________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अनोतत्त
318
अनोत्तप्पी/अनोतापी छद्दन्तो च कुणालो च वुत्ता मन्दाकिणीत्थिय, अभि. प. 679; अनोतिण्ण त्रि., ओतिण्ण का निषे. [अनवतीर्ण], सामने सरानीति अनोतत्तादीनि महासरानि खीयन्तियेव, जा. अट्ठ. अविद्यमान, अविचाराधीन, अप्रासङ्गिक - ओतिण्णे वा अनोतिण्णे 4.450; सेय्यथिदं अनोतत्ता, सीहपपाता, स्थकारा कण्णमुण्डा, वा वत्थुस्मिं तन्ति ठपनवसेन वचनं अनुसासनी, अ. नि. ..., ता उस्सुस्सन्ति विसुस्सन्ति, न भवन्ति, अ. नि. अट्ठ. 1.56; अनुसासनीति ओतिण्णे वत्थुस्मि, महाव. अट्ठ. 2(2).238; अनोतत्तम्हा महासरा पभवन्तीति, सद्द. 3.702; 251. यत्थ आयामेन वित्थारेन गम्भीरताय च पण्णासयोजनप्पमाणो अनोत्तप्प नपुं., अव + Vतप के सं. कृ. ओत्तप्प का निषे. दियड्डयोजनसतपरिमण्डलो अनोतत्तदहो कण्णमुण्डदहो [अनवत्राप्य], मानसिक घबड़ाहट या उद्वेग का अभाव, रथकारदहो, छद्दन्तदहो कुणालदहो मन्दाकिनीदहो भय का अभाव, अविवेक, अत्रास - अग्गितो सलभो विय सीहपपातदहोति सत्ता महासरा पतिहिता, उदा. अट्ठ. 244; ततो अनुत्तासलक्खणं अनोत्तप्पं, अभि. ध. वि. 103; ... - उदक नपुं, तत्पु. स. [बौ. स. अनवतप्तोदक], अनवतप्त, अहिरिकबलं होति, अनोत्तप्पबलं होति, लोभो होति..... इमे नामक जलाशय या झील का जल - ... पूरेत्वा धम्मा अकुसला, ध. स. 365; ... अस्मिमानो आसयो, अनोत्तप्पं अनोतत्तउदकञ्च नागलतादन्तपोणञ्च गहेत्वा तेसं सन्तिक आसयो, उद्धच्चं आसयो, महानि. 379; पुब्बङ्गमा अकुसलानं आगन्वा आह, सु. नि. अट्ठ. 2.132; ... इतो पट्ठाय धम्मानं समापत्तिया अन्वदेव अहिरिकं अनोत्तप्पं .... इतिवु. अनोतत्तउदकेन अत्थे सति तुम्हाकं आगमनकिच्चं नत्थि, 26; कतमे छ? अस्सद्धियं, अहिरिक, अनोत्तप्पं, कोसज्ज .... वत्वा पक्कामि, ध, प. अट्ठ. 2.359; - त्तोदक नपुं.. मुट्ठस्सच्च, दुप्पञ्जतं - इमे खो, ... अनागामीफलं उपरिवत् - अनोतत्तोदक कझं उत्तम हरिचन्दनं पारा. सच्छिकातुन्ति, अ. नि. 2(2).124; बालदुकनिदेसे बालेसु अट्ठ. 1.53; - त्तोदकाज पु., तत्पु. स., अनवतप्त झील के अहिरिकानोत्तप्पानि पाकटानि, मूलानि च सेसानं जल को ढोने वाले पात्र या उन पात्रों के बोझ -- बालधम्मानं, ध. स. अठ्ठ. 412; - बल नपुं, तत्पु. स. अनोतत्तोदकाजेसु सङ्घस्स चतुरो अदा, म. वं. 5.84; [अनवत्राप्यबल], अनवत्राप्य-नामक अकुशल चैतसिक का अनोतत्तोदकाजं च गङ्गासलिलमेव च, म. वं. 