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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनपविद्ध 196 अनमित अनपविद्ध त्रि., अपविद्ध का निषे., तत्यु. [अनपविद्ध], एतम्पि छेत्वान परिब्बजन्ति, अनपेक्खिनो कामसुखं पहाय, अप्रक्षिप्त, अनवज्ञात, नहीं छितराया हुआ, अनुपेक्षित, ध. प. 346; जा. अट्ठ. 3.350. अतिरस्कृत, सत्कृत - सक्कच्चन्ति सादरं, अनपविद्धं अनपेत त्रि., अपेत का निषे., तत्पु. स. [अनपेत], अविरहित, अनवजातं कत्वा, पे. व. अट्ट. 118. अवियुक्त, संयुक्त, विलग नहीं हो चुका - गिहिधम्मा अनपेतो. अनपाय त्रि., अपाय का निषे., ब. स. [अनपाय]. दुर्गतिरहित, अ. नि. 2(1).36, पाठा. अनपगतो. चार प्रकार की अपायभूमियों में न पहुंचा हुआ, अपायरहित - अनप्प त्रि., अप्प का निषे., तत्पु. स. [अनल्प]. प्रचुर, सो तेसु धम्मेसु अनुपायो अनपायो अनिस्सितो .... म. नि. 3.74. अधिक - कुसलफलं अनप्पं. दा. वं. 4.36; - क त्रि., निषे. अनपायी त्रि., अपायी का निषे., तत्पु. [अनपायिन्], कभी तत्पु. स. [अनल्पक], प्रचुर, अधिक, प्रभूत, पर्याप्त - लाभा विलग न होने वाला, अपृथग्भूत, सदा साथ रहने वाला - वत नो अनप्पका, ये मयं भगवन्तं अद्दसाम, सु. नि. 31; ततो नं सुखमन्वेति, छायाव अनपायिनी, ध. प. 2; छायाव तुम्हेहि पुजंपसुतं अनप्पक पे. व. 25; पहूतभोगेसु अनप्पकेसु. अनपायिनीति ... सरीरप्पटिबद्धत्ता, ध. प. अट्ठ. 1.25; सुखं विराधाय दुक्खज्ज पत्ता 'ति, पे. व. 79; पहायानप्पके अनुग्गता सीलवती, छायाव अनपायिनी, जा. अट्ठ.6.304; भोगे, थेरगा. 155; तस्मिं मते दुक्खमनप्पक मे, जा. अट्ठ. उत्तरो माणवो सत्तमासानि भगवन्तं अनुबन्धि छायाव 3.259; - कतर त्रि., तुल. वि. [अनल्पकतर], अधिक अनपायिनी, म. नि. 2.343. प्रचुर, अधिक उत्तम, अधिक भव्य - पणीततराति अनप्पकतरा, अनपुंसक त्रि., नपुंसक का निषे., [अनपुंसक], नपुं. से म. नि. अट्ठ. (म.प.) 2.155; पाठा. अतप्पकतरा; - कपरिवार भिन्न लिङ्गवाला - अनपुंसकानि लिङ्गानि, क. व्या. 85. त्रि., ब. स. [अनल्पकपरिवार], विशाल परिवार अथवा अनपेक्ख त्रि., अपेक्ख का निषे., ब. स. [अनपेक्ष]. समूह वाला - अमितयसाति न मितयसा अनप्पकपरिवारा, इच्छारहित, निष्काम, तटस्थ निरपेक्ष - अपविद्धो सुसानस्मि वि. व. अट्ठ. 64; - रूप त्रि., ब. स. [अनल्परूप], विशाल अनपेक्खा होन्ति आतयो, सु. नि. 202; येन येनेव गच्छति, रूप वाला, भव्य स्वरूप वाला - किं भोजनं भुञ्जथ वो अनपेक्खोव गच्छति, थेरगा. 699; नत्थि चेतसिकं दुक्खं अनोमा, बलञ्च वण्णो च अनप्परूपाति, जा. अट्ठ. 3.459; अनपेक्खस्स गामणि, थेरगा. 