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अनुपम/अनूपम/अनोपम
अनुपरिवत्ती दी. नि. 2.23; - जित त्रि., भू. क. कृ. [अनुप्रव्रजित], अनुपरियाति, नारीगणपुरक्खतो, जा. अट्ठ. 6.140; - किसी दूसरे का अनुकरण कर प्रव्रज्या लेने वाला व्यक्ति, न्ति/यन्ति प्र. पु., ब. व. - समन्तानुपरियन्ति, को एति दूसरे की देखा-देखी भिक्षु बन चुका व्यक्ति - अनुपब्बजिंसूति सिरिया जलं. जा. अट्ठ. 5.314; यं यं मया पुब्बे पत्थितं, अनुपब्बजितानि सहस्सानि, दी. नि. अट्ठ. 2.43; अनुपब्बजितानं सब्बमेव मत्थक पत्तान्ति पासादं अनुपरियायन्तीति, ध, प. तु गणना च न विज्जति, म. वं. 5.168; - जिस्सामि भवि०, अट्ट, 1.233; - यन्ते वर्त. कृ., सप्त. वि, ए. व. - उ. पु., ए. व. - सचे तुम्हेपि ... अहं तं पुरिसं अनुपरियन्तेति एते चन्दिमसूरिये सिनेरुं अनुपरियायन्ते, अनुपब्बजिस्सामी ति, जा. अट्ठ. 1.67; - ज्जं वर्त. कृ., पु., जा. अट्ठ. 7.171; - यायि अद्य., प्र. पु., ए. व. - तं पत्तं प्र. वि., ए. व. - अनुपब्बज्जम्पह, भिक्खवे, तेसं भिक्खूनं गहेत्वा तिक्खत्तुं राजगहं अनुपरियायि, चूळव. 228; - बहूपकारं वदामि, इतिवु. 76; अनुपब्बज्जन्ति अरियेसु चित्तं येय्युं विधि., प्र. पु., ब. व. - समन्तानुपरियायेय्युं निप्पोथेन्तो पसादेत्वा घरा निक्खम्म तेसं सन्तिके पब्बज्जं, इतिवु. अट्ठ. चतुद्दिसा, स. नि. 1(1).121.
अनुपरियाय पु.. अनु + परि + vया से व्यु.. चतुर्दिक भ्रमण, अनुपम/अनूपम/अनोपम त्रि., उपम का निषे.. ब. स. इधर-उधर चहलकदमी, हवाखोरी; - पथ पु., किले की [अनुपम], बेजोड़, अद्वितीय, सर्वश्रेष्ठ - असमसमरस भीतरी दीवालों के बगल में बना हुआ चौड़ा मार्ग, जिस पर अनुपमस्स अप्पटिसमस्स, मि. प. 155; महन्तं इदं सैनिक गश्त करते थे तथा इसी पर खड़ा होकर दुर्ग के तथागतसासनं सारं वरं सेट्ठ पवरं अनुपम मि. प. 231; बाहर की शत्रुसेना से युद्ध करते थे - रो पच्चन्तिमे नगरे बुद्धो अतिअग्गताय अनुपमो, मि. प. 259.
अनुपरियायपथो होति उच्चो चेव वित्थतो च, अ. नि. अनुपमोदमान त्रि., अनु + प + मुद का वर्त. कृ. 2(2)241; दोवारिको ... नगरस्स समन्ता अनुपरियायपथं [अनुप्रमोदमान], अन्यों के साथ प्रमोद या आनन्द का अनुक्कमति, अ. नि. 3(2).165. अनुभव कर रहा, निरन्तर प्रमुदित हो रहा - अनुमोदमानोति अनुपरियेति अनु + परि + Vइ का वर्तः, प्र. पु., ए. व. अनुपमोदमानो, निरन्तरं मोदमानोति अत्थो, सु. नि. अट्ठ. [अनुपर्येति], क. शा. अ. चारों ओर से घेर लेता है, गोल 2.98.
चक्कर काटता है -द्वारेन अनुपरियेति, घट्टयन्तो मुहं मुहुं अनुपरम पु., उपरम का निषे. [अनुपरम]. असमाप्ति, थेरगा. 125; समन्ता अनुपरियेति, सागरन्तं इमं महिं, स. अविराम, निरन्तरता - तस्स हेतुस्स तस्स पच्चयस्स अनुपरमा नि. 1(1).222; ख. ला. अ. अनुपरीक्षण करता है, क्रमशः कायिकं दुक्खवेदनं वेदेति, मि. प. 43.
विनिश्चय करता है या पकड़ लेता है - चेतसा अनुपरियेति, अनुपरिधावति अनु + परि + vधाव का वर्त, प्र. पु.. ए. व. मोग्गल्लानो महिद्धिको, थेरगा. 1259; अनुपरियेतीति, [अनुपरिधावति], इधर-उधर या चारों ओर दौड़ता है, चक्कर अनुक्कमेन परिच्छिन्दति, थेरगा. अट्ठ. 2.446. मारता है - तमेव थम्भं वा खिलं वा अनुपरिधावति, म. नि. अनुपरिवत्तति अनु + परि + Vवत का वर्त., प्र. पु., ए. व. 3.20; स. नि. 2(1).134.
[अनुपरिवर्तते], गतिशील रहता है, चक्कर लगाता है, पीछे अनुपरिधावन नपुं.. इधर उधर दौड़ना, चक्कर-मारना, चलता है, अनुगमन करता है - तमेव थम्भं वा खीलं वा चारों तरफ दौड़ लगाना - तण्हारज्जया बन्धित्वा सक्काये अनुपरिधावति अनुपरिवत्तति, स. नि. 2(1).134; - न्ति ब. उपनिबद्धस्स अनुपरिधावनं वेदितब्बं, म. नि. अट्ठ. (उप.प.) व. - केचि तरिम उदके ठत्वा चन्दिमसूरिये अनुपरिवत्तन्ति,
उदा. अठ्ठ, 60; देवदत्तो च बोधिसत्तो च एकतो अनुपरिवत्तन्ति, अनुपरिप्फुट त्रि., [अनुपरिस्फुट], चारों ओर फैला हुआ, मि. प. 195; 236. पूर्ण रूप से व्याप्त, आद्योपान्त व्याप्त - महता उदकोघेन अनुपरिवत्तन नपुं.. [अनुपरिवर्तन], पीछे या उत्तर काल में पक्खन्दपब्बतकुच्छि विय च अनुपरिप्फुट होति, ध. स. अट्ठ. होने वाला रूपान्तरण या परिवर्तन - विपरिणामानुपरिवत्तजाति 162.
विपरिणामस्स अनुपरिवत्तनतो विपरिणामारम्भणचित्ततो जाता, अनुपरियाति अनु + परि + vया का वर्त., प्र. पु.. ए. व., म. नि. अट्ठ. (उप.प.) 3.201. चारों तरफ या इधर-उधर जाता है, चक्कर मारता है - अनुपरिवत्ती त्रि., [अनुपरिवर्ती]. किसी की अनुरूपता में तत्थ यक्खो महिद्धिको, सब्बाभरणभूसितो, समन्ता विपरिणत या रूपान्तरित होने वाला - तस्स
3.13.
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