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अनुधम्मचक्कप्पवत्तक
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मे, सु. नि. 515; धम्मस्स चानुधम्म ब्याकरोन्ति, महाव. 310; दी. नि. 1.1463; स. नि. 1(2).30; म. नि. 2.35; पच्चपादि धम्मस्सानुधम्म, स. नि. 2(2).69; 3(2).413; उदा. 78; म. नि. 2.354; 3.323. अनुधम्मचक्कप्पवत्तक पु., [अनुधर्मचक्रप्रवर्तक]. धर्मचक्र का प्रवर्तन करने वाला अगला व्यक्ति - सारिपुत्तो मय्हं अग्गसावको अनुधम्मचक्कप्पवत्तको ममानन्तरं सेनासनं लद्धं अरहति, जा. अट्ठ. 1.214-215. अनुधम्मचरणसील त्रि०, धर्म के अनुसार आचरण करने वाला, निर्वाण-प्राप्ति के लिए अनुरूप धर्मों का आचरण करने वाला - अनुधम्मचारिनोति अनुधम्मचरणसीला, दी. नि. अट्ठ. 2.130; स. नि. अट्ठ, 3.282. अनुधम्मचारी त्रि., [अनुधर्मचारिन्]. उपरिवत् - धम्मसु निच्च अनुधम्मचारी, सु. नि. 69; अनुधम्मचारीति ते धम्मे आरम पवत्तमानेन अनुगतं विपस्सनाधम्म चरमानो, सु. नि. अट्ठ. 1.98; बहुस्सुतो धम्मधरो च होति, धम्मस्स होति अनुधम्मचारी, थेरगा. 373; अ. नि. 1(2).9; अनुधम्मचारिनोति सल्लेखिक तस्सा पटिपदाय अनुरूपं अप्पिच्छतादिधम्म चरणसीला, उदा. अट्ठ. 266... अनुधम्मता स्त्री., अनुधम्म का भाव. [अनुधर्मता], धर्म के अनुकूल रहने की दशा, धर्मानुकूलता- अयं तत्थ सामीचीति अयं तत्थ अनुधम्मता, पाचि. 190; यो च तेसं तत्थ तत्थ, जानाति अनुधम्मतं, अ. नि. 1(2).53.. अनुधम्मभूत त्रि., [अनुधर्मभूत], धर्म के अनुरूप हो चुका, लोकोत्तर धर्म (निर्वाण) के लिए अनुलोमभूत विपश्यना या अष्टाङ्गिक-मार्ग - लोकुत्तरधम्मस्स अनुलोमत्ता अनुधम्मभूतं विपस्सनं भावयमानो, सु. नि. अट्ठ. 2.57; लोकुत्तरस्स निब्बाणधम्मस्स अनुधम्मभूतं पटिपदं पटिपन्नो, अनधम्मभूतन्ति
अनुरूपसभावभूतं. स. नि. अट्ठ. 2.31. अनुधारयु अनु + Vधर के प्रेर. का अद्य., प्र. पु.. ब. व. [अन्वधारयन्]. पीछे की ओर से पकड़कर धारण किये - सो विक्कमी सत्त पदानि गोतमो, सेतञ्च छत्तं अनुधारयु मरु, दी. नि. अट्ठ. 1.58; म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).51; अ. नि. अट्ठ. 1.86. अनुधावति अनु + Vधाव का वर्त., प्र. पु., ए. व. [अनुधावति]. पीछे भागता है, अनुसरण करता है, (किसी में) प्रवृत्त होता है या लग जाता है - अथायं इतरा पजा, तीरमेवानुधावति,ध. प. 85; स. नि. 3(1).23; अ. नि. 3(2). 199; अधोगमं जिम्हपथं, कुम्मग्गमनुधावति, थेरगा. 1183;
अनुनय यथा, महाराज, वंसो यत्थ वातो, तत्थ अनुलोमेति, नाञ्जत्थमनुधावति, मि. प. 338; - न्ति ब. व. - कायानुगता धम्मा भवे भवे कायं अनुधावन्ति अनुपरिवत्तन्ति, मि. प. 236; - वि अद्य., म. पु.. ए. व. - मा सन्दिट्टिकं हित्वा कालिक अनुधावी ति, स. नि. 1(1).11; - वित्थ अद्य., म. पु.. ब. व. - मा सन्दिद्विकं हित्वा कालिकं अनुधावित्था ति, स. नि. 1(1).139; - विस्साम भवि., उ. पु., ब. व. - ते मयं किं
सन्दिडिकं हित्वा कालिकं अनधाविस्साम, म. नि. 2.148. अनुनदीतीरे अ., अव्ययी. स., क्रि. वि., नदी के तट के पास या समीप, नदी-तट के बगल में - अनुनदीतीरे गोचरपसुतो अहोसि, स. नि. 2(2).180; तुल. अनुकूले. अनुनमति अनु + निम का वर्त.. प्र. पु., ए. व. [अनुनमति], झुकता है, प्रवृत्त होता है, रुचि लेता है - यावग्गमूलं समकमेव अनुनमति, मि. प. 338; - मितब्ब त्रि., सं. कृ., नमन किया जाना चाहिए, अभिवादन किया जाना चाहिए - योगिना योगावचरेन थेरनवमज्झिमसमकेस अनुनमितब्ब मि. प. 338. अनुनय पु., [अनुनय], क. आसक्ति, लगाव, अनुरोध, राग, झुकाव - यो इमेसु पञ्चसु उपादानक्खन्धेसु छन्दो आलयो अनुनयो, म. नि. 1.251; यो रागो सारागो अनुनयो, ध. स. 1065; ख. स्नेह, हितैषिता, मृदुता - अनुनयवसेन वा न चलन्ति न कम्पन्ति, ध. प. अट्ठ 1.331; ग. निष्कर्ष, अनुमान - धम्मन्वयोति पच्चक्खजाणसङ्घातस्स धम्मस्स अनुनयो अनुमानं, अनुबुद्धीति अत्थो, म. नि. अट्ठ. (म.प.) 2.251; स. उ. प. में अविज्जानु, कामरागानु.. कोपानु.. दिवानु, पटिधानु., भवरागानु, मानानु., विचिकिच्छानु. के अन्त. द्रष्ट., विलो. पटिघ; - न नपुं., अनु + vनी से व्यु., अनुनय का समाना. [अनुनयन], उपरिवत् - विसयेसु सत्तानं अनुनयनतो अनुनयो, ध. स. अट्ठ 389; - पटिघ पु./नपुं.द्व. स. [अनुनयप्रतिघ], राग और द्वेष - तथागतो. महाराज, धम्म देसयमानो अनुनयप्पटिघं न करोति, मि. प. 163; - पटिघविप्पमुत्त त्रि.. [अनुनयप्रतिघविप्रमुक्त], राग एवं द्वेष से पूरी तरह से मुक्त - अनुनयप्पटिघविष्पमुत्तो धम्म देसेति, मि. प. 163; - पटिघविप्पहीन त्रि., [अनुनयप्रतिघविप्रहीन], राग एवं द्वेष से रहित - अनुनयपटिघविप्पहीनो, महानि. 82; अनुनयपटिघविप्पहीनोति सिनेहञ्च कोपञ्च ... महानि. अट्ठ. 194; - सञोजन नपुं.. [अनुनयसंयोजन], राग या लगाव का मानसिक बन्धन, स्नेह की बेड़ी - सत्त सञोजनानि -
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