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अनुपरिवत्तियन्ति
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रूपविपरिणाममञ्जथाभावा रूपविपरिणामानुपरिवत्ति विआणं होति, म. नि. 3.276; सङ्घारविपरिणामानुपरिवत्ति विज्ञआणं होति, स. नि. 2(1).16. अनुपरिवत्तियन्ति अनु + परि + Vवत के कर्म. वा. का वर्त, प्र. पु., ब. व., अनुकूल रूप में रूपान्तरित किये जाते हैं, उचित रूप में चर्या में उतारे जाते हैं - ते भावियन्ति
चेव अनुपरिवत्तियन्ति च, अ. नि. अट्ट, 2.335; - यमान त्रि., वर्त. कृ. - चत्तारोमे, भिक्खवे, काला सम्मा भावियमाना सम्मा अनुपरिवत्तियमाना अनुपुब्बेन आसवानं खयं पापेन्ति, अ. नि. 1(2).161. अनुपरिवत्तेन्ता अनु + परि + Vवत का वर्त.. कृ. प्र. वि., ब. क. [अनुपरिवर्तयन्त:], बार-बार दुहराते हैं, स्वाध्याय करते हैं, आवृत्ति करते हैं - परिवत्तेन्तीति सज्झायन्ति वाचेन्ति च, अथ वा ... वेदं अनुपरिवत्तेन्ता होमं करोन्ता
जपन्ति , पे. व. अट्ठ. 86.. अनुपरिवारेति अनु + परि +v के प्रेर. का वर्तः, प्र. पु., ए. व. [अनुपरिवारयति], क. चारों ओर से घेर लेता है, चारों ओर से घेराबन्दी कर देता है, ख. अनुगमन करता है, अनुरूप हो जाता है, अपने में समाविष्ट कर लेता है - त्वा पू. का. कृ. - उक्खेपकेहि वारियमानानम्पि तेसं तं अनुपरिवारेत्वा चरणभावञ्च सत्थ आरोचेसि, जा. अट्ठ. 3.429; - थ अनु., म. पु., ब. क. - मा ... उक्खित्तकं भिक्खुं अनुवत्तित्थ अनुपरिवारेथा ति, महाव. 458; - य्याम विधि., उ. पु., ब. व. - दण्डवाकराहि समन्ता सप्पदेसं अनुपरिवारेय्याम, म. नि. 1.211; - सु अद्य., प्र. पु., ब. व. - उक्खित्तकं भिक्खं अनुवत्तिंसु अनुपरिवारेसुं, महाव. 458. अनुपरिवेणं अ., क्रि. वि. [अनुपरिवेणं], परिवेण या कुटी के
आसपास - थेरो अनुपरिवेणं गन्वा, अ. नि. अट्ठ. 1.53... अनुपरिवेणियं अ., क्रि. वि., अनुपरिवेण से व्यु. [अनुपरिवेणिक], उपरिवत् - गच्छानन्द, अवापुरणं आदाय अनुपरिवेणियं भिक्खूनं आरोचेहि, महाव. 100; न, भिक्खवे, अनुपरिवेणियं पातिमोक्खं उद्दिसितब्ब, महाव. 134. अनुपरिसक्कन नपुं., अनु + परि + सक्क का क्रि. ना., चतुर्दिक गमन, परिरक्षण - आयाचनहेतु वा थोमनहेतु वा पञ्जलिका अनुपरिसक्कनहेतु वा, स. नि. 2(2).300-301. अनुपरिसक्केय्य अनु + परि + vसक्क का विधि., प्र. पु., ए. व., चारों ओर जाए, साथ रह कर रक्षण करे - आयाचेय्य थोमेय्य ... अनुपरिसक्केय्य, स. नि. 2(2).300.
अनुपलेप अनुपरिहरित्वा अनु + परि + शहर का पू. का. कृ., चारों
ओर से आच्छादित करके - सा तं सालं अनुपरिहरित्वा .... विटभिं करेय्य, म. नि. 1.388. अनुपरिहरेय्य अनु + परि + हर का विधि. का प्र. पु., ए. व. [अनुपरिहरेत], चारों ओर से घेर ले, समाविष्ट कर ले, आच्छादित करे - सा तं सालं अनुपरिहरेय्य, म. नि. 1.388. अनुपरोध पु., उपरोध का निषे. [अनुपरोध], सहमति, अविपरीतता, अनुकूलता, मेल-मिलाप, समनुरूपता - यथा अपि जिनवचनानुपरोधेन योजेतब्बा, क. व्या. 405; तेसु आदिमज्झुत्तरेसु जिनवचनानुपरोधेन क्वचि वुद्धि होति, सद्द. 3.809. अनुपलद्धि स्त्री., उपलद्धि का निषे. [अनुपलब्धि], अप्राप्ति, उपलब्ध न होना - निग्गहीतन्तवसेन पठमेकवचनन्तताय अनुपलद्धितो ..., सद्द. 1.230. अनुपलब्मन नपुं., उपलब्भन का निषे. [अनुपलम्भ], अस्तित्व में न पाया जाना, अप्राप्ति, अविद्यमानता, अनिश्चय - अत्तना पियतरस्स अनुपलब्भनवसेन पुथु विसुं विसु. उदा. अट्ठ. 224-25. अनुपलब्ममान त्रि., उप+Vलभ के वर्त. कृ., कर्म. वा. का निषे. [अनुपलभ्यमान], नहीं प्राप्त किया जा रहा, नहीं उपलब्ध हो रहा - सो अपरमत्थसभावो सच्चिकट्ठपरमत्थवसेन अनुपलब्भमानो अविज्जमानपञत्ति नाम, म. नि. 1.192. अनुपलित्त/अनूपलित्त त्रि., उप + लिप के भू. क. कृ.
का निषे. [अनुपलिप्त], राग आदि के दुष्प्रभाव से अप्रभावित, लगाव रहित, आसक्ति-रहित, अलिप्त, सर्वथा मुक्त - सब्बाभिभु सब्बविदुं सुमेध, सब्बेसु धम्मेसु अनूपलित्त, सु. नि. 213; स. नि. 1(2).257; तेसं लेपानं अभावा तेसु सब्बेसु धम्मेसु अनुपलित्तं, सु. नि. अट्ठ. 1.218; सब्बाभिभू सब्बविदूहमस्मि, सब्बेसु धम्मेसु अनूपलित्तो, ध. प. 353; महाव. 11; म. नि. 1.230; सब्बेसुपि तेभूमकधम्मेसु तण्हादिट्ठीहि अनूपलित्तो. ध. प. अट्ठ. 2.322; अनूपलित्तोति तण्हादिहिलेपेहि अलित्तो, सु. नि. अट्ट, 2.122; अनुपलित्तो लोकेन, तोयेन पदुमं यथा. अप. 2.160; - ता स्त्री॰, भाव. [अनुपलिप्तता]. लगावों, चित्त के बन्धनों या आसक्तियों से रहित होने की चित्तावस्था - पुरिमेन लोके जातस्स लोके संवड्वभावं, पच्छिमेन लोकेन
अनुपलित्ततं, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).16. अनुपलेप त्रि., ब. स. [अनुपलिप्त], आसक्तियों या लगावों से रहित - तण्हूपलेपाभावेन अनुपलेपं. उदा. अट्ठ.
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