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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अनोत्थत न करोति नामाति, ध॰ स॰ अट्ठ 412; अनोतप्पीति निब्भयो किलेसुप्पत्तियो कुसलानुप्पत्तितो च भयरहितो स. नि. अड्ड 2.146; अनोत्तापिस्स पुरिसपुग्गलस्स ओत्तप्पं होति परिनिब्बानाय... म. नि. 1.56; 58; परे अनोत्तापी भविस्सति, मयमेत्थ ओतापी भविस्सामा ति सल्लेख करणीयो म. नि. 1.54; अनोत्तप्पिनो अनोत्तप्पीहि सद्धिं संसन्दन्ति समेन्ति, स. नि. 1 (2).147. अनोत्थतत्र अव थर के भू. क. कृ. का निषे. [ अनवस्तृत ] वह, जो किसी के द्वारा ढक नहीं दिया गया है, वह जिसके ऊपर कुछ फैला नहीं दिया गया है, अनाच्छादित अनज्झापन्नोति तहाय अनोत्थतो 7 319 अपरियोनद्धो दी. नि. अड. 3.178. अनोत्थरण त्रि / नपुं, ओत्थरण का निषे [अनवस्तरण]. अनाच्छादन, फैलाव या विस्तार का अभाव, ऊपर में फैलाव का न रहना यथा हि लोके उदकोघेन अनोत्थरणड्डानं थलो ति युच्चति सद्द 2.438. अनोत्थरणीयत्त नपुं, अव + थर के सं. कृ. (ओत्थरणीय) के निषे का भाव [अनवस्तरणीयत्व], किसी के द्वारा आच्छादित अथवा दुष्प्रभावित न होने योग्य रहने की अवस्था एवं किलेसोधेन अनोत्थरणीयत्ता पब्बज्जा निब्बानञ्च थलेति दुच्चति, सद्द 2.438. अनोदक त्रि. द्रष्ट अनुदक के अन्त (पीछे). अनोदरिक त्रि. ओदरिक का निषे [अनौदरिक] वह, जो पेटू न हो, अत्यधिक भोजन न करने वाला, सदा पेट को भरने में न लगा रहने वाला अनोदरिकस्स भावो अनोदरिकत्तं कथा 362; एवं अनोदरिकत्तं इच्चादि, सद. 3.791; त्त नपुं. भाव [ अनौदरिकत्व] पेटूपन से मुक्त होने की अवस्था, अधिक भोजनप्रियता का अभाव, अल्पाहारता अप्पाहारो होति अनोदरिकत्तं अनुयुत्तो, अ. नि. 2 ( 1 ).112; अनोदरिकत्तन्ति न ओदरिकभावं अमहग्घसभावं अनुयुक्तो 31. f. 31. 3.41. अनोदिस्स अ अब + दिस के पू. का. कृ. ( अवदिस्स / ओदिस्स) का निषे [ अनुद्दिश्य] किसी विशिष्ट व्यक्ति या वस्तु के सन्दर्भ के बिना, सामान्य रूप से, सार्वभौम रूप से अनोदिस्सेव पञ्ञते. यावदत्थेव भिक्खुना, विन. वि. 1199; अनोदिस्स अदस्सनेन अनभिसङ्घतं कोचि अन्तरायं करोति किं परस्स दिन्नेनाति, अयं अदिट्ठन्तरायो नाम, मि. प. 155. - अनधि अनोदिस्सक त्रि, ओदिस्सक का निषे. [अनुद्देसिक], किसी एक विशेष को उद्देश्य में न रखने वाला, सामान्य, सार्वभौम, अविशिष्ट प्रकृति वाला ओदिस्सकअनोविस्सकदिसाफरणानहि अञ्ञतरवसेन मेत्तं उग्गण्डन्तस्सापि व्यापादो पहीयति दी. नि. अड. 2.332; म. नि. अट्ठ. (मू०प०) 1 (1).293; कं नपुं. क्रि. वि. सामान्य रूप से, अविशिष्ट रूप से अनोदिस्सकमोपात खणतो होति दुक्कदं उत्त. वि. 125 भिक्खुना नाम सब्बसत्तेसु ओदिस्सकानोदिस्सकवसेन मेत्ता भावेतब्बा, जा. अड. 2.50. सत्था पञ्ञत्तासने निसीदित्वा अनोदिस्सकं कत्वा "कामवितक्कं वितक्कयित्था" ति अवत्वा ..... जा. अट्ठ. 4.102; - नय पु०. कर्म. स. [अनुद्देसिकनय], सामान्य - कथन की पद्धति, किसी एक धर्म को विषय न बनाकर सर्वसंग्राहक पद्धति एवरूपादिब्बसम्पत्ति नाम पुञ्ञकम्मवसेनेवाति ओदिस्सकनयेन वत्वा पुन अनोदिस्सकनयेन दस्सेन्ती "सुखं अकतपुञ्जानन्ति गाथमाह वि. व. अ. 77. अनोधि क. त्रि०, ब० स० [ अनवधि], शा. अ. बिना किसी अवधि या सीमा वाला, सम्पूर्ण रूप वाला, ला. अ. अर्हत्व का वह मार्ग, जिसमें बिना किसी अवधि या सीमा के समस्त क्लेशों का अनवशेष रूप से प्रहाण कर दिया जाता है। ओधीति हेट्ठा तयो मग्गा वुच्चन्ति अरहत्तमग्गो पन किञ्चि किलेसे अनवसेसेत्वा पजहति तस्मा अनोधीति वुच्चति, म. नि. अड. (मू.प.) 1 ( 1 ). 182 ख. अ. क्र. वि., किसी प्रकार की सीमा निर्धारित न करके, अपवाद के बिना, सम्पूर्ण रूप में पूरी तरह से सब्बे सहारा अनोधिं कत्वा कुक्कुलाति, कथा. 177; छ, भिक्खवे, आनिसंसे सम्पस्समानेन अलमेव भिक्खुना सब्बसद्वारेसु अनोधि करित्वादुक्खसज्ञ उपद्वापेतुं अ. नि. 2(2).143: अनोखिं करित्वाति एतकाव सद्वारा अनिच्या न इतो परे ति एवं सीमं मरियाद अकत्वा, अ. नि. अट्ठ 3.143 - जिन त्रि. ओघिजिन का निषे पृथक्जन या अज्ञानी जन जिन्होंने असीम रूप से या पूर्णरूप से क्लेशों का प्रहाण नहीं किया है - चक्खुना रूपं दिस्वा उप्पज्जति उपेक्खा बालस्स मूळ्हरस पुथुज्जनस्स अनोधिजिनस्स अविपाकजिनस्स...... म. नि. 3.266; ध० स० अट्ठ 238; तस्स तस्स अपायगमनीयकिलेसोधिस्स अनवसेसता जितत्ता खीणासवों निप्परियायतो ओधिजिनो नाम तदभावतो पुथुज्जनो निप्परियायतोव अनोधिजिनो नाम, म. नि. टी. (उप. प.) " 3.167. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only -
SR No.020528
Book TitlePali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Panth and Others
PublisherNav Nalanda Mahavihar
Publication Year2007
Total Pages761
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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