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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अनुतिति / अनुद्वहति प्र. उदा. अट्ठ. 252. अनुतिति / अनुद्वहति अनु + √ठा वर्त. प्र. पु. ए. व. [ अनुतिष्ठति], कार्य को ठीक से पूरा करता है, ला. अ. देखभाल या सेवा करता है, सहयोग करता है अनुद्वहति कालेन, कम्मफलं तस्सिज्झति, जा० अट्ठ. 5.117; अनुद्वहतीति तस्मिं तस्मिं काले तं तं किच्चं करोति, जा. अड. 5.118 -न्ति प्र. पु. ब. व. उद्वाहतो अप्यमज्जतो, अनुतिद्धन्ति देवता, जा. अड्ड. 5.107 द्वाहि अनु, म. पु. ए. व. सक्कच्चं अनुतिद्वाहि, पे. व. अट्ठ. 67; पाठा. अनुपतिट्ठाहि; दुध अनु. म. फु. ब. व. तथा तमनुतिद्वथ अप. पु०, 2.201; - द्वन्तो वर्त. कृ., पु०, वि. ए. व. - थेरेन वृत्तविधिं पन अनुतिट्ठन्तो, अनुतिट्ठन नपुं०, क्रि. ना. [ अनुष्ठान ], कार्यान्वयन, निष्पादन एतेसं अनुतिद्वनं उपट्टानं, उदा. अड्ड. 286. अनुतिष्ण अनु + √तर का भू. क. कृ. केवल स. उ. प. में ही प्रयुक्त [ अनुतीर्ण], पार कर चुका पार गया हुआ, मुक्त - सोकावतिण्णो नु वनम्हि झायसि, स. नि. 1 (1).144; पाठा. सोकानुतिण्णो, तुल. ओतिण्ण, अनुतीरचारी पु.. व्य. सं. एक ऊदविलाव का नाम तस्मिं खणे गम्भीरवारी व अनुतीरवारी... जा. अट्ठ. 3.293; अनुतीरचारी भद्दन्ते, सहायमनुधाव मं, तदे.; अतीतस्मि अनुतीरचारी च गम्भीरचारी. ध. प. अ. 2.77. ..... अनुतीरे अ. क्र. वि. [अनुतीर] नदी आदि के तट के पास में, तीर के समीप में - अनुतीरे महिया समानवासो, सु. नि. 18. अनुतीरे महियेकरतिवासो, सु. नि. 19. अनुतुज त्रि, उतुज का निषे, तत्पु. स. [अनृतुज]. ऋतुओं अथवा भौतिक परिवर्तनों से उत्पन्न न होने वाला, मौसम के परिवर्तन से अप्रभावित यं लोके अकम्मजं अहेतुजं अनुतुजं मि. प. 250 तुल. उतुज, उतुनिब्बत्त. अनुनी स्त्री, उतनी का निषे, तत्पु० स० [अनृतुमती], वह स्त्री, जो रजस्वला नहीं है सुनखा सुनखिं उतुनिं येव गच्छन्ति नो अनुतुनि, अ. नि. 2 (1).207 न पायमानं गच्छति, न अनुतुनिं गच्छति, अ. नि. 210; उतुनिम्पि गच्छति अनुतुनिम्पि गच्छति, अ. नि. 212. अनुत्तत्रि वच के भू, क. कृ. उत्त का निषे, [अनुक्त]. वह, जिसे अभी तक कहा नहीं गया हो, अकथित, अनभिव्यक्त; - काल त्रि. [अनुक्तकाल] आख्यात अथवा क्रियापद का वह रूप, जिसमें भूत, वर्तमान तथा भविष्यत् कालों में से किसी का भी कथन अभिप्रेत न हो पच्युप्पन्नेनुत्तकाले अतीतेनागतेति स 1.50 कालिक त्रि. [अनुक्तकालिक]. 245 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुत्तान कालविशेष के तात्पर्य को न कहने वाला शब्द - अतिकालिका ति सङ्घ गतं अनुत्तकालिका ति वृत्तं सद्द. 1.57. अनुत्तण्डुल त्रि, उत्तण्डुल का निषे०, ब० स०, कच्चे या पके हुए चावलों से रहित (ठीक से पकाया हुआ भात) तेहि तण्डुलेहि अनुत्तण्डुल अकिलिन्न, पारा, अड. 2.256. अनुत्तरत्र उत्तर का निषे.. ब. स. [ अनुत्तर). वह जिससे अधिक बढ़-चढ़कर दूसरा न हो, सर्वोत्तम बेजोड सर्वश्रेष्ठ उत्तमो पवरो जेट्ठो पमुखानुत्तरो वरो, अभि. प. 694; उत्तरविपरीते च सेद्वे चानुत्तरं तिसु, अभि. प. 952... तदनुत्तरं - ब्रह्मचरियपरियोसानं दिद्वेव धम्मे सयं अभिञ सच्छिकत्वा. सु. नि. (पृ.) 98; दी. नि. 1.159; म. नि. 1.50 सब्बे तं सरणं यन्ति त्वं नो सत्था अनुत्तरो सु. नि. 181: सम्बुद्धो, सत्यवाहो अनुत्तरो, थेरगा. अड. 1.67; उपेमि सरणं बुद्ध, धम्मञ्चापि अनुत्तर, ध. प. अट्ट. 1.22; अत्तनो उत्तरितरस्स कस्साच अभावतो अनुत्तरं, थेरगा. अट्ट, 1.97; अनुत्तरन्ति सेट्टं, असदिसन्ति अत्थो, म. नि. अट्ठ. (मू०.प.) 1 (1) .45; धम्मराजता स्त्री अनुत्तरधम्मराज का भाव धर्म के सर्वोत्तम अथवा अनुपम स्वामी होने की अवस्था सम्मासम्बुद्धो पन अत्तनो अनुत्तरधम्मराजताय एकस्मियेवस्स अन्तरभत्ते सह पटिसम्भिदाहि अरहत्तं अदासि, जा० अट्ठ 1.126; ध० प० अट्ठ 1.141; अत्तनो बुद्धसुबुद्धताय अनुत्तरधम्मराजताय एतके सीलं तीसुयेव द्वारेसु पक्खिपित्वा मं गण्हापेसि, जा. अ. 1.267 भाव पु. सर्वोत्तम अवस्था - तत्थ अनुत्तरियन्ति अनुत्तरभावो दी. नि. अड. 3. 59. अनुत्तान त्रि, उत्तान का निषे [ अनुत्तान] शा. अ. वह जो खुला हुआ न हो, ला. अ. अस्पष्ट, अप्रकाशित, अव्याख्यात गूढ़, दुर्बोध इतो परं पन एत्तकम्पि अवत्वा यं यं अनुत्तानं तं तदेव वण्णविस्साम जा. अड्ड. 1.158; तासं तासं गाथानं अनुत्तानानि पदानि वण्णेतब्बानि, जा. अड. 7. 136 पद नपुं, अस्पष्ट अथवा दुर्बोध पद अनुत्तानपदमेव पन वण्णविस्साम, जा. अट्ठ. 3.438 पदत्थ पु०, दुर्बोध शब्दों का अर्थ अयं ताव अनुत्तानपदत्थो दी. नि. अड. 1.185; म. नि. अट्ठ (मू०प.) 1 ( 1 ). 138; - पदवण्णना स्त्री. दुर्बोध पदों के अर्थ का व्याख्यान अयं पत्थ अनुत्तानपदवण्णना सेलन्ति मणिवलयं, जा. अड. 3.336; - सभावता स्त्री०, भाव., दुर्बोध, दुरूह अथवा अस्पष्ट होने की अवस्था या प्रकृति अनुत्तानसभावताय गम्भीरं थेरगा. अट्ठ. 1.39. " For Private and Personal Use Only -
SR No.020528
Book TitlePali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Panth and Others
PublisherNav Nalanda Mahavihar
Publication Year2007
Total Pages761
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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