707; अनपेक्खाव गच्छन्ति, मधनं लच्छसिनप्परूपन्ति, जा. अट्ट, 4.299; - सोकातुर तेन मे समणा पिया, थेरीगा. 282; येन येनेव गच्छति, त्रि, निषे., तत्पु. [अनल्पशोकातुर], अत्यधिक शोक से अनपेक्खोव गच्छति, अ. नि. 2(2).61; - पद नपुं., कर्म. पीड़ित - निरये पन नेरयिका सत्ता दुक्खा तिब्बा ... स., ऐसे स्वतन्त्र पद, जिनमें बुद्ध का वर्णन विशेषणों के अनप्पसोकातुरा ..., मि. प. 149. बिना हुआ है - अनपेक्खपदानीति पदानि दुविधा सियु, अनप्पमेय्य त्रि., अप्पमेय्य का निषे०, तत्पु. [अनप्रमेय], सद्द. 1.74; - चित्तता स्त्री., [अनपेक्षचित्तता]. चित्त की अपरिमेय, अप्रमेय, वह, जिसको मापा न जा सके, अनवगाय, अपेक्षारहित स्थिति, निरपेक्षचित्तता, उपेक्षा की अवस्था - वह, जिसकी थाह न ली जा सके - गोतमो अनप्पमेय्यो, अनपेक्खचित्तताय चित्तेन न उग्गहितन्ति अनुग्गहीतं, अ. मुळालपुप्फ विमलव, थेरगा. 1092; पमाणकरकिलेसाभावतो नि. अट्ठ. 3.23; - ता स्त्री. भाव. - काये च जीविते च अपरिमाणगुणताय च अनप्पमेय्यो, थेरगा. अट्ठ. 2.387. अनपेक्खताय पेसितत्तो..., उदा. अट्ठ. 140; - वा त्रि. अनब्मक्खातुकाम त्रि., ब. स., किसी के विरुद्ध मिथ्या अपेक्खवा का निषे., तत्पु. [अनपेक्षावत], उपेक्षा करने । अभियोग लगाने की कामना न करने वाला - वाला, अपेक्षा से रहित, तृष्णारहित, वीततृष्ण - अनपेक्खवाति । अनब्भक्खातुकामा हि मयं भवन्तं गोतमान्ति, दी. नि. वत्थु कामकिलेसकामेसु अपेक्खारहितो विगतच्छन्दरागो 1.146; अनब्भक्खातुकामाति न अभूतेन वत्तुकामा, दी. नि. नित्तण्हो, जा. अट्ट, 1.146; ये ते, भन्ते, पुग्गला अस्सद्धा अट्ठ. 1.259. ... सामञ्ज अनपेक्खवन्तो ..., अ. नि. 2(1).184. अनब्माहतत्त नपुं॰, भाव. [अनभ्याहतत्व], अनुत्पीड़ित होने अनपेक्खी त्रि., अपेक्खी का निषे., तत्पु. [अनपेक्षिन]. की अवस्था, अपीड़ित होना, बाधा-रहित होना - उप्पादजराहि अपेक्षारहित, अनासक्त, निस्पृह, अतृष्णालु - सीहवेकचरं अनब्माहतत्ता अजज्जरं नेत्ति. अट्ट, 245. नागं, कामेसु अनपेक्खिनं, सु. नि. 168; स. नि. 1(1).19; अनमित त्रि., अभित का निषे०, 1. अनाहूत, अनामन्त्रित, तं ब्रूमि उपसन्तोति, कामेसु अनपेक्खिनं, सु. नि. 863; नहीं बुलाया गया - अनमितो ततो आगा, नानुजातो इतो For Private and Personal Use Only
SR No.020528
Book TitlePali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Panth and Others
PublisherNav Nalanda Mahavihar
Publication Year2007
Total Pages761
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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