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अनत्थ
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अनत्थ
अनिच्चानुपस्सनातिआदीहि चतुन्नं मग्गानं पुब्बभागविपस्सना वुत्ता, पटि. म. अट्ठ. 2.140; सु. नि. 1.143, द्रष्ट. अनुपस्सना एवं अनत्त; - त्तानुपस्सी त्रि., [अनात्मानुपश्यी], पांच स्कन्धों आदि में अनात्म की अनुपश्यना करने वाला - सब्बेसु धम्मेसु अनत्तानुपस्सी विहरति, अ. नि. 2(2).165; अनत्तानुपस्सीति अवसवत्तनाकारं अनत्ताति अनुपस्सन्तो, अ. नि. अट्ठ. 3.152; - तुक्कंसक त्रि., [अनात्मुत्कर्षक]. अपनी स्वयं की प्रशंसा न करने वाला, अपने विषय में बहुत बढ़-चढ़कर न बोलने वाला - न खो पनाहं अत्तुक्कसको ... अनत्तुक्कंसको, अपरवम्भीहमस्मि, म. नि. 1.25%;
अनत्तुक्कसका सब्बे, न ते वम्भेन्ति कस्सचि, अप. 1.16; - त्तुक्कंसना स्त्री., अपनी प्रशंसा न करना, अपने बारे में बढ-चढ़ कर न बोलना - अयञ्च सम्मादिट्टि .....
अनत्तुक्कंसना, अपरवम्भना, म. नि. 2.73. अनत्थ पु.. [अनर्थ], अलाभ, दुर्भाग्य, अकल्याण, विपत्ति, अवास्तविक, अनुपयोग, अहित, दुःख - यो अत्थं पुच्छितो सन्तो, अनत्थमनुसासति, सु. नि. 126; अनत्थमनुसासतीति तस्स अहितमेव आचिक्खति, सु. नि. अट्ठ. 1.43; बहुनो जनस्स अनत्थाय, अहिताय, दुक्खाय देवमनुस्सानं, चूळव.. 197; - क त्रि., ब. स. [अनर्थक], निरर्थक, बेकार, अनुपयोगी, हानिकर, विपत्ति लाने वाला - अनत्थपदसंहिता ... अनत्थकेहि पदेहि संहिता याव बहुका होति.... ध. प. अट्ठ. 1.363-64; - कारक त्रि., [अनर्थकारक], हानिकारक, अनर्थ करनेवाला, द्वेषभाव से परिपूर्ण, विद्वेषी - उपनाहीति परस्स अपराधं हदये ठपेत्वा सुचिरेनपि तस्स अनत्थकारको, जा. अट्ठ. 3.227; भिक्खवे, भण्डनकलहविग्गहविवादा नामेते अनत्थकारका, ध. प. अट्ठ. 1.35; - कारिता स्त्री., भाव. [अनर्थकारिता]. हानि करने की स्थिति या अवस्था - अनत्थताति अनत्थकारिता, दी. नि. अट्ठ. 3.118; - कुसल त्रि०, अत्थकुशल का निषे. [अनर्थकुशल]. कुशल कर्म करने में अनिपुण, हितसाधक कार्यों के सम्पादन में अकुशल, - अस्थि अनत्थकुसलो ... उपासिकानं तथारूपानि कुलानि सेवति भजति पयिरुपासति, अयं अनत्थकुसलो, खु. पा. अट्ठ. 192; -- लेन तृ. वि., ए. व. - ने वे अनत्थकुसलेन, अत्थचरिया सुखावहा, जा. अट्ठ. 1.244; अनत्थकुसलेनाति अनत्थे अनायतने कुसलेन, अत्थे आयतने कारणे असलेन वाति अत्थो, जा. अट्ठ. 1.244; - गहण नपुं.. [अनर्थग्रहण], अनर्थकारी धर्मों का ग्रहण या स्वीकरण - अविसेसतो पन ... अनत्थग्गहणतो ... आसीविससदिसता वेदितब्बा, स.
