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अपत्थनकाल
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अपदान
अपत्थनकाल नपुं॰, पत्थनकाल का निषे. [अप्रार्थनाकाल], निमित्तकम्मन्ति, पारा. 54; अपदेसु अहि नाम सरसामिको इच्छाओं या कामनाओं के अभाव का काल, अनिच्छा या अहितुण्डिकादीहि गहितसप्पो, पारा. अट्ठ. 1.290; मच्छो तृष्णा के अभाव का काल - तस्स मानुसकानं पञ्चन्न केवलं इध अपदग्गहणेन आगतो, पारा. अट्ठ. 1.291; ग. कामगुणान अपत्थनकालो विय तथागतस्स त्रि., चिह्नरहित, बिना निशान वाला, कोई भी चिह्न अपने चतुत्थज्झानिकफलसमापत्तिरतिया वीतिनामेन्तस्स पीछे न छोड़ने वाला - तेसहि जाननं अपदे आकासे हीनजनसुखस्स अपत्थनकालोति, म. नि. अट्ठ. (म.प.) पददस्सनं विय होति. दी. नि. अट्ठ. 3.56; तं बुद्धमनन्तगोचरं 2.156.
अपदं केन पदेन नेस्सथ, ध. प. 179-80; घ. त्रि., कदम अपत्थरति अप+vथर का वर्त.. प्र. पु.. ए. व. [अपस्तृणाति], रखने या पादनिक्षेप के लिये आवश्यक आधार से रहित, आच्छादित करता है, ढक लेता है; - राम/अवत्थराम शून्य, आलम्बनरहित - अपदेन पदं याति, अन्तलिक्खचरो उ. पु., ब. व. - आदाय वत्थं मणिकुण्डलञ्च, हन्त्वान दिजो, जा. अट्ठ. 4.383; ... अपदे आकासे पदं कत्वा याति, साखाहि अवत्थरामा ति, जा. अट्ठ. 4.390; हन्त्वानाति राजानं तदे. अपदे पदं करोन्तो विय, आकासे पदं दस्सेन्तो विय मारेत्वा ... एकमन्ते साखाहि पटिच्छादेमाति, जा. अट्ठ. ...., पारा. अट्ठ. 1.227; अपदं विधित्वा मारचक्खु अदरसनं 4.390; - रिं अद्य०, उ. पु., ए. व. - वाकचीरं गहेत्वान, गतो पापमितो, म. नि. 1.217; यथा मारस्स चक्खु अपदं पादमूले अपत्थरि अप. 1.356.
होति निप्पदं, अप्पतिद्वं निरारम्मणं, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) अपत्थित त्रि., पत्थ के भू. क. कृ. का निषे. [अप्रार्थित], 1(2).67. नहीं चाहा गया, अवाञ्छित, अनिश्चित, कामनाओं का अपदकथा स्त्री., पारा. अट्ठ. के एक खण्ड का शीर्षक, पारा. अविषयीभूत - आवाहविवाहकानं अपत्थितो होति, दी. नि. अट्ठ. 1.290-291. 3.139; - तित्थिक त्रि., मनचाही नारी को प्राप्त न करने अपदान' नपुं.. [बौ. सं. अवदान], शा. अ. छेदन, विखण्डन, वाला - सपत्तबहुलो होति सदा चापत्थितिथिको, सद्धम्मो. व्यवधान या भेदन - दानं वुच्चति अवखण्डनं अपेतं दानतोति
अपदानं अनवखण्डनन्ति अत्थो, विसुद्धि. 1.58; खण्डने अपत्थिय त्रि., पत्थ के सं. कृ. का निषे. [अप्रार्थ्य], इच्छा त्वपदानं च इतिवुत्ते च कम्मनि, अभि. प. 943; अपदान न करने योग्य, नहीं चाहने योग्य - बालो खो त्वंसि माणव, वुच्चति परिच्छेदो, महाव, अट्ठ. 404; ला. अ. 1. साहस भरे यो त्वं पत्थयसि, अपत्थियं, जा. अट्ठ. 4.55; अपत्थियं यो वे पुण्यकार्य या कुशलकर्म, जिनके द्वारा पापमयी प्रवृत्तियां पत्थयसि, चन्दतो ससमिच्छसी ति, जा. अट्ट. 4.76; बालो अथवा अकुशल धर्म छिन्न-भिन्न कर दिए जाएं, खो त्वं असि माणव, यो त्वं पत्थयसे अपत्थियं, ध. प. अठ्ठ. अकुशलधर्मों को काट देने वाले दान आदि उत्तम कार्य या
लक्ष्ण - कम्मलक्खणो पण्डितो, अपदानसोभनी पजाति, अपथ क. नपुं., पथ का निषे॰ [अपथ], अनुपयुक्त या अ. नि. 1(1).124; यं भगवा सद्धस्स सद्धापदानानि भासेय्य, अनिर्धारित मार्ग, कुमार्ग, ख. त्रि., मार्गरहित स्थान, ऐसा अ. नि. 3(2).303; सद्धानं पुग्गलानं अपदानेसु लक्खणेसु. व्यक्ति, जिसके सामने कोई मार्ग न रहे - सुप्पथो तु सुपन्थो अ. नि. अट्ठ. 3.344; बालस्स बाललक्खणानि बालनिमित्तानि च, उप्पथं त्वपथं भवे, अभि. प. 193; आकासो ... वेहायसं बालापदानानि, अ. नि. 1(1).125; बालापदानानीति बालस्स वायुपथो अपथो अनिलजसं, सद्द. 2.442; अपथम्पि पथं अपदानानि, अ. नि. अट्ठ. 2.73; अपदान वुच्चति विख्यात कत्वा, गच्छामि अनिलजसे, अप. 1.385; दुप्पयाताति टुट्ट कम्म, दुच्चिन्तितचिन्तितादीनि च बाले विख्यातानि पयाता अपथे गता, ततो एव अपरद्धमग्गा, वि. व. अट्ठ असाधारणभावेन, तस्मा बालस्स अपदानानी ति, अ. नि.
टी. 2.70; ला. अ. 2. क्लेशों को काट देने वाली शिक्षा - अपद त्रि.. ब. स. [अपद], क, बिना पैरों वाला, रेंगने वाला, तुम्हापदाने विहरं विहरामि अनासवोति, थेरगा. 47: विहरामि सरीसृप - सत्ता अपदा वा द्विपदा वा चतुप्पदा वा बहुप्पदा अनासवोति तुम्हं तव अपदाने ओवादे गतमग्गे पतिपत्तिचरियाय वा ..., इतिवु. 63; अपदाति अपादका, इतिवु. अट्ठ. 248; विहरं.... थेरगा. अट्ठ 1.126; सुगतापदानेसूति सुगतलक्खणेसु ख. नपुं, बिना पैरों वाला प्राणी - ... पाणो अपदं द्विपदं सुगतस्स सासनसम्भूतासु तीसु सिक्खासु, दी. नि. अट्ठ. चतुप्पदं बहुप्पदं ओचरको ओणिरक्खो संविदावहारो सङ्केतकम्मं । 3.11; नापदानं पायति, दी. नि. 3.65 ला. अ.
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