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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुबुद्ध 273 अनुब्रूहित एकत्ते अनुबुज्झनट्ठो अभिञ्जय्यो, पटि. म. 17; एकत्ते अनुबोधेति अनु + Vबुध के प्रेर. का वर्त, प्र. पु., ए. व. अनुबुज्झनटुं बुज्झन्तीति बोज्झङ्गा, पटि. म. 297. [अनुबोधयति], - अनुबोधेन्ति प्र. पु., ब. व. अनुबुद्ध' त्रि., अनु + Vबुध का भू. क. कृ. [अनुबुद्ध], क. [अनुबोधयन्ति], अनुबोध कराते हैं, ज्ञान कराते हैं - जान लिया गया, समझा हुआ - अनुबुद्धा इमे धम्मा, अनुबोधेन्तीति- बोज्झङ्गा, पटि. म. 292. गोतमेन यसस्सिना, दी. नि. 293; सचे मग्गं अनुबुद्ध, खेमं अनुब्बजति/अनुवजति अनु + Vवज का वर्त, प्र. पु., ए. अमतगामिनं, स. नि. 1(1).145; सुणन्तु धम्म विमलेनानुबुद्धं व. [अनुव्रजति], साथ-साथ या सहारे से चलता है, अनुगमन स. नि. 1(1).163; म. नि. 1.227; विमलेनानुबुद्धन्ति इमे करता है; - जामि वर्त., उ. पु., ए. व. [अनुव्रजामि]. सत्ता रागादिमलानं ... सम्मासम्बुद्धेन अनुबुद्ध चलता हूँ, अनुगमन करता हूँ - एवम्पहं कामपङ्के व्यसनो, चतुसच्चधम्म सुणन्तु ताव भगवाति याचति, स. नि. अट्ठ. न भिक्खुनो मग्गमनुब्बजामि, जा. अट्ठ. 4.357; मग्गन्ति 1.175; म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(2).81; ख. वह, जिसके द्वारा तुम्हाकं ओवादानुसासनीमग्गं नानुब्बजामि पब्बजितुं न जान लिया गया है या जिसे अनुबोध प्राप्त हो चुका है - सक्कोमि, जा. अट्ठ. 4.358; - जिस्साम भवि., उ. पु.. सचे त्वं एवं अनुबुद्धो, मा सावके उपनेसि, ... सावकानं ब. व. [अनुव्रजिष्याम], हम अनुसरण करेंगे, चलेंगे - धम्म देसेसि, म. नि. 1.414; ... अनुबुद्धोति सचे त्वं एवं ते तं अनुवत्तिस्सामाति ते मयम्पि तुम्हेयेव अनुवत्तिस्साम, अत्तनाव चत्तारि सच्चानि अनुबुद्धो, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) अनुपब्बजिस्सामाति अत्थो, “अनुवजिस्सामा तिपि पाठो, 1(2).308; अनुविदितो ति अनुबुद्धो वुच्चति, सु. नि. अट्ठ. तस्स अनुगच्छिस्सामाति अत्थो, दी. नि. अट्ठ. 2.234%; 2.140. - जे विधि., प्र. पु., ए. व. [अनुव्रजेत्], अनुसरण करे, अनुबुद्ध' पु., [अनुबुद्ध], बुद्ध के अधीन रहने वाला भिक्षु चले - साहं कथं नानुवजे पजानन्ति, जा. अट्ठ. 4.439. शिष्य, वह, जिसने बुद्ध के ज्ञान-प्राप्ति के उपरान्त ज्ञान अनुब्बत त्रि., [अनुव्रत], निष्ठावान्, श्रद्धालु - ता स्त्री., पाया है, बुद्ध का ज्ञानी शिष्य - अनुबुद्धेन धम्मसेनापतिना निष्ठावती या साध्वी नारी, अनुकूल रहने वाली भार्या - सद्धि मन्तेतीति, जा. अट्ठ. 1.390; निब्बानं परमं वदन्ति यस्स भरिया तुल्यवया समग्गा, अनुब्बता धम्मकामा पजाता, ... पच्चेकबुद्धा च