नि. अट्ठ. 3.58; - त्थङ्गते त्रि., सप्त. वि., ए. व. [अनस्तङ्गते], नहीं डूबा हुआ सूर्य, चन्द्र आदि, नहीं अस्त हो चुका सूर्य, चन्द्र - विसाखापुण्णमाय अनत्थङ्गतेयेव सूरिये..., उदा. अट्ठ, 26; - अनत्थङ्गतसूरिय त्रि., ब. स., वह, जहां अथवा जिस पर सूर्य अस्त नहीं हुआ है - अनावसूरन्ति न अवसूरं अनत्थङ्गतसूरियन्ति अत्थो, जा. अट्ठ. 5.49, तुल. अत्थ ;चर त्रि., [अनर्थचर], हित न करने वाला, अहितकारी, अनर्थसम्पादक - अनत्थचरो त्वं मझेति, मि. प. 131; योपि सुहदयो ... वा यो अनत्थवा अनत्थचरो, सोपि गुरह वेदित नारहते ति, जा. अट्ठ. 5.73; चत्तारिमानि, ... यानि वत्थूनि किच्चे जाते अनत्थचरानि भवन्ति, जा. अट्ठ. 5.429; - चरिया स्त्री., [अनर्थचर्या], अनुचित कार्य, असङ्गत या असमीचीन आचरण - तथागतस्स, ... कतेन ... अनत्थचरियाय वा असमानत्तताय वा .... मि. प. 159; - जनन त्रि., हानिप्रद, अनर्थोत्पादक, निरर्थक - अनत्थजननो लोभो, ... दोसो, ... मोहो..., इतिवु. 61; अ. नि. 2(2).234; - जाननक त्रि., [अनर्थज्ञ], अनर्थ, हानि अथवा अहित को जाननेवाला, अनर्थज्ञ - एवं खो, ब्राह्मण, अत्थानत्थजाननको नाम मया सदिसो नत्थी ति, ध. प. अट्ठ. 1.373; - ता स्त्री., अनत्थ का भाव. [अनर्थता], अनर्थमय स्थिति, बुरी अवस्था - उस्सूरसेय्या परदारसेवना, वेरप्पसवो, च अनत्थता च, दी. नि. 3.139; अनत्थताति अनत्थकारिता, दी. नि. अट्ठ. 3.118; - द त्रि., [अनर्थद], अकल्याणकारी, अहितकारी, अनर्थ को देनेवाला - अनत्थतो ति अनत्थदो, महाव. अट्ठ. 407; - दस्सी त्रि., [अनर्थदर्शी], अहितकारी परामर्श देने वाला, अहित की ओर ले जानेवाला, अकल्याणकारी सुझाव देनेवाला - पापं सहायं परिवज्जयेथ, अनत्थदस्सिं विसमे निविट्ठ सु. नि. 57; परेसम्पि अनत्थं दस्सेतीति अनत्थदस्सी, चूळनि. अट्ठ. 118; - निस्सित त्रि., [अनर्थनिश्रित]. अनर्थयुक्त, निरर्थक विषय से सम्बद्ध, वितण्डावाद अथवा लोकायतिकवाद - लोकायतिकन्ति अनत्थनिस्सितं सग्गमग्गानं अदायक अनिय्यानिक वितण्डसल्लापं लोकायतिकवादं न सेवेय्य, जा. अट्ठ. 7.181; - पदसंहित त्रि., [अनर्थपदसंहित], केवल निरर्थक शब्दों से युक्त, अर्थरहित पदों वाला - सहस्समपि चे वाचा, अनत्थपदसंहिता, ध. प. 100; -टि. आकाशवर्णन, वनवर्णन आदि के प्रकाशक या अभिव्यञ्जक पद मुक्ति या निर्वाण में सहायक न होने से अनर्थपद कहलाते है, अतः ऐसे पदों से युक्त वाणी को बुद्धवचनों में 'अनत्थपदसंहिता' कहा गया है, द्रष्ट.ध. प.
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