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अनु अनु गिज्झति
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अनुकम्पति अनु अनु गिज्झति अनुगिज्झति के अर्थ का सुदृढ़ीकृत अनुकङ्कितं पदं, सु. नि. अट्ठ. 2.236; अ. नि. अठ्ठ. 1.322; वर्त. क्रि. रू., किसी के प्रति अत्यधिक तृष्णालु या रागानुरक्त विसुद्धि. 1.103; अनुकङ्कितन्ति पादनिक्खेपसमये कड्डन्तो होता है - अनुगिज्झतीति अनु अनु गिज्झति पुनप्पुनं पत्थेति विय पादं निक्खिपति, तेनस्स पदं अनुकङ्कितं पच्छतो अञ्छितं महानि. अट्ठ. 42.
होति, विसुद्धि. महाटी. 1.118. अनु अनु नयन नपुं., पुनः पुनः ले जाना, लुरियाना, अनुकन्तति अनु + कन्त का वर्त०, प्र. पु.. ए. व. ठकुरसुहाती करना, चापलूसी करना - विसये सत्तानं अनु [अनुकृन्तति], काटता है, फाड़ता है, खरोंचता है - कुसो अनु नयनतो अनुनयो, महानि. अट्ठ. 29.
यथा दुग्गहितो हत्थमेवानुकन्तति,ध. प. 311; हत्थं अनुकन्तति अनु अनु पस्सन नपुं., विपश्यना ध्यान द्वारा पुनः पुनः फालेति, ध. प. अट्ठ. 2.277. समभाव से धर्मों को देखना - पुरिमपुरिमञाणानं अनु अनु अनुकम्पक त्रि. [अनुकम्पक], दयालु, करुणा से आर्द्र, पस्सनतो अनुपस्सनाति वुच्चति, पारा. अट्ठ. 2.33. कोमल प्रकृति वाला, कृपा करने वाला - परमत्थसहिता अनु अनु सेति अनु + Vसी का वर्त, प्र. पु.. ए. व., किसी गाथा, यथापि अनुकम्पिका. थेरीगा. 210; अनुकम्पिकाति के साथ अत्यधिक या पुनः पुनः संलिप्त होता है - थामगतढेन ..... अनुग्गाहिका, थेरीगा. अट्ठ. 195; आहुनेय्या च पुत्तानं, अनु अनु सेतीति अनुसयो, महानि. अट्ठ. 32.
पजाय अनुकम्पका, इतिवु. 78; अनुकम्पकाति अत्थकामा अनु अभाव पु., (अनभाव के व्याख्यान हेतु अट्ठकथाओं में हितेसिनो, खु. पा. अट्ठ. 164. प्रयुक्त विशिष्ट शब्द) पीछे प्राप्त होने वाला किसी धर्म का अनुकम्पचित्त नपुं., कर्म. स., अनुकम्पा युक्त चित्त, कोमल अभाव - तत्थ पदच्छेदो अनुअभावं गता अनभावं गताति, चित्त - अनुकम्पं उपादायाति अनुकम्पचित्तेन परिग्गहेत्वा, पारा. अट्ठ. 1.97.
स. नि. अट्ठ. 3.148, पाठा. अनुकम्पं चित्तेन. अनु अमतग्ग त्रि., (अनमतग्ग की व्याख्या के रूप में ___ अनुकम्पति अनु + ।कम्प का वर्त, प्र. पु., ए. व., अनुकम्पा अट्ठकथाओं में प्रयुक्त विशिष्ट शब्द) वह, जिसकी पूर्व एवं करता है, दया करता है, कृपा करता है, करुणा से द्रवीभूत अपर कोटि ज्ञान द्वारा अज्ञेय है, संसार - अनमतग्गोति अनु होता है, अनुग्रह करता है - आवासिको भिक्खु गिहीन अमतग्गो, स. नि. अट्ठ. 2.139.
अनुकम्पति, अ. नि. 2(1).244; - म्पमानो वर्त. कृ., पु.. अनु अवय त्रि., (अनवय के व्याख्यान के रूप में प्रयुक्त प्र. वि., ए. व. - मित्ते सुहज्जे अनुकम्पमानो, हापेति अत्थं विशिष्ट शब्द) परिपूर्ण गुण वाला, वह, जिसे किसी शिल्प पटिबद्धचितो, सु. नि. 37; अनुकम्पमानोति अनुदयमानो, का पूर्ण ज्ञान है - अनवयोति अनुअवयो, सन्धिवसेन तेसं सुखं अपसंहरितुकामो दुक्खं अपहरितुकामो च. सु. नि. उकारलोपो, अनु अनु अवयो, यं यं कुम्भकारेहि कत्तबं नाम अट्ठ. 1.59;-कम्प अनु., म. पु.. ए. व., - अनुकम्प में वीर अत्थि, सब्बत्थ अनूनो परिपुण्णसिप्पोति अत्थो, पारा. अट्ठ. महानुभाव, पे. व. 100; अनुकम्प महावीर, लोकजेट नरासभ, 1.230.
अप. 1.33; - म्पस्सु अनु., आत्मने., म. पु.. ए. व. - अनु अवसन/अनोवस्स त्रि., क्रि. वि. [अनववर्ष, अनुकम्पस्सु कारुणिको पे व. 415; अनुकम्पस्सूति अनुग्गण्ह अनववर्षण], वर्षा का अभाव, अवर्षण, सखे की स्थिति अनुदयं करोहि, पे. व. अट्ठ. 157-158; - म्पेय्याथ विधि., वाला, वर्षा-रहित अवस्था वाला - देवम्हि वस्समानम्हि, म. पु., ब. व. - ये, आनन्द, अनुकम्पेय्याथ ... ते वो, अनोवस्संभवं अका, जा. अट्ठ. 5.308; अनोवस्सन्ति अवस्सं. आनन्द, ... पतिद्वापेतब्बाति, अ. नि. 1(1).253; - यथा देवो न वस्सति, तथा कतन्ति अत्थो, तदे.; पाठा. म्पि/म्पित्थ अद्य., प्र. पु., ए. व., - उभयेन वत मं सो अनुअवसन.
भगवा अत्थेन अनुकम्पि, स. नि. 1(1).100; अनुसासि में अनुकङ्घन नपुं.. [अनुकर्षण], पीछे की ओर से पकड़कर ले अरियवता, अनुकम्पि अनुग्गहि, थेरगा. 334; सो सत्ते आना, परिहार करना - चसद्दग्गहणमनुकडनत्थं क. व्या. अनुकम्पित्थ भूपति, म. वं. 37.109; - म्पितुं निमि. कृ., -
न तं अरहति सप्पओ, मनसा अनुकम्पितुं, स. नि. अनुकडित त्रि०, अनु + कड्व का भू. क. कृ. [अनुकृष्ट]. 1(1).239; - म्प पू. का. कृ., - पणेमि दण्ड अनुकम्प पीछे लगा हुआ, पीछे पड़ा हुआ, पीछे से घसीटा हुआ, पीछे योनिसोति, जा. अट्ठ. 3.391; -म्पितो भू. क. कृ., - अहो से खींचा हुआ, छोड़ा हुआ प्रभाव चिह्न - दुवस्स होति सुलद्धलाभोम्हि, सुमित्तेनानुकम्पितो, अप. 2.159; अनुकम्पिम्ह
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