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अनन्तवण्ण
195
अनपराध
302.
1.98.
अनन्तवण्ण त्रि., ब. स. [अनन्तवर्ण], अनन्त यश वाला, दृष्टियुक्त करना, चक्षुकरण, ज्ञानकरण - अनन्धकरणो अप्रमेय यश वाला, अपरिसीम कीर्ति वाला - अनन्तवण्णो । चक्खुकरणो आणकरणो, इतिवु. 60.. अमितयसो, विचित्तसब्बलक्खणो, अप. 1.352..
अनन्वय त्रि., अन्वय का निषे०, ब. स. [अनन्वय], अर्थ के अनन्तवन्तु त्रि., [अनन्तवत्], अनन्त, असीम, निस्सीम, साथ मेल न रखने वाला, तात्पर्य-रहित, बिना परिणाम का, सीमारहित - अनन्तवा लोको, इदमेव सच्चं मोघमञान्ति, प्रभावरहित - अनन्वयं पियं वाचं, यो मित्तेसु पकुब्बति, सु. उदा. 145; अन्तवा लोको ति वा, अनन्तवा लोकोति वा, दी. नि. 257; अनन्वयन्ति यं अत्थं दस्सामि, करिस्सामीति च नि. 1.167; अनन्तवा अत्ता च लोको चाति, पटि. म. 150; भासति, तेन अननुगतं. सु. नि. अट्ठ. 1.271. नेवन्तवा नानन्तवा लोकोति, मि. प. 146.
अनन्दाहतचेत (स) त्रि., ब. स. [अनन्वाहतचेतस], वह, अनन्तवीरिय त्रि., [अनन्तवीर्य]. असीमशक्ति से सम्पन्न, जिसका चित्त भ्रमग्रस्त नहीं है, वह, जिसका चित्त विभ्रान्त निस्सीम वीर्य वाला - सो भगवा असमो असमसमो ... या पर्याकुल नहीं है, द्वेष से अप्रतिहत चित्तवाला - अनन्ततेजो अनन्तवीरियो ... धम्मनगरं मापेसि, मि. प. अनवस्सुतचित्तस्स, अनन्वाहतचेतसो, ध. प. 39;
अनन्वाहतचेतसोति ... दोसेन अप्पटिहतचित्तस्साति अत्थो, अनन्तसञी त्रि., [अनन्तसंज्ञी], धर्मो में अनन्त की संज्ञा ध. प. अट्ठ. 1.176. रखने वाला, धमों को अन्तहीन मानने वाला -.. यथासमाहिते अनपगत त्रि., अपगत का निषे., तत्पु [अनपगत], दूर न गया चित्ते अनन्तसञ्जी लोकस्मि विहरामि, दी. नि. 1.20; ..... हुआ, दूर न ले जाया गया, अदूरीकृत, नहीं हटाया गया - लोको ति गहेत्वा... अनन्तसञ्जी होति .... दी. नि. अट्ठ. अनपायोति पटिघवसेन अनपगतो, म. नि. अट्ठ. (उप.प.)
3.61. अनन्तादीनव त्रि., ब. स. [अनन्तादीनव]. अन्त न होने अनपच्च त्रि., अपच्च का निषे., ब. स. [अनपत्य], पुत्ररहित, वाले दैन्यभावों से युक्त, अनन्त विपदाओं या संकटों से पूर्ण, सन्तानविहीन निस्सन्तान - अनपच्चा अदायादा, तालावत्थू अनन्त अनर्थों से परिपूर्ण - अनन्तादीनवो कायो, भवन्ति ते, स. नि. 1(1).86%; अनपच्चाति भवन्तरेपि अपच्चं विसरुक्खसमूपमो, अप. 2.115; अनन्तादीनवा कामा, बहुदुक्खा वा दायादं वा न लभन्तीति अत्थो, जा. अट्ठ. 5.266. महाविसा, थेरीगा. 360.
अनपदान त्रि., [अनपदान]. अपराध-सम्बन्धी विवेक की अनन्तेवासिक त्रि., अन्तेवासिक का निषे., ब. स. बुद्धि न रखने वाला, निर्धारित मार्ग का आश्रय न लेने [अनन्तेवासिक], शा. अ. अन्तेवासियों अर्थात शिष्यों से वाला - अनपदानो गिहिसंसट्ठो विहरति अननुलोमिकेहि विहीन उपाध्याय, ला. अ. आन्तरिक अपवित्र मनोभावों या गिहिसंसग्गेहि महाव. 419; बालो होति अब्यत्तो आपत्तिबहुलो क्लेशों से विनिर्मुक्त - अनन्तेवासिकमिदं ... ब्रह्मचरियं अनपदानो, महाव. 403. वुस्सति अनाचरियक, स. नि. 2(2).139; अनन्तेवासिकन्ति अनपदेस त्रि., अपदेश का निषे., तत्पु. [अनपदेश], अन्तो वसनककिलेसविरहितं. स. नि. अट्ठ. 3.46.
तर्करहित, निरर्थक, असंगत, अयुक्त, गहरे अर्थ से रहित - अनन्तोगध त्रि., ब. स. [अनन्तर्गत], वह, जो किसी में अनिधानवतिं वाचं ... अनपदेसं अपरियन्तवति अनत्थसंहितं, अन्तर्भूत नहीं है, बहिर्भूत - अनन्तोगधसम्पदानत्थत्ता, सद्द. म. नि. 1.360; अनपदेसन्ति सत्तापदेसविरहितं, म. नि. 1.294.
अट्ठ. (मू.प.) 1(2).227. अनन्दी त्रि., नन्दी का निषे. [अनन्दिन], आनन्दरहित, अनपनत त्रि., अपनत का निषे., तत्प. [अनपनत], वह, जो मोदरहित - अनन्दी अनघो भिक्ख एवं जानाहि आवसोति, झुका हुआ न हो, अविनत, अविनम्र, उद्दण्ड - अनपनतं स. नि. 1(1).66.
चित्तं ब्यापादे न इञ्जतीति आनेज, उदा. अट्ठ. 150; अनन्ध त्रि., अन्ध का निषे., तत्पु. [अनन्ध], वह, जो पाठा. अनुपनत. अन्धा नहीं है, दृष्टियुक्त, चक्षुष्मान, आंख वाला - यथाहं । अनपराध त्रि., अपराध का निषे., ब. स. [अनपराध]. इमम्हा आसना अनन्धो वुट्ठहेय्यन्ति, म. नि. 2.189; कामा निर्दोष, दोषरहित, अपराध-रहित, दोषमुक्त - अनपराधं नाम अनन्धम्पि अन्धं करोन्ति, उदा. अट्ठ. 297; अनन्धेन एव वीथियं चरन्तं गहेत्वा घातयितन्ति, मि. प. 180; असियन्ति अन्धेन विय भवितब्ब, मि. प. 333; - करण त्रि., [करण], अनपराधं, जा. अट्ठ. 5.213.
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