________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अपचेतब्ब
359
अपच्चवेक्खित
थेरगा. 186; अपचितो अपचेय्यानं, तस्स इच्छामि हातवेति, अपच्चक्खाय अ., पच्चक्खाति के पू. का. कृ. का निषे. स. नि. 1(1).204.
[अप्रत्याख्याय]. प्रत्याख्यान न करके त्याग या निषेध न करके, अपचेतब्ब त्रि., अप + चि से व्यु., सं. कृ. [अपचेतव्य], सहारा लेकर, उपेक्षा न करके - ... अपच्चक्खाय दुब्बल्यं पूजार्ह, आदर पाने योग्य, सम्मान प्राप्त करने योग्य - अनाविकत्वा मेथुनं धम्म पटिसे वेय्य अन्तमसो अतिथी खो पनम्हहि सक्कातब्बा गरुकातब्बा मानेतब्बा तिरच्छानगतायपि, पारा. 25; अम्बं अपच्चक्खाय पच्छिमेन पूजेतब्बा अपचेतब्बा, दी. नि. 1.103; 119.
अम्बेन सो पुरिसो दण्डप्पत्तो भवेय्या ति, मि. प. 45; पाठा. अपच्च नपुं.. यत्र तत्र लिङ्गविपर्यासवश पु.. [अपत्य], सन्तान, अप्पचक्खाय. पुत्र, सुत - थापच्चं पुत्तोत्तजो सुतो, अभि. प. 240; अपच्चो अपच्चत्तवचनत्त नपुं, अपच्चत्तवचन का भाव., प्र. वि. से ओक्काकराजस्स, सक्यपुत्तो पभङ्करो, सु. नि. 997; मनुनो भिन्न विभक्तियों में रहना - यत्थ सति पि नामस्स साधक अपच्चाति मनुस्सा, खु. पा. अट्ठ. 98; अक्खरचिन्तका पन वाचकत्ते ... अपच्चत्तवचनत्ता आख्यातपदेन तुल्याधिकरणता "ब्रह्मनो अपच्चं ब्राह्मणो ति वदन्ति, सद्द. 2.357; वा णप्पच्चे, न लमति, सद्द. 1.21; 22. क. व्या. 346.
अपच्चनीकता स्त्री., अपच्चनीक का भाव. [अप्रत्यनीकता], अपच्चक्कोसन नपुं., पच्चकोसन का निषे. [अप्रत्याक्रोशन]. अविरुद्धता अविपरीतता, अप्रतिकूलता, अनुकूलता - सुसील्यं बदले में या पलट कर बुरी भली बातें न कहना - पच्चुपट्टितं अयञ्च सम्मादिवि ... अरियानं अपच्चनीकता एतदकिञ्चि सेय्योति यं खीणासवस्स अक्कोसन्तं वा सद्धम्मसञत्ति अनत्तुक्कंसना अपरवम्भना, म. नि. 2.73; अपच्चक्कोसनं, ध. प. अट्ठ. 2.368.
77; - पटिपत्ति स्त्री., कर्म. स. [अप्रत्यनीकप्रतिपत्ति], अपच्चक्ख त्रि., ब. स. [अप्रत्यक्ष], क. शा. अ. आंखों के अविपरीत आचरण, अनुकूल व्यवहार - तत्थ पटिपादितोति सामने अविद्यमान, आंखों से ओझल, ला. अ. इन्द्रिय-जन्य आभिसमाचारिकवत्तं आदि कत्वा सम्मा अपच्चनीकपटिपत्तिय ज्ञान की पकड़ के बाहर - अपच्चक्खं मनिन्द्रिय, अभि. प. योजितो, म. नि. अट्ठ. (म.प.) 2.3; - पटिपदा स्त्री., 716; अट्ठानमेतं यं बुद्धा अनुपधारेत्वा अपच्चक्खं कत्वा कर्म. स. [अप्रत्यनीकप्रतिपत्], उपयुक्त मार्ग, अनुकूल किञ्चि कथेय्यु दी. नि. अट्ठ. 3.43; ख. व्याकरण के उपाय - सम्मापटिपदाय अनुलोमपटिपदाय विशेष सन्दर्भ में, परोक्ष भूत या परोक्खा विभत्ति का अर्थ, अपच्चनीकपटिपदाय अविरुद्धपटिपदाय अन्वत्थपटिपदाय वक्ता द्वारा अपनी आंखों से न देखा गया पूर्वकाल - धम्मानुधम्मपटिपदाय, महानि. 10; अपच्चनीकपटिपदायाति अपच्चक्खे अतीते काले परोक्खा विभत्ति होति, क. व्या. न पच्चनीकपटिपदाय, अपच्चत्थिकपटिपदाय, महानि. अट्ठ. 419; अपच्चक्खे परोक्खाय अतीते इति हि लक्खणे, सद्द. 1.53; 3.816; मो. व्या. 6.6; - कत त्रि., [अप्रत्यक्षकृत], अपच्चवेक्खना/अपच्चवेक्खणा स्त्री., पच्चवेक्खणा का आंखों के सामने नहीं लाया गया या उपस्थित न किया निषे. [अप्रत्यवेक्षण], अपरीक्षण, अज्ञान, सूक्ष्म जांच पड़ताल गया, असाक्षात्कृत - असच्छिकतानन्ति अपच्चक्खकतानं. न करना, मोह - यं अआणं अदस्सनं ... अपरियोगाहणा ध. स. अट्ठ. 262; - कम्म त्रि., ब. स. [अप्रत्यक्षकर्मन्], असमपेक्खणा अपच्चवेक्षणा अपच्चक्खकम्म ... मोहो साक्षात् अनुभव न रखने वाला, प्रत्यक्ष अनुभव से रहित - ... अविज्जायोगो ... अकुसलमूलं-इदं वुच्चति असम्पजज रूपे खो, वच्छ, ... रूपसमुदये ... रूपनिरोधे अप्पच्चक्खकम्मा. पु. प. 127; धम्मानं सभावं पति न अपेक्खतीति स. नि. 2(1).260; - कारी त्रि., [अप्रत्यक्षकारिन], अपनी ___अपच्चवेक्खणा, ध. स. अट्ठ. 294. सूझबूझ से काम न करने वाला - पण्डिता नाम तादिसेन अपच्चवेक्खित त्रि., पच्चवेक्खति के भू. क. कृ. का निषे. परपत्तियेन अपच्चक्खकारिना सद्धिं न वसन्तीति वत्वा तस्स [अप्रत्यवेक्षित], सूक्ष्म रूप से अपरीक्षित, गहराई के साथ न अनाचारं पकासेन्तो, जा. अट्ठ. 5.220; तस्मा यदिपि तत्थ जांचा गया - तस्स ता विनसुन्ति तस्स ता एवं
अपच्चक्खकारीनम्पि विञ्जनं कवा... नत्थियेव, उदा. अट्ठ. 321. अपच्चवेक्खन्तस्स सीहपरिपन्थादितो अरक्खियमाना अजा अपच्चक्खात त्रि., पच्चक्खात का निषे. [अप्रत्याख्यात], सीहपरिपन्थादीहि विनस्सिंसु. जा. अट्ठ. 3.356; - परिभोग अप्रतिषिद्ध, अनिषिद्ध, अपरित्यक्त - दुब्बल्याविकम्मञ्चेव पु., कर्म. स., किसी वस्तु का बिना जांच-पड़ताल के होति सिक्खा च अपच्चक्खाता, पारा. 26.
उपयोग, परीक्षण के बिना ही उपभोग - लित्तं परमेन
50.
For Private and Personal Use Only