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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अन्ध 347 अन्धकार अन्धवेणूपमतं सद्दमत्तेनेव तानि गहेत्वा ..., अ. नि. अट्ठ. नि. अट्ट, 20; तत्थ अन्धकाति काळमक्खिकानं अधिवचनं. 2.155; - वेस पु., तत्पु. स. [अन्धवेश], अन्धे मनुष्य की पिङ्गलमक्खिकानन्ति एक, सु. नि. अट्ठ. 1.28. वेशभूषा, अन्धे मनुष्य का रूप- ... वधभयेन अन्धवेसं गहेत्वा अन्धविन्द पु., व्य. सं., मगध-क्षेत्र के एक प्राचीन नगर या पण्णसालं अगमासि, जा. अट्ठ, 3.370. ग्राम का नाम - तेन ... महाकस्सपो अन्धकविन्दा राजगह अन्ध' पु., ए. व. एवं ब. व. में प्राप्त, व्य. सं. [अन्ध्र/ उपोसथं आगच्छन्तो ... वूळ्हो अहोसि, महाव. 137; तेन आन्ध्र], आधुनिक आन्ध्र प्रदेश, उस प्रदेश के निवासी तथा .... वेलट्ठो कच्चानो राजगहा अन्धकविन्दं अद्धानमग्गप्पटिपन्नो वहां की भाषा - मिलक्खकं नाम यो कोचि अनरियको होति, महाव. 300; भगवता अन्धकविन्दे दसानिसंसे अन्धदमिलादि, पारा. अट्ठ. 1.203; -किय त्रि., आन्ध्र क्षेत्र सम्परसमानेन यागु अनुञआता, तदे. 384; - ब्राह्मण पु.. में नियुक्त या उस क्षेत्र से सम्बन्धित व्यक्ति - अन्धे नियुत्तो अन्धकविन्द नामक गांव का ब्राह्मण - सकटसतेहि ... अन्धकियो, क. व्या. 335; - भासा/कभासा स्त्री., तत्पु. ओकासं ... गावुतप्पमाणेपि ... अनुबन्धन्ति च स. [आन्ध्रभाषा], आन्ध्र जनपद की भाषा, तमिल भाषा/तेलुगु अन्धकविन्दब्राह्मणादयो विय, उदा. अट्ठ. 88; - वग्ग पु., भाषा - ये अन्धकभासादीसु अञ्जतराय, तेसं ताय ताय अ. नि. 2(1) के पञ्चकनिपात के एक वग्ग का नाम, अ. भासाय, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).147; - रट्ठ/करट्ठ नि. 2(1).128-133; - सुत्त नपुं. स. नि. 1(1) के सगाथवग्ग नपुं.. कर्म. स. [आन्ध्रराष्ट्र], आधुनिक काल का आन्ध्र के अर्न्तगत ब्रह्मसंयुत्त के दूसरे वग्ग के तीसरे सुत्त का राज्य - महिंसकमण्डलं अन्धरठ्ठन्ति वदन्ति, वजिर. टी. 25. शीर्षक, स. नि. 1(1).181-2. अन्धक पु., [आन्ध्रक], क. आन्ध्र प्रदेश का निवासी - माता अन्धकवेण्ड पु., व्य. सं. [अन्धकवृष्णि], देवगब्मा के एक दमिळी, पिता अन्धको, ... सचे पितुकप्पं पठमं सुणाति, सेवक का नाम, जो नन्दिगोपा का पति था - नन्दिगोपा अन्धकभासं भासिस्सति, विभ. अट्ठ366; अन्धका मुण्डका __... परिचारिका अहोसि, अन्धकवेण्डो नाम दासो तस्सा सब्बे, कोटला हनुविन्दका, अप. 1.394; ख. बौद्ध धर्म की सामिको आरक्खमकासि, जा. अट्ट, 4.71; कण्हदीपायनासज्ज, अट्ठारह शाखाओं या निकायों में से एक - अन्धका नाम इसिं अन्धकवेण्डयो, जा. अट्ठ. 5.259; - दासपुत्त