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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अनुष्पादनिय अनुप्पन्नुप्पन्नान अकुसलानं अनुप्पादनपहानवसेन अनुपपन्नुपपन्नान ..... उदा. अट्ठ. 248. अनुष्पादनियत्र उप्पादनिय का निषे [अनुत्पादनीय]. उत्पादन न करने योग्य (निर्वाण का पद) अनुष्पादनीयं महाराज, निब्बानं, तस्मा न निब्बानस्स उप्पादाय हेतु अक्खातोति. मि. प. 251. www.kobatirth.org अनुष्पादा अनुपादा का अप अनुपादा के अन्त, द्रष्ट.. अनुष्पादातु अनुप्पदातु के स्थान पर अप अनुप्पदातु के अन्त. द्रष्ट.. " अनुष्पादान नपुं. द्रष्ट अनुष्पदान के अन्त अनुष्पादित त्रि, उ + पद के प्रेर के भू. क. कृ. का निषे [ अनुत्पादित] उत्पन्न नहीं कराया गया अत्तनो केसादीसु अनुप्यादितरूपावचरझानोति अत्थो ध. स. अड्ड ... 271 235. अनुप्पादेति द्रष्ट अनुष्पदेति के अन्त " अनुष्पिय' नपुं. व्य. सं. द्रष्ट, अनुपिय के अन्त अनुष्पिय' त्रि/ क्रि. वि. [अनुप्रिय] इच्छित मनोरम, मनपसन्द, मन को अच्छा लगने वाला अनुप्पियञ्च यो आह, अपायेसु च यो सखा दी. नि. 3.142: अनुष्पियभाणीति अनुप्रियं भणति दी. नि. अनु. 3.119माणी त्रि.. [अनुप्रियभाणी] मनपसन्द बात बोलने वाला, मीठी वाणी बोलने वाला - अनुपियभाणी अमितो मित्तपतिरूपको वेदितब्बो, दी. नि. 3.141; अनुपियभाणीति अनुधियं भणति दी. नि. अ. 3.119 - भाणिता स्त्री. भाव० [ अनुप्रियभाणित्व], मन को लुभाने वाली बात बोलने की प्रकृति या दशा, चाटुकारिता, चापलूसीपन अनुपियभाणिताति पच्चयवसेन पुनप्पुनं पियवचनभणना, महानि, अदु. 340 अनुष्पियभाणिता चाटुकम्यता मुग्गसूप्यता परिभट्यता, विभ. 404; अनुप्रियभाणिताति राच्चानुरूपं वा पुनपुन पियभणनमेव विभ. अट्ठ. 456. अनुप्पिलवन नपुं. उप्पिलवन का निषे [ अनुत्प्लवन], ऊपर की ओर न उछलना, उछलकूद का अभाव, सुख में आनन्दित हो अत्यधिक न इतराना सुखे अनुपिलवद्वेन पण्डितो महानि, अड्ड. 134. अनुष्पीळ त्रि.. उप्पीळ का निषे. [अनुत्पीड] उत्पीड़न से मुक्त, विपत्तियों या बाधाओं से मुक्त, अकण्टक - खेमट्ठिता जनपदा अकण्टका अनुप्पीला दी. नि. 1.120: सुखी अनुष्पील पसास मेदिनिं... जा. अट्ठ. 3.392. अनुबन्धति अनुकरण नपुं., अनु + √फर से व्यु.. कर्तृ. कृ. [अनुस्फुरण]. चारों ओर फैली हुई चमक या प्रकाश, अत्यधिक फैली हुई दमक अथवा आग की चिनगारियों का प्रकाश अनुकरणडेन महा अनुभावो अस्साति महानुभावो अ. नि. अड. 3.108 समन्ता सतयोजनानुफरणच्चिवेगा. मि. प. 149. अनुकरति अनु + √फर का वर्त. प्र. पु. ए. व. [ अनुस्फुरति ]). फैलता है, प्रसृत होता है, चारों ओर व्याप्त हो जाता है, सभी ओर फैल जाता है तिलफलमत्तोपि आहारो जिव्हाग्गे ठपितो सब्बकायं अनुकरति, दी. नि. अट्ठ 2.36 - रि अद्य., प्र. पु. ए. व. चारों ओर भर गयी पूवखण्डं मुखे तपितमत्तमेव सत्तरसहरणीसहस्सानि अनुफरि ध. प. अड्ड. 1.78. अनुफुसायति अनुफुस के ना. था. का वर्त, प्र. पु. ए. व. चारों ओर फैला सा देता है, अतिरिक्त रूप में विखेर देता है यस्मा च वरसती देवो, हिमञ्चानुफुसायति जा. अट्ठ. For Private and Personal Use Only 5.231. अनुबद्ध / अनुबन्ध' त्रि, अनु + √बन्ध का भू० क० कृ० [ अनुबद्ध], शा. अ. पीछे की ओर से बांधा हुआ, ला. अ. क. पीछे अथवा आगे विद्यमान साथ में जुड़ा हुआ या संलग्न अनुबन्धे जरामरणे, तस्स घाताय घटिततब्ब थेरी 495; देवलोके मनुस्से वा अनुबन्धा इमे गुणा अप. 1. 339; अनुबन्धो होति ओतारापेक्खो ओतारं अलभमानो. स. नि. 1 ( 1 ) 144 म. नि. 3.334; मनुस्सा उच्चासदा पण्डोलभारद्वाजं पिडितोपिडितो अनुबन्धा, चूळव. 229 स. नि. 2 ( 2 ) . 176; तथा खो पनरस चारों च विहारो च अनुबुद्धो होति., स. नि. 2 ( 2 ). 188; पाठा. अनुबुद्धो ; ला. अ. ख. अनुसृत, पीछा किया जा रहा जनपदमनुस्सेहि अनुबद्धा पलायमाना अरज्ञ पविसित्वा, उदा. अट्ठ. 145; पाठा. अनुबद्धा. लगातारपन अनुबन्ध' पु० [ अनुबन्ध] क. अनुप्रबन्ध निरन्तरता, पपञ्चौ नाम वुच्चति अनुबन्धो, नेत्ति, 33; ख. केवल व्याकरण के विशेष सन्दर्भ में - प्रत्ययों में प्रतीकात्मक रूप से जुड़े हुए अक्षर, जिनका वास्तविक प्रयोग में लोप हो जाता है - अनुबन्धो तु पकत्तानिवत्ते नस्सनक्खरे, अभि. प. 980 अनुबन्धो, मो. व्या. 1.18; च-ज इच्चेतेसं क. व्या. 625. होन्ति णानुबन्धे पच्चये परे, अनुबन्धति अनु + √बन्ध [ अनुबध्नाति] किसी के का वर्त. प्र. पु. ए. व. कदमों के पीछे लग जाता है, उत्प्रेरित करता है, पीछे लग जाता है, मानसिक तौर पर - - ... Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ate
SR No.020528
Book TitlePali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Panth and Others
PublisherNav Nalanda Mahavihar
Publication Year2007
Total Pages761
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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