11.30 - दह बल - अनोत्तप्पमेव बलं अनोत्तप्पबलं, ध. स. अट्ठ. 289; - पु., कर्म. स. [अनवतप्तहूद], अनवतप्त-नामक हिमालय मूलक त्रि.. ब. स. [अनवत्राप्यमूलक], अनवत्राप्य-नामक की एक झील या बड़ा जलाशय - सीतोदक उप्पलिनि सिवं अकुशल चैतसिक पर आधारित - दसमे अनोत्तप्पमूलका नदिन्ति अनोतत्तदहतो निक्खन्तनदिमुखं सन्धाय वदति, तयो, सु. नि. अट्ठ. 2.126; - मूलकसुत्त नपुं., स. नि. के वि. व. अट्ठ. 110; - दहउदक नपुं., तत्पु. स. एक धातुसंयुत्त के दूसरे वग्ग के सुत्त का शीर्षक, स. नि. [अनवतप्तहूदोदक]. अनवतप्त-नामक झील का जल - ..... 1(2).146-147; - प्पानुपतित त्रि०, तत्पु. स. सामणेर, सत्था अनोतत्तदहउदकेन पादे धोवितुकामो, कुटं [अनवत्राप्यानुपतित], बुरे कामों को निर्भय होकर करने के आदाय किर उदकं आहराति आह, ध. प. अट्ठ.2.360; - काम में आ पड़ा हुआ - ... अनोत्तप्पानुपतितन्ति? न हेवं दहपिट्ठ नपुं.. तत्पु. स. [अनवतप्तहूदपृष्ठ], अनवतप्त वत्तब्बे ..... कथा. 337. झील का तट या किनारा - एतस्मिं अनोतत्तदहपिढे अनोत्तप्पी/अनोतापी त्रि., अव + Vतप से व्यु., ओतापी पन्नगनागराजेन सद्धिं मम सङ्गामो भविस्सति, .... ध. प. का निषे. [अनवत्रापिन्], वह, जो पापकर्मों में उद्वेग या अट्ठ. 2.358; - पानीय नपुं., तत्पु. स. [अनवतप्तपानीय], मानसिक व्याकुलाहट का अनुभव न हीं करता है, बुरे कर्मों अनवतप्त-नामक झील का पानी - अनोतत्तपानीयत्थाय को करने में निर्भय एवं लज्जारहित रहने वाला, अविवेकी आगतो भविस्सति, ध. प. अट्ट, 2.357; - पिट्ठि स्त्री., तत्पु. - जिगुच्छति नाहिरिको, पापा गूथाव सूकरो, न भायति स., अनवतप्त झील का तट - ... अनोतत्ते कीळिस्सामा ति अनोत्तप्पी, सलभो विय पावको ति, अभि. ध. वि. 103; अनोतत्ततित्थं अगच्छिंसु, जा. अट्ठ.2.225; पाठा. तित्थं; - अहिरिको अनोत्तप्पी, तं जञा वसलो इति, सु. नि. 133; वापी स्त्री., कर्म. स., श्रीलङ्का के एक सरोवर का नाम - नास्स पापजिगुच्छनलक्खणा हिरी, नास्स उत्तासनतो अनोतत्तवापीतो भागीरथिं च निग्गतं. म. वं. 79.49; - सर उब्बेगलक्खणं ओत्तप्पन्ति अहिरिको अनोत्तप्पी, सु. नि. पु./न., कर्म. स., अनवतप्त नामक सरोवर - अनोतत्तस अट्ठ. 145; अहिरिकोयं, भिक्खवे, अनोत्तापी पमत्तो होति, अ. रासन्ने, रमणीये सिलातले, अप. 1.328; उदा. अट्ठ. 213. नि. 3(2),121; अहिरिको हि अनोतप्पी च न किञ्चि अकुसलं
For Private and Personal Use Only