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अनभिरद्ध
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असन्तोष से व्यथित इदं सत्था कुणालदहे विहरन्तो अनभिरतिपीळिते पञ्चराते भिक्खु आरम्भ कधेसि जा. अड्ड 5.408; रस त्रि.ब. स. अनभिरति के कृत्य वाला - तस्सा अक्खमनलक्खणा वा तत्थ अनभिरतिरसा, म. नि. अट्ठ. ( मू०प०) 1 ( 1 ).114; सञ्ञी त्रि, लौकिक सुखों में अनासक्ति की संज्ञा रखने वाला सब्बलोके अनभिरतिसञ्ञी अ. नि. 1 ( 2 ).174; अनभिरतिसञ्ञीति सब्बस्मिम्पि तेधातुके लोकसन्निवासे अनभिरताय उक्कण्ठितसज्ञाय समन्नागतो, अ. नि. अट्ठ. 2.341.
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अनभिरद्ध त्रि, अभिरद्ध का निषे तत्पु. स. अप्रसन्न, अप्रसन्न मन वाला कुपितो अनत्तमनो अनभिरद्धो आहतचित्तो खिलजातो... पारा 255; अनभिरद्धोति न सुखितो न वा पसादितोति अनभिद्धो, पारा. अट्ठ. 2.154; अनभिरद्धस्स हि मनो दुक्खपदट्ठानत्ता अत्तनो मनो नाम न होति, ध. स. अट्ठ. 188.
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अनभिरद्धि त्रि. अभिरद्धि का निषे, तत्पु, स. असन्तुष्टि, अप्रसन्नता, कोप कोधाधाता कोपरोसा व्यापादो अनभिरद्धि च. अभि. प. 164 तत्र तुम्हेहि न अघातो न चेतसो अनभिरद्धि करणीया, दी. नि. 1.3; नेव अत्तनो न परेसं हितं अभिराधयतीति अनभिरद्धि, कोपस्सेत अधिवचनं दी. नि. अट्ठ. 1.49; चेतसो आघातो अप्पच्चयो अनभिरद्धि अज्झतं अवूपसन्तं होति, अ. नि. 1 ( 1 ) .94; अनभिरद्धीति कोपोयेव,
सोहि अनभिराधनवसेन अनभिरुद्धीति वच्यति अ. नि. अड्ड. 2.50. अनभिरमना स्त्री. अभिरमना का निषे, तत्पु, स. [ अनभिरमणा] असन्तुष्टि, अप्रसन्नता, मन का उचट जाना पन्तेसु वा सेनासनेसु अरति अरतिता अनभिरति अनभिरमणा अयं वुच्चति अरति, विभ. 403. अनभिराध पु, अभिराध का निषे तत्पु, स. [अनभिराधन]. अप्रसन्नता, असंतुष्टि - अनभिराधवसेन अनभिरद्धीति वुच्चति, अ. नि. अड. 2.50 इष्ट. अनभिरद्धि, अनभिसङ्करोति अभि + सं + √कर के वर्त. प्र. पु. ए. व. का निषे [अनभिसंस्करोति], चेतना द्वारा अभिसंस्कृत नहीं करता है सङ्घच्च पू. का. कृ. तदप्पतिठितं विजाणं अविरूळ्हं अनभिसङ्घच्चविमुत्तं. स. नि. 2 (1).49; अनभिसङ्घच्च विमुतन्ति पटिसन्धि अनभिसङ्घरित्वा विमुतं स. नि. अ. 2241 भू क. कृ. का निषे [अनभिसंस्कृत], अपरिष्कृत - ताभिधान नपुं०, सामान्य जनों की वाणी या अभिधान अभिसङ्गताभिधानानि अनभिसङ्गताभिधानानीति द्वेधा दिस्सन्तो..... सद्द. 1.75.
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अनमिसित्त
अनभिसमय पु. अभिसमय का निषे [बौ. सं. अनभिसमय ]. अविद्या, अज्ञान, अदर्शन रूपे, खो, वच्छ, अनभिसमया
रूपनिरोधगामिनिया पटिपदाय अनभिसमया.... स. नि. 2 (1).258; यं एवरूपं अञ्ञाणं अदस्सनं अनभिसमयो अननुबोधो अयं मत्तता, नेत्ति 63-64: अभिसमयोतिपि पञ्ञा, सा तं आकारं अभिसमेति, अविज्जा पन उप्पज्जित्वा तं अभिसमेतुं न देतीति अनभिसमयो नेत्ति, अड. 256: अभिमुखो हुत्वा धम्मेन न समेति, न समागच्छतीति अनभिसमयो, ध. स. अट्ठ. 293; द्रष्ट. अभिसमय के अन्त.. अनभिसमेत अभि स√इ के भू. क. कृ. का निषे. [ अनभिसमित], प्रज्ञा द्वारा अगृहीत, असाक्षात्कृत, अप्राप्त, अज्ञात, अदृष्ट - अञ्ञातं अदि अप्पतं असच्छिकतं अनभिसमेतं, अ. नि. 3 (1).199. अनभिसमेतावी त्रि, अभि + सं√इ के भू, क. कृ. (तावी प्रत्यय) का निषे, अज्ञाता, अद्रष्टा, साक्षात्कार न करने वाला आर्यसत्यों आदि का ज्ञान दर्शन न करने वालाअनभिसमेतावीनं ते समुदयसच्चं उप्पज्जित्थ नो च तेसं मग्गसच्चं उप्पज्जित्थ, यम. 1.317; अनभिसमेतावीनन्ति चतुराच्चपटिवेधसङ्घातं अभिसमयं अप्पत्तसत्तानं यम, अट्ट, 311. अनभिसम्बुद्ध त्रि. अभिसम्बुद्ध का निषे, तत्पु० स. [ अनभिसम्बुद्ध] 1. कर्म. वा. नहीं ज्ञात नहीं जाना गया, नहीं बूझा गया, अज्ञात, अदृष्ट सम्मासम्बुद्धस्स ते पटिजानतो इमे धम्मा अनभिसम्बुद्धाति म. नि. 1.104; 2. कर्तृ. वा. सम्बोधिज्ञान नहीं पाया हुआ बोधिसत्त्व पुब्बेव सम्बोधा, अनभिसम्बुद्धस्स बोधिसत्तस्सेव सतो. म. नि. 1.127; अ. नि. 1 (1).282.
अनभिसर/ अनभिस्सर त्रि. ब. स. [ अनभिसर], अत्राण, अशरण, असहाय शरणविरहित अताणो लोको अनभिसरो, म. नि. 2.265; अनभिस्सरोति असरणो अभिसरित्वा अभिगन्त्वा अस्सारोतुं समत्थेन विरहितो, म. नि. अड्ड. (म.प.) 2.216: अनभिस्सरोति अभिसारित्वा अभिगन्त्वा व्याहरणेन अस्सासेतुं समत्थेन रहितो असहायोति वा अत्थो, पटि. म. अट्ठ. 2.13. अनभिसंभवनीय त्रि. अभिसंभवनीय का निषे, अप्राप्तव्य, अगम्य, अबोध्य नहीं समझने योग्य ब्रह्मनो पकतियण्णो, अनभिसम्भवनीयो सो देवानं दी. नि. 2154; अनभिसम्भवनीयो च सो अञ्ञेहीति असामन्तपञ्ञ, पटि म. 367.
अनभिसित्त त्रि, अभिसित्त का निषे जिसका अभिषेक न किया गया हो
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[ अनभिषिक्त ], वह, रञो खत्तियस्स