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अन्वड्डमासे/अन्वद्धमासे
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अन्वागत
अन्वड्डमासे/अन्वद्धमासे अ.. सप्त. वि., प्रतिरू. निपा., तस्सन्वयो सावको भावितत्तो. इतिवु. 58; गाथास तस्सन्वयोति क्रि. वि., उपरिवत् - .... अन्वद्धमासे पण्णरसे पुण्णमाये । तस्सेव सत्थु पटिपत्तिया धम्मदेसनाय च अनुगमनेन तस्सन्वयो उपोसथे पच्चयं नागं आरुय्ह दानं दातुं उपागमिन्ति ..., अनुजातो. इतिवु. अट्ठ. 233; ग. त्रि., केवल स. उ. प. सद्द. 1.243; अन्वद्धमासे पन्नरसे, .... चरिया. 391; तत्थ । के रूप में, अनुगामी., अनुपालक, परिचर., काया., चित्त०, अन्वद्धमासेति अनुअद्धमासे, चरिया. अट्ठ. 77.
तद, साक्यकुल०, स्नेह. के अन्त. द्रष्ट.; घ. पु., तर्क या अन्वत्थ/अन्वट्ठ त्रि., अनु + अत्थ से व्यु. [अन्वर्थ], अर्थ हेतुविद्या के सन्दर्भ में, तार्किक या युक्तियुक्त सम्बन्ध, के अनुरूप, आशय या अभिप्राय के अनुरूप, उपयुक्त, तर्कसङ्गत नैरन्तर्य, हेतु और साध्य की सतत सहवर्तिता, विध सटीक - अन्वट्ठ यत्थ नाम पितं लङ्कातिलक इति, चू. वं. नात्मक प्रतिज्ञा - चत्तारि आणानि-धम्मे आणं, अन्वये आणं, 78.53; - नामधेय्य त्रि., ब. स., लक्षण या प्रकृति के .... दी. नि. 3.181; अन्वये आणन्ति चत्तारि सच्चानि अनुरूप नाम वाला - अन्वत्थनामधेय्यत्ता लक्खुय्यानं ति पच्चक्खतो दिस्वा यथा इदानि, .... दी. नि. अट्ठ. 3.184; संमतं, चू. वं. 79.4; - पटिपत्ति स्त्री., कर्मस. के पनायस्मतो आकारा, के अन्वया, येनायस्मा एवं वदेसि, [अन्वर्थप्रतिपत्ति], उपयुक्त, आचारण या अनुकूल व्यवहार म. नि. 1.400; अन्वयाति अनुबुद्धियो, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) - तत्थ अन्वत्थपटिपत्तियाति सयं पच्चासीसितलद्धपटिपत्तिया 1(2).280; के ... आकारा के अन्वया ति. म. नि. टी. (मू.प.) निब्बानलद्धभावेनाति, अत्थो, चूळनि. अट्ठ.8; - पटिपदा 1(2).280; नामन्वयेन आगच्छु, ये चञ सदिसा सह, दी. स्त्री., कर्म. स. [अन्वर्थप्रतिपत्]. उपयुक्त मार्ग, उपयुक्त । नि. 2.192; ङ. पु., व्यतिरेक के साथ प्रयुक्त, साधन या उपाय - सम्मापटिपदाय ... अन्वत्थपटिपदाय अनुमानवाक्य में विधायक-प्रतिज्ञा, स्वीकारात्मक प्रतिज्ञा या ..., सीलेसु परिपूरिकारिताय इन्द्रियेसु गुत्तद्वारताय भोजने सहमति, अंगीकारसूचक सामान्यपद - ... च गाथाद्वयेन मत्तञ्जताय, महानि. 10; अन्वत्थपटिपदायाति अत्थअनुगताय ब्यतिरेकतो अन्वयतो च विभावेति, पे. व. अट्ठ. 197; - पटिपदाय, उपरूपरि वडिताय पटिपदाय, महानि. अट्ठ. 50%; संसग्ग पु., तत्पु. स. [अन्वयसंसर्ग], विधानात्मक तार्किक - सज्ञा स्त्री., कर्म. स. [अन्वर्थसंज्ञा], अर्थ या स्वभाव के सम्बन्ध की स्थापना - इति चेति चे सद्दो अन्वयसंसग्गेन अनुरूप नामकरण - थेरिकेति इदं ..., पचुरेन परिकप्पेतीति आह ..., लीन. (दी.नि.टी.) 2.237; - यागत
अन्वत्थसआभावतो पन थिरे सासने थिरभावप्पत्ते, थिरोहि त्रि०, तत्पु. स. [अन्वयागत], वंशपरम्परा से प्राप्त, पूर्वजों से .... समन्नागतेति अत्थो, थेरीगा. अट्ट. 6.
प्राप्त - तेन अन्वयागतम्पि भोगसम्पत्तिं दीपेति, सु. नि. अट्ठ. अन्वदेव अ., निपा. [अन्वगेव], बाद में, पीछे से, अनुकूल 2.103. रूप में - एत्थ अनुअन्दति अनुबन्धतीति अन्वदि, अन्वदि एव अन्ववेक्खन नपुं., अनु + अव + Vइक्ख से व्यु., केवल स. अन्वदेवा ति कितविग्गहो सन्धिविग्गहो च वेदितब्बो, सद्द. उ. प. के रूप में प्राप्त [अन्ववेक्षण], जांच-पड़ताल, परीक्षण 2.377; पुब्बङ्गमा अकुसलानं धम्मानं समापत्तिया अन्वदेव - पातिमोक्खसंवरो इन्द्रियानरक्खणं, पच्चयान्ववेक्खन अहिरिकं अनोत्तप्पं, इतिवु. 26; अन्वदेव राजा महासुदस्सनो जीवसुद्धि एव च, सद्धम्मो, 449. सद्धि चतुरङ्गिनिया सेनाय, दी. नि. 2.129; अनुदेवाति अनु अन्वहं अ., क्रि. वि. [अन्वह, प्रतिदिन - अन्वहं पूजयी एव, द-कारो पदसन्धिवसेन आगतो, सारत्थ. टी. 1.341; बोधिं, पटिमायो च कारयिं चू. वं. 41.29; 73.24; अवसि पाठा. अनुदेव.
सुगतधातुं अन्वहं वन्दमानो, दा. वं. 4.8. अन्वय पु., अनु + Vइ से व्यु. [अन्वय], क. पु., शा. अ. अन्वगच्छि अनु + आ + गम का अद्य., प्र. पु., ए. व., पीछे जाना, अनुगमन, साहचर्य, मेलजोल, ला. अ. पीछे-पीछे गया - पुरिसो च ते पिहितो अन्वगच्छि, पे. व. वंशपरम्परा, वंशावली, बाद में सतत रूप से चल रही 742(गा.). शृंखला - कुलं वंसो च सन्तानाभिजना गोत्तमन्वयो, अभि. अन्वागन्त्वान अनु + आ + Vगम का पू. का. कृ., बाद में प. 332; 1090; यस्स पन आदिकालतो पति अन्वयवसेन पुनः वापस आकर - अन्वागन्वान दूसेय्य, भुञ्ज भोगे सो एव जनपदो निवासो, सु. नि. अट्ट. 103; ख. पु./त्रि., कटाहकाति, ध. प. अट्ठ. 2.207. अनुगामी, अनुसरण करने वाला, आगे चलकर या बाद में अन्वागत त्रि., अनु + आ गिम का भू. क. कृ. [अन्वागत], अनुसरण करने वाला - सत्था हि लोके पठमो महेसि, क. कर्म. वा. में, किसी के द्वारा अनुगत या रक्षित,
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