अनुबुद्धा चाति, इमे तयो बुद्धा निब्बानं जा. अट्ठ. 4.68; अनुब्बताति अनुवत्तिता, जा. अट्ठ. 4.70; तं ...., ध. प. अट्ठ. 2.136; अनुबुद्धपच्चेकबुद्धसुतबुद्धख्येसु वा चाहं नातिमामि, राम सीतावनुब्बता, जा. अट्ठ. 7.331. बुद्धेसु सेट्ठोति बुद्धसेट्ठो, खु. पा. अट्ठ. 143; स. उ. प. के अनुब्बिग्ग त्रि., उविग्ग का निषे., तत्पु. स. [अनुद्विग्न]. रूप में अननु, बुद्धानु, सानु के अन्त. द्रष्ट... वह, जिसका मन उद्विग्न या बेचैन न हो, शान्त मन अनुबुद्धि स्त्री., [अनुबुद्धि], अनुमान, निष्कर्ष, तर्क- वाला, व्याकुलता-रहित - अरगतोपि... अभीतो अनुब्बिग्गो धम्मन्वयोति पच्चक्खञाणसङ्घातस्स धम्मस्स अनुनयो अनुमानं. अनुस्सकी ... मिगभूतेन चेतसा विहरामीति चूळव. 320; उदा. 90; अनुबुद्धीति अत्थो, म. नि. अट्ठ (म.प.) 2.251; अन्वयाति अच्छम्भितो अनुबिग्गो अतिरोचति सदेवकेति, मि. प. 308. अनुबुद्धियो, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(2).280. अनुब्बिलावितत्त/अनुप्पिलावितत्त नपुं.. उब्बिलावितत्त अनुबोध पु., [अनुबोध], ज्ञान, स्पष्ट अन्तर्दृष्टि, केवल स. का निषे. [बौ. सं. अनौदविल्यत्व], चित्त में दर्प या अहंभाव उ. प. के रूप में ही प्रयोग में प्राप्त, अननु. (अज्ञान), मग्गानु. न रहने की अवस्था, आनन्द भरी उत्तेजना के न रहने की (मार्ग का ज्ञान), सच्चानु. (सत्य का ज्ञान) के अन्त. द्रष्ट.. दशा - महन्ते इस्सरिये ... अनुप्पिलावितत्तं ततियं साध. अनुबोधन नपुं.. [अनुबोधन], ज्ञान कराना, जागरूक करना, जा. अट्ठ. 3.411. प्रत्यभिज्ञान की ओर ले जाना - एकत्ते अनुबोधनट्ठो अभिजेय्यो अनुबूहन नपुं.. [अनुबृहण], वृद्धि, सुदृढीकरण, पुष्टि - पटि. म. 17; अनुबोधनडेन बोज्झङ्गा, पटि. म. 292. .... सम्मापटिपत्तिया अनुबूहनं विसुद्धि. 1.61; 78; अपिस्सूति अनुबोधि स्त्री., [अनुबोधि], बोधिज्ञान, धर्मों के विषय में अनुबूहनत्थे निपातो, दी. नि. अट्ठ. 2.50; म. नि. अट्ठ. आन्तरिक ज्ञान; - पक्खिय त्रि., ब. स. [अनुबोधिपक्षीय], (मू.प.) 1(2).78. बोधिपक्षीय धर्म, बोधिज्ञान के अङ्ग - एकत्ते अनुबोधिपक्खियट्ठो अनुब्रूहित अनु + Vब्रूह का भू. क. कृ. [अनुवृहित], बढ़ा अभिज्ञय्यो, पटि. म. 17; अनबोधिपक्खियद्वेन बोज्झङ्गा, हुआ, सुदृढ़ीकृत, उगा हुआ, केवल स. उ. प. में ही प्रयुक्त पटि. म. 292. द्रष्ट. उपेक्खानुब्रूहित के अन्त.. For Private and Personal Use Only
SR No.020528
Book TitlePali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Panth and Others
PublisherNav Nalanda Mahavihar
Publication Year2007
Total Pages761
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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