. 4.181; - न्ति प्र. पु., ब. व. - ते सञ्चिच्च दूरे अपदिसन्ति, अपधारेसि अप + vधर का अद्य., प्र. पु., ए. व., अनुचिन्तन पारा. 251; - सथ म. पु., ब. व. - तुम्हे नत्थिधम्म निब्बान किया, मन में धारण किया, सोचा विचारा - सहसा वोहार अपदिसथ नत्थि निब्बानन्ति, मि. प. 252; - सन्तो त्रि., मा पधारेसि, परि. 302; ... पधारेसीति यो एतेसं सहसा वर्त. कृ., प्र. वि., ए. व. - तं कारणभावेन अपदिसन्तो आह वोहारो होति, सहसा भासितं तं मा पधारेसि, मा गहित्थ, यस्मा मम भासितं नाम अतिदुल्लभं अट्ठक्खणपरिवज्जितस्स परि. अट्ट, 203.
For Private and Personal Use Only