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अनवज्ज
शुद्धता, पवित्रता, निर्दुष्टता - आतिसङ्गहेन सकजनहितं अनवज्जकम्मन्तताय परजनहितञ्च करोन्ता खु. पा. अड. 126 गुण पु. कर्म. स. [ अनवद्यगुण ], दोषरहितता, निर्दुष्टता अनवज्जगुणबहुलतायपि तथागता पटिसल्लानं सेवन्ति, मि. प. 142; त्यपुच्छा स्त्री. तत्पु. स. [ अनवद्यार्थपृच्छा]. उत्तम अर्थविषयक प्रश्न कुशल धर्मों के विषय में प्रश्न - अपरापि तिस्सो पुच्छा अनवज्जत्थपुच्छा, निक्किलेसत्थपुच्छा, वोदानत्थपुच्छा, महानि. 251; धम्म त्रि.. व. स. दोष रहित प्रकृति वाला, शुद्ध स्वभाव वालाएवमादिके अनेके अत्तनो कुसले अनवज्जधम्मे बुद्धि गते, उदा. अड्ड. 273 पद नपुं, कर्म, स. धर्म से परिपूर्ण वचन, अर्थात् सैंतीस बोधिपक्षीय धर्म अनवज्जपदानि सेवमानो ततियं भिक्खुनमाहु मग्गजीविं, सु. नि. 88 अणुमत्तस्सापि वज्जस्स अभावतो अनवज्जता, कोद्वासभावेन च पदत्ता सत्ततिंसंबोधिपक्खियधम्मसङ्घातानि अनवज्जपदानि, सु. नि. अ. 1.130 पिण्ड पु. कर्म, स० अनुमोदित भोजन, नियमसम्मत भोजन अनवज्जपिण्डो भोत्तब्बो न च कोचूपरोधति, जा. अड. 5.241; अनेसनं पन पहाय मिच्छाजीवं वज्जेत्वा धम्मेन समेन उप्पादिता परिभुत्ता अनवज्जपिण्डो नाम, जा. अड. 5.242 - बल नपुं. कर्म. स. विशुद्धि की शक्ति, प्रज्ञाबल, विशुद्धिबलचत्तारिमानि,... बलानि,... पञ्ञाबलं, वीरियबलं, अनवज्जबलं, सङ्ग्रहबल, अ. नि. 1(2).163; अनवज्जबलन्ति निद्दोसबल अ. नि. अड्ड. 2.337 भोगी त्र अनुमोदित वस्तुओं का प्रयोग करने वाला या शुद्ध जीविका कमाने वाला - अनवज्जभोगी, गतिविगुत्तो... इमेहि तिसगुणवरेहि समुपेतो होति, मि. प. 326; - भोजी त्रि, उपरिवत् एते अलद्धा अनवज्जभोजी सु. नि. 47... धम्मेन समेन उप्पन्नं भोजनं मुञ्जन्तो तत्थ व परिघानुनयं अनुष्पादेन्तो अनवज्जभोजी हुत्वा ... सु. नि. अड. 1.75: भोजिगाथा स्त्री. सु. - नि. की गाथा सङ्ख्या 47 का शीर्षक, सु. नि. अट्ठ. 1.75: रस त्रि. व. स. विशुद्धिभाव या पवित्रभाव वाला इदं सीलं सम्पत्तिअत्थेन रसेन अनवज्जरसन्ति वेदितब्ब विसुद्धि. 1.9; - सङ्घातत्रि, कर्म. स. अनवद्य नाम वाला धर्म, कुशल धर्म ये धम्मा कुसला कुसलसङ्गाता धम्मा अनवज्जा अनवज्जसङ्घाता त्यास्स धम्मा पञ्ञाय वोदिडा होन्ति, अ. नि. 3 (1). 181 - सज्ञी त्रि. ब. स.. किसी धर्मविशेष को विशुद्ध मानने वाला तं अपस्सन्तो अनवज्जसज्ञी हुत्वा, पारा. अड. 1.164
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नाम
ये
सुख नपुं.
