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अनुत्तानीकत अनुत्तानीकत त्रि., उत्तानीकरोति के भू. क. कृ. का निषे. [अनुत्तानीकृत], दुर्बोध अथवा अस्पष्ट बना दिया गया सुस्पष्ट अथवा सरल (विषय, बात) - अनुत्तानीकतञ्च उत्तानीकरोन्ति, अ. नि. 1(1).140; 3(1).3; अनुत्तानीकतञ्च न उत्तानीकरोन्ति, म. नि. 1.285. अनुत्तानीकम्म नपुं., असुस्पष्टीकरण, अव्याख्यान, निर्वचन का अभाव, खुलासा करके न कहना - पटिच्छादना अनुत्तानीकम्मं अनाविकम्मं वोच्छादना पापकिरिया - अयं वुच्चति माया, पु. प. 126; महानि. 56; न उत्तानि कत्वा दस्सेतीति अनुत्तानीकम्म, महानि. अट्ठ. 162. अनुत्तासी त्रि., उत्तासी का निषे. [अनत्रासिन], निर्भीक, निडर, भयरहित - असम्भीतं अनुत्तासिं, मिगराजंव केसरि,
अप. 1.356; थेरगा. अट्ठ. 1.244. अनुत्तिण्ण त्रि., उ + Vतर के भू. क. कृ., 'उत्तिण्ण' का निषे॰ [अनुत्तीर्ण], पार न किया हुआ, जल से ऊपर उठकर न आया हुआ - अनुत्तिण्णो अनुत्तिण्णं दूसेसि, पाचि. 305; दिस्वा पदमनुत्तिण्णं, जा. अट्ट, 1.172. अनुत्थुणाति/अनुत्थुनाति' अनु + vथु का वर्त.. प्र. पु., ए. व. [अनुस्तनति/अनुस्तनयति], पीछे या बाद में शब्द करता है, कराहता है, विलाप करता है, हुआं-हुआं करता है, दहाड़ता है - परिदेवति सोचति हीनवादो, उपच्चगा मन्ति अनुत्थुनाति, सु. नि. 833; अनुत्थुनातीति सो मं वादेन वादं अतिक्कन्तोति आदिना नयेन सुट्टतरं विप्पलपति, सु. नि. अट्ठ. 2.233; - नामि उ. पु.. ए. व. - नेवाहमत्तानमनुत्थुनामि, न पुत्तदारं न धनं न रहूं, जा. अट्ठ. 5.474; - णन्ति प्र. पु., ब. व. - परिडरहमाना झायन्ति अनुत्थुनन्तीति अत्थो, पे. व. अट्ठ. 51; - नं वर्त. कृ., प्र. वि., ए. व. - सेन्ति चापातिखीणाव पुराणानि अनुत्थुनं, ध. प. 156; - नन्ता वर्त. कृ., प्र. वि., ब. व. - खादितपिवितनच्चगीतवादितादीनि अनुत्थुनन्ता सोचन्ता अनुसोचन्ता सेन्तीति, ध. प. अट्ठ. 2.73; - निंसु अद्य.. प्र. पु., ब. व. - सन्निपतित्वा अनुत्थुनिंसु, दी. नि. 3.63; अनुत्थुनिंसूति अनुभासिंसु, दी. नि. अट्ट. 3.47. अनुत्थुणाति/अनुत्थुनाति/अनुत्थवति अनु + vथु का वर्त, प्र. पु.. ए. व. [अनुस्तौति], प्रशंसा अथवा स्तुति करता है, किसी के बारे में बार-बार कहता है - नन्ति ब. स. - उद्धसरा सुद्धिमनुत्थुनन्ति, अवीततण्हासे भवाभवेसु. सु. नि. 907; सुद्धिमनुत्थुनन्तीति वदन्ति कथेन्तीति, सु. नि. अट्ठ. 2.251; - णन्तो वर्त. कृ., पु., प्र. पु., ए. व. - अनुत्थुणन्तो आसीनो, भत्तु याचित्थ जीवितं, जा. अट्ठ.