पु., पुब्बसेलिया, अपरसेलिया, राजगिरिया, सद्धत्थिकाति इमे तत्पु. स., देवगमा के वे दस पुत्र, जिनका पालन पच्छा उप्पन्ननिकाया, कथा. अट्ठ. 153; सब्बे धम्मा अन्धकवेण्ड तथा उसकी भार्या नन्दिगोपा ने किया था - सतिपट्टाना ति लद्धि, सेय्यथापि एतरहि अन्धकानं, तदे; - मनुस्सा सन्निपतित्वा अन्धकवेण्डदासपुत्ता दस भातिका रष्टुं कट्ठकथा स्त्री., तत्पु. स., बौद्धधर्म की अन्धक शाखा के विलुम्पन्तीति राजङ्गे उपक्कोसिसु, जा. अट्ठ. 4.73; - पुत्त विनय पर लिखी गयी एक प्राचीन अट्ठकथा, जो वर्तमान में पु., तत्पु. स., उपरिवत् - यं वे पित्वा अन्धकवेण्डपुत्ता अप्राप्त है - अन्धकट्ठकथायं पन परतीरतो नदि ओतरित्वा समुद्दतीरे परिचारयन्ता, जा. अट्ठ. 5.17; अन्धकवेण्डपुत्ताति दस्सनुपचारतो दारुनि, पण्णनित्वा मग्गित्वा आनेति, अनापत्ति, दस भातिकराजानो, जा. अट्ठ. 5.18. वजिर. टी. 327; - कट्ठकथापाठ पु.. तत्पु. स., अन्धक- अन्धकार' पु./नपुं.. [अन्धकार], अंधेरा, अन्धापन - शाखा की प्राचीन अट्ठकथा में प्राप्त पाठ - अन्धकारो तमो नित्थि तिमिसं तिमिरं मतं, अभि. प. 70; तेन विकालगामप्पवेसनसिक्खापदेपि कत्थचि उपचार समयने होति अन्धकारो अन्धकारतिमिसा, दी. नि. 3.63-643; अतिक्कमन्तस्सा ति पाठो दिस्सतीति, सो अन्धकारोति तमो, दी. नि. अट्ठ. 3.44: अन्धकारा विधसिता. अन्धकट्ठकथापाठतो गहितोति आचरियो, वजिर. टी. 326; - अप. 1.90; ..., अन्धकार व खायति, थेरगा. 1037; भाषा स्त्री., तत्पु. स., आन्ध्र प्रदेश की भाषा - अन्धकभासं अन्धकारेन ओनद्धा, तण्हादासा सनेत्तिका, चूळव. 465%; भासिस्सति, विभ. अट्ठ. 366; - रट्ठ नपुं., कर्म स... पुरिसो अन्धकारा वा अन्धकारं गच्छेय्य, स. नि. 1(1).112; वर्तमानकालीन आन्ध्र प्रदेश, अन्य प्राचीननाम अहिंसक एतम्हा अन्धकारा अओ अन्धकारो महन्ततरो च भयानकतरो मण्डल या महीशासक मण्डल भी - महिंसकमण्डलं नाम चाति, स. नि. 3(2).515; अन्धकारे वा तेलपज्जोतं धारेय्य, अन्धकरटुं यं यक्खपुररलृ ति वच्चति, सा. वं. 11(ना.). पारा. 6; अन्धकारेति काळपक्खचातुइसी अवरत्त-घनवनसण्डअन्धकमकस पु. , द्व. स., काली मक्खियां एवं मच्छर - मेघपटलेहि चतुरङ्गे तमासि, पारा. अट्ठ. 129. अन्धकमकसा न विज्जरे, कच्छे रुळहतिणे चरन्ति गावो, सु. अन्धकार त्रि., अंधीभूत, धुंधला, अस्पष्ट, अंधा, अज्ञानी, For Private and Personal Use Only
SR No.020528
Book TitlePali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Panth and Others
PublisherNav Nalanda Mahavihar
Publication Year2007
Total Pages761
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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