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अनवद्वान
कर्म. स. सर्वोत्तम आध्यात्मिक सुख, ध्यानसुख, निर्वाणाधिगम सुख सो इमिना अरियेन सीलक्खन्धेन समन्नागतो अच्छातं अनवज्जसुखं पटिसंवेदेति दी. नि. 1.62; अनवज्जसुखन्ति अनवज्जं अनिन्दितं कुसलं अविप्पटिसारपामो ज्जपीतिपस्सद्धिधम्मेहि परिग्गहितं कायिकचेतसिकसुखं, दी. नि. अड. 1.150; तेसु पन अनवज्जसुखविपाकलक्खणा कुसला. घ. स. अड्ड. 87. अनवज्ञत्ति स्त्री. अवञ्ञत्ति का निषे, तत्पु [ अनवज्ञप्ति ]. अपमान से विमुक्ति, अवहेलना का अभाव, अपरिभव, अपराभव अनवञ्ञत्तिपटिसंयुत्तोति एत्थ अनवञ्ञत्तीति अनवञ्ञा परेहि अत्तनो अहीजितता अपरिभूतता ताय अनवञ्ञत्तिया पटिसंयुत्त संसट्टो, इतिवु० अट्ठ 219 - काम त्रि०, ब० स०, तिरस्कार की कामना न रखनेवाला, सत्कारकामी. स्वागताभिलाषी पुन चपरं आनन्द, पापभिक्खु लाभकामो होति सक्कारकामो अनवञ्ञत्तिकामो, अ० नि० 1 ( 2 ) . 276; पटिसंयुक्त तत्पु. स. अनवज्ञाभाव से जुड़ा हुआ, लाभ, सत्कार तथा यश पाने की इच्छा से युक्त अनवञ्ञत्तिपटिसंयुत्त वितको इतिवु, 53; यो तत्थ गेहसितो तक्को वितक्को मिच्छासङ्कप्पो अयं दुध्यति अनवञ्ञत्तिपटिसंयुत्त वितको विम, 412: मद पु.. द्रष्ट. आगे अनवञ्ञतमद के अन्त.. अनवञ्ञपटिलाभ पु., तत्पु० स० [अनवज्ञाप्रतिलाभ ], सम्मान का लाभ, सत्कार -प्राप्ति - सो पापिकं इच्छं पणिदहति अनवञ्ञप्पटिलाभाय लाभसक्कारसिलोकप्पटिलाभाय, अ. नि. 1(2).165.
अनवञ्ञा स्त्री० [अनवज्ञा], अतिरस्कार, सम्मान, अपमान का अभाव - अनवञ्ञत्तीति अनवञ्ञा... इतिवु, अट्ठ. 219,
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द्रष्ट. ऊपर.
अनवजात त्र अवज्ञात का निषे, तत्पु. स. [ अनवज्ञात], अतिरस्कृत, वह जिसके प्रति असम्मान का भाव व्यक्त नहीं किया गया है- अक्खित्तोति जातिं आरम्भ किं सोति केनचि अनवञ्ञतो, सु. नि. अट्ठ. 2.166; अनपविद्ध अनवज्ञातं कत्वा, पे. व. अड. 118: मद पु. ष. तत्पु अतिरस्कृत या अपमानरहित रहने का घमण्ड अहं पन अनुज्ञातो अनवज्ञातोति मज्जनवसेन उप्पन्नो मानो अनवञ्ञातमदो नाम, विभ. अट्ठ. 442.
अनवट्ठान नपुं., अवट्ठान का निषे, तत्पु० स० [ अनवस्थान ], अस्थायित्व, अस्थिरता, अदृढता, टिकाऊ न रहना - अनवद्वानेन परिब्भमनतो विसुद्धि महाटी 1.37 एवमेव
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