अनुदय्हन्ति/अनुडय्हन्ति 5.341; - त्थवि अद्य, प्र पु. ए. व. - यो मं पुफेन पूजेसि.
आणञ्चापिअनुथवि अप. 1.19, थेरगा. अट्ट,2325; पाठा अनुथनि अनुत्थुना स्त्री., अनु + Vथु से व्यु. [अनुस्तनन, नपुं.]. वाणी का विप्रलाप, बकवास, विलाप, दहाड़ - अनुत्थुना वुच्चति वाचा पलापो विप्पलापो लालप्पो, महानि. 122. अनुत्रस्त त्रि., उत्रस्त का निषे. [अनुत्रस्त], भय से रहित, निडर, निर्भीक - अभीतो अनुब्बिग्गो अनुस्सङ्की अनुत्रस्तो, उदा. 90; पाठा. अनुत्रासी; सचे अस्थि अनुत्रस्तं, तं मे अक्खाहि पुच्छितो ति. स. नि. 1(1).65; म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).246. अनुत्रासी/अनुत्रास त्रि., उत्रासी का निषे. [अनुवासिन], निर्भीक, निडर, भयमुक्त - सोज्ज भद्दो अनुत्रासी, पहीनभयभेरवो, थेरगा. 864; अभीरु अच्छम्भी अनुत्रासी अपलायी, स. नि. 1(1)118; चूळनि. 91; म. नि. अट्ठ. (उप.प.) 3.68; अमङभूतो अभीरु अच्छम्भी अनुत्रासी विगतलोमहंसो परिसं उपसङ्कमति, मि. प. 307. अनुथेर पु., महाथेर या सङ्घथेर का विप. [अनुस्थविर], बौद्ध भिक्षुसङ्घ में निर्धारित वरीयता के क्रम में कनिष्ठ भिक्षु, अमहत्त्वपूर्ण स्थविर - पिण्डपातं अभुजित्वा अनुथेरेन आभतं भुञ्जिस्सामा ति, ध. प. अट्ठ. 1.365; अनुथेरो चतुत्थदिवसे अनागामी अहोसि, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(2).26. अनुथेरं अ., क्रि. वि., अव्ययी. स., वरीयता के क्रम में -
अनुपुब्बो थेरानं अनुथेरं बाला. 131. अनुदक/अनोदक/अनूदक त्रि., उदक का निषे., ब.
स. [अनुदक/अनूदक], जल से रहित, सूखा, बिना पानी वाला-किंमलं ब्रह्मचरियस्स, किं सिनानमनोदकन्ति, स. नि. 1(1).44; 1(1).50; वीतसद्धन सेवेय्य, उपदानंवनोदक. जा. अट्ठ. 5.221; अनुखणेति सचेपि अनुदकं उदपानं पत्तो पुरिसो.... जा. अट्ठ. 5.222; सा नून चक्कवाकीव पल्ललस्मि अनोदके, जा. अट्ठ, 7.33; - भूत त्रि., उदकभूत का निषे. [अनुदकभूत], वह, जो वास्तव में जल नहीं है - यथा अनुदकभूतायपि मरीचिया उदकानपरिसनो होन्ति, म. नि. अट्ठ (मू.प.) 1(1).253. अनुदय्हन्ति/अनुडय्हन्ति अनु + /दह/डह का कर्म वा. में वर्त, प्र. पु.. ब. व. [अनुदह्यन्ते]. बाद में मानसिक रूप से पीड़ित किये जाते हैं या जलाये जाते हैं - किं ते इमे कासावं अनुदरहन्ति, स. नि. 2(2).190; पाठा. अनुदहन्ति; - रहमाना स्त्री., वर्त. कृ., बाद में मानसिक पीड़ा प्राप्त कर रही - किलेसेन अनुडरहमाना खुज्जेन सद्धि पाप
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