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अनक्कोस
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अनग्गिपक्क
अनक्कोस पु., अक्कोस का निषे. [अनाक्रोश], आक्रोश का अनगारिय/अनागारिय 1. नपुं.. [अनागारिक], प्रव्रजित
अभाव, अनिन्दा - अनक्कोसस्सिदं फलं, अप. 1.284. या गृहहीन, अनासक्त जीवन - अगारस्मा अनगारियं अनक्ख त्रि., अक्ख का निषे०, ब. स. [अनक्ष], जुआ न पब्बजन्ति, सु. नि. पृ. 98; पब्बजितोपि चे होति, अगारा खेलने वाला, पासों से न खेलने वाला - अनक्खाकितवे अनगारियं सु. नि. 276; ... अगारस्मा अनगारियं पब्बजितानं. तात, असोण्डे अविनासके, जा. अट्ठ. 5.111; अनक्खाकितवेति उदा. 80; 2. त्रि., बिना घर वाला, बेघर - अनगारियोपि अनक्खे अकितवे अजुतकरे चेव अकेराटिके च, जा. अट्ठ. इमस्मि सासने पब्बजित्वा ..., म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 5.113.
1(1).177; - पटिपत्ति-दुग्गति स्त्री, गृहविहीन या प्रव्रजितअनक्खात 1. त्रि., अक्खात का निषे. [अनाख्यात], नहीं जीवन में आया हुआ संकट या कष्ट - पटिपत्तिदुग्गतिपि कहा गया, अवर्णित, अनुद्घोषित - अनक्खातं कुसलं, म. अगारियपटिपत्ति-दुग्गति, अनगारियपटिपत्तिदुग्गतीति नि. 1.414; अनक्खातस्स मग्गस्स अक्खाता, स. नि. दुविधा होति, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).177; - भाव पु., 1(1).221; अनक्खातञ्च अक्खासि, अप. 2.240; 2. नपुं, गृहत्यागी प्रव्रजित-जीवन की अवस्था - घरावासं पहाय अनिर्वचनीय अवस्था अर्थात् निर्वाण - छन्दजातो अनक्खाते, अनागारियभावं पत्तस्स, जा. अट्ठ. 5.242; - मुनि पु.. ध. प. 218; अनक्खातेति निब्बाने, तहि ... अवत्तब्बताय गृहत्यागी या प्रव्रजित मुनि - अनगारियमुनीति तथारूपोव अनक्खातं नाम, ध. प. अट्ठ.2.169.
पब्बजितो, जा. अठ्ठ. 1.116, विलो. आगारियमुनि. अनगर पु./नपुं., नगर का निषे., ऐसा स्थान, जो नगर । अनगारियुपेत त्रि., गृहविहीन, प्रव्रजित जीवन-दशा को नहीं है, उजड़ा हुआ अथवा निर्जन स्थान - ... नगरं अनगरं प्राप्त किया हुआ भिक्षु या मुनि - अनगारियुपेतस्स, भिक्खाचरियं करिस्सामि, ध, प. अट्ठ. 2.371; ... नगरापि अनगरा होन्ति, जिगीसतो, सु. नि. 705; ... अनगारियु - पेतस्स, तुट्ठि अ. नि. 1(1).187.
होति सुखावहा, स. नि. 1(1).57; अनगारियुपेतस्स, अनगार/अनागार क. त्रि., ब. स., बेघर, बिना घर वाला विष्पमुत्तस्स ते सतो, जा. अट्ठ. 3.344. (परिव्राजक या मुनि का एक लक्षण) - योध कामे पहन्त्वान, अनगारी/अनागारी त्रि., उपरिवत् - अगारा अभिनिक्खम्म, अनागारो परिब्बजे, सु. नि. 644-645; ध. प. 415; अनागारा अनागारी भविस्सति, अप. 2.62. तपस्सिनो, जा. अठ्ठ. 6.119; असंसटुं गहडेहि, अनागारेहि अनगारूपनिस्सय पु., तत्पु. स., प्रव्रजित जीवन की मूलभूत चूभयं, सु. नि. 633; अलेणा अनगारा च, पे. व. 120; ख. आवश्यकताएं- उत्तिद्वपिण्डो उञ्छो च, पंसकूलञ्च चीवरं, नपुं., बेघर