SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 265
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुगामिय 238 अनुग्गण्हति/अनुग्गण्हाति च ब्रह्मनिधीति वुच्चति, सु. नि. अट्ठ. 2.45; - धन नपुं.. [अनुगृध्यति, अनु + Vगृध], किसी वस्तु या व्यक्ति के प्रति कर्म. स. [अनुगामिकधन], सदा साथ में रहने वाला धन लोभ-युक्त होता है, पुनः पुनः कामना करता है, बार-बार - यानिमानि थावरादीनि पञ्च धनानि, तेसु ठपेत्वा इच्छा करता है - थियो बन्धू पथ कामे, यो नरो अनुगिज्झति, दानसीलादिअनुगामिकधनं, सु. नि. अट्ठ. 1.24; - निधि सु. नि. 775; अनुगिज्झतीति अनु अनु गिज्झति पुनप्पुनं पु., कर्म. स. [अनुगामिकनिधि], सदा साथ रहने वाला पत्थेति, महानि. अठ्ठ. 42; - न्तो वर्त. कृ. का निषे०, प्र. खजाना, सदा साथ रहने वाला कोष - तं निधिन्ति तं पु., ए. व. - अनानुगिद्धोति कञ्चि धम्म तण्हागेधेन पुञ्जकम्म पण्डिता अनुगामिकनिधिं नाम कथेन्ति, जा. अट्ठ. अननुगिज्झन्तो, सु. नि. अट्ठ. 1.129. 4.250. अनुगिणाति अनु +गि का वर्त.. प्र. पु.. ए. व. [अनुगृणाति], अनुगामिय त्रि., अनुगमन करने वाला, पीछे चलने वाला, दूसरे के शब्द को दुहराता है, अनुमोदन करता है, सहमति सदा साथ रहने वाला - महानिधानं निहितं अक्खयं देता है, पीछे बोलता है - तस्स हि भिक्खुनो जनो अनुगिणाति, अनुगामियं, सद्धम्मो. 311. क. व्या. 279 तुल. पाणिनि. 1.4.41, सद्द. 3.696. अनुगामी त्रि., [अनुगामिन्], अनुगमन करने वाला, सेवक, अनुगिद्ध त्रि, भू. क. कृ. [अनुगृद्ध], किसी वस्तु या व्यक्ति किसी विशेष दिशा अथवा वस्तुविशेष को अभिप्रेत बनाने के प्रति निरन्तर लोभ से भरा हुआ व्यक्ति, सतत लोभयुक्त वाला - पारादिगमिम्हा ति किमत्थं? अनुगामि, क. व्या. - रसेसु अनुगिद्धस्स, झाने न रमती मनो, थेरगा. 580. 536; अनुयन्ताति अनुगामिनो सेवका, सु. नि. अट्ठ. 2.157. अनुगीति स्त्री., अनु + (गा + ति [अनुगीति], पूर्ववर्ती अनुगायति अनु + vगा का वर्त., प्र. पु.. ए. व. [अनुगायति]. गद्य में कथित वस्तु का गाथाओं में पुनर्कथन अथवा गाथावैदिक मन्त्रों का पाठ करता है, स्तुति करता है, अनुवाचन रूप में संक्षेपण, पुनरुद्धरण - अनुगीतीति वृत्तस्सेवत्थस्स करता है - न्ति प्र. पु., ब. व. - येपि खो ते ब्राह्मणानं सुखग्गहणत्थं अनुपच्छा गायनगाथा नेत्ति. अट्ठ. 149; अयं पुब्बका इसयो ... पोराणं मन्तपदं गीतं पवुत्तं समिहितं, पनेत्थ अनुगीति, म. नि. अट्ट. (मू.प.) 1(1).43. तदनुगायन्ति ... वाचितमनुवाचेन्ति, महाव. 322; दी. नि. अनुगीयति अनु +/गा का कर्म. वा., वर्त, प्र. पु., ए. व. 1.91; तदनुगायन्तीति एतरहि ब्राह्मणा तं तेहि पुब्बे गीत [अनुगीयते], किसी के द्वारा गाया जाता है, अनुगायन अनुगायन्ति अनुसज्झायन्ति, दी. नि. अट्ट. 1.221; - यिस्सं किया जाता है - न्ति वर्त, प्र. पु., ब. व. - तत्थ भवि., उ. पु.. ए. व., - पारायनमनुगायिस्सं सु. नि. 1137; सिक्खानुगीयन्ति, सु. नि. 946: तुल. सद्द. 3.923. तत्थ अनुगायिस्सन्ति भगवता गीतं अनुगायिस्सं सु. नि. अनुगु अव्ययी. स. [अनुगु], गायों के पीछे - गुन्नं पच्छा अट्ठ. 2.297; - गीत भू. क. कृ. - तेसं सह सच्चमनुगीतेन अनुगु, मो. व्या. 3.48; तुल. पाणिनि 5.2.15. महामेघो पवस्सति, मि. प. 126. अनुगुण त्रि., [अनुगुण], समान गुणों वाला, अनुरूप, समनुरूप अनुगायन नपुं., [अनुगायन], वैदिक-मन्त्रों का पाठ, पूर्व में - लोकायतिका विय तदनुगुणं उच्छेददस्सनं अभिनिविसन्ता कथित अथवा गीत का पुनर्कथन या पुनर्गायन - ... ___..., उदा. अट्ठ. 288. अनुगायनपटिगायनकिरियावसेन सम्पदानं होतीति दट्ठबं, अनुगुत्त त्रि., [अनुगुप्त], संरक्षित, पीछे रक्षा किया गया - सद्द. 3.696. तयानुगुत्तो सिरि जातिमामपि, जा. अट्ठ. 5.395; तयानुगुत्तोति अनुगार/अन्नमारो एक परिव्राजक का नाम - अन्नभारो तया अनुरक्खितो, तदे.. वरधरो सकुलुदायी च परिब्बाजको, म. नि. 2.204, पाठा. अनुग्गण्हति/अनुग्गण्हाति अनु + Vगह का वर्तः, प्र. पु., अनुगार ए. व. [अनुगृह्णाति], पक्ष लेता है, सहायता करता है, रक्षा अनुगाहति अनु + Vगाह का वर्त., प्र. पु., ए. व., प्रवेश कर करता है, देख-भाल करता है, अनुमोदन करता है, अनुग्रह रहा है, निमज्जित हो रहा है, गहराई तक प्रवेश कर रहा करता है - अझे बहुजने पोसेतीति वदन्तो अनुग्गण्हति है- अप्पमत्तो तु धम्मानं सभावमनुगाहति, सद्धम्मो. 611; - नाम, जा. अट्ठ. 1.140; न खो पन मं सत्था सम्परायिकेनेवत्थेन न्तो वर्त. कृ.. पु.. प्र. पु.. ए. व. - सभावमनुगाहन्तो. अनुग्गण्हाति, जा. अट्ठ. 2.61; - ण्हन्तो वर्त. कृ.. (गरहति सद्धम्मो. 611. के साथ साथ रहने पर गरहन्तो के विप. के रूप में) - इति अनुगिज्झति अनु. + गिध का वर्तः, प्र. पु., ए. व. बोधिसत्तो गरहन्तोपि अनुग्गण्हन्तोपि किञ्च देवो सकं पजन्ति For Private and Personal Use Only
SR No.020528
Book TitlePali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Panth and Others
PublisherNav Nalanda Mahavihar
Publication Year2007
Total Pages761
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy