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अनत्थ
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अनद्धनीय/अनद्धनिक
अट्ठ. 1.363-364; - पुच्छक त्रि., [अनर्थपृच्छक], निरर्थक अनत्थुप्पादनं, पे. व. अट्ठ. 100. अथवा अनुपयोगी धर्मों या बातों को पूछने वाला - इमं अनत्थङ्गमित त्रि., अत्थङ्गमित का निषे. [अनस्तमित], नहीं धम्मदेसनं सत्था ... अनत्थपुच्छकं ब्राह्मणं आरभ कथेसि. डूबा हुआ, अस्त नहीं हो चुका, वह, जिसका अस्तङ्गमन न ध. प. अट्ठ. 1.372; - पुच्छकब्राह्मणवत्थु नपुं.. ध. प. हुआ हो - सूरिये अनत्थङ्गमितेयेव ..... ध. प. अट्ठ. 1.51; अट्ठ. के सहस्सवग्ग के चतुर्थ सुत्त का शीर्षक, ध. प. अट्ठ. पाठा. अनत्थङ्गत, अनत्थभित. 1.372-374; - युत्त त्रि., [अनर्थयुक्त], अनर्थ से भरा हुआ, अनत्थट/अनत्थत त्रि. [अनास्तृत], नहीं बिछाया हुआ, निरर्थक, अकल्याणकारक - अनत्थसहितन्ति अनत्थसंयुत्तं अनाच्छन्न, नहीं ढका हुआ, अनाच्छादित - एवं खो, भिक्खवे. दी. नि. अट्ठ. 3.72, तुल. अनत्थसंहित; - वा त्रि., प्र. वि., अत्थतं होति कथिनं, एवं अनत्थतं, महाव. 331; ए. व. [अनर्थवान्], निरर्थक, मूल्यहीन, विद्वेषी, हानिप्रद - अनन्तरहितायाति केनचि अत्थरणेन अनत्थताय म. नि. सुमित्तो च असम्बुद्ध, सम्बुद्ध वा अनत्थवा, जा. अट्ठ, 5.73; अट्ठ. (म.प.) 2.207. - वस त्रि., [अनर्थवश], अनर्थ अथवा पाप के प्रभाव से अनत्थारक त्रि., [अनास्तारक]. नहीं फैलानेवाला, नहीं प्रभावित, अनर्थ के अधीन - अनत्थवसमागतन्ति ... बिछानेवाला, वह भिक्षु, जिसने कठिन चीवर का ग्रहण अनत्थकारकानं किलेसानं वसं आगतं... जा. अट्ठ. 6.304; विनय-नियमों के अनुरूप नहीं किया है, - द्विन्न पुग्गलानं - वादी त्रि., [अनर्थवादिन], निरर्थक बातों को कहनेवाला अनत्थतं होति कथिनं- अनत्थारकस्स च अननुमोदकस्स - अकालवादी अभूतवादी अनत्थवादी अधम्मवादी च, परि. 326; द्रष्ट. आगे कठिन अत्थरण के अन्त; - टि.
अविनयवादी, म. नि. 1.360; अ. नि. 3(2).233; - संहित कठिनविधान के अवसर पर भिक्षु को अपने तीन चीवरों में त्रि., [अनर्थसंहित], अनर्थ से युक्त, अलाभकारी, निरर्थक, से कोई एक चीवर को फैलाने की घोषणा विधिवत करनी अनुपयोगी - यो चायं कामेसु कामसुखल्लिकानयोगो हीनो पड़ती है जिसे विनय में कठिनत्थरण कहते हैं, इस विधान .... अनरियो अनत्थसंहितो, महाव. 13; अनत्थसंहितोति न के अनुरूप सङ्घाटी आदि को ग्रहण न करने वाले भिक्षु को
अत्थसंहितो, हितसुखावहकारणं अनिस्सितोति अत्थो, स. 'अनत्थारक' कहलाता है. नि. अट्ठ. 3.327; अत्थसंहितं तथागता पुच्छन्ति, नो अनदी स्त्री., तत्पु. [अनदी], नदी से भिन्न, वह, जो नदी अनत्थसंहितं, महाव. 66; - सन्तान पु., [अनर्थसन्तान]. नहीं है - न तेन अनदी होति, जा. अट्ठ. 2.104. अहितकारी धर्मों की निरन्तरता; अकल्याणकारी धर्मों का अनद्दा-अनदायना-अनदायितत्तं स्त्री., तथा नपुं.. [तुल. सातत्य या अविच्छिन्नता - ताव तेन तेन आणेन तस्स अनादर], अनादर, असम्मान, तिरस्कार, अवमानना - यं तस्स अनत्थसन्तानस्स पहानं सु. नि. अट्ठ. 1.8; - त्थावह अनादरियं अनादरता अगारवता ... अनद्दा अनदायना त्रि, [अनर्थावह], हानि को लाने वाला, अपने हित अथवा अनदायितत्तं असील्यं अचित्तीकारो-इदं वुच्चति अनादरिय, कल्याण के लिये अनुपयोगी, अनर्थकारी, अकल्याणकारी - विभ. 432; अनद्दाति अनादियना, अनदायनाति .... पापं ... असुन्दरं अत्तनो परेसञ्च अनत्थावहं.... उदा. अनादियनाकारो, अनद्दाय अयितस्स भावो अनदायितत्तं विभ. अट्ठ. 259; - त्थावहनता स्त्री., भाव. [अनर्थावहनता]. अट्ठ. 471. अनर्थकारी या अनुपयोगी स्थिति में प्राप्त कराने की अवस्था अनद्धगू त्रि., [अनध्वग]. स्थलमार्ग पर न चलने वाला, या स्वभाव, अनर्थ को ले आने वाली वृत्ति - अनत्थावहनताय __ वायुमार्ग से गमन करने वाले अर्थात् देवगण - अनद्धगूनं वेरानुबन्धसपत्तसदिसत्ता सपत्ता, थेरीगा. अट्ठ. 267; - त्थिक अपि देवतानं, जा. अट्ठ. 5.14; या पदसा अद्धानं अगमनेन त्रि., [अनार्थिक], निराकार, कोई सरोकार या इच्छा नहीं अनद्धगूनं देवतानं इद्धि, जा. अट्ठ. 5.15. रखनेवाला, बहुत बड़ी मांग नहीं करनेवाला - भवेनम्हि अनद्धनीय/अनद्धनिक त्रि., [अनध्वनीय], वह, जो टिकाऊ अनत्थिको, थेरगा. 122; दुब्बला ते भविस्सन्ति, हिरीमना न हो, जो चिरकालिक न हो, क्षणिक, अध्रुव प्रभङ्गुर, - अनस्थिका, थेरगा. 956; न च अनत्थिको पत्तेन होति, म. सब्बेपि सङ्घारा ... तत्थ तत्थेव निरुज्झन्ति, तस्मा सब्बेपिमे नि. 2.347; तुल. अत्थिक'; - त्शुप्पादन नपुं., अनिच्चा ... अनद्धनिया ... निस्सारा, जा. अट्ट, 1.375; [अनर्थोत्पादन], अनर्थ, अहित तथा संकट का उत्पादन, तत्थ कुम्भूपमन्ति अबलदुब्बलटेन अनद्धनियतावकालिकट्ठन संकटमयी अवस्था - मित्तदुब्भोति मित्तेस दुब्भनं तेसं ..... ध. प. अट्ठ. 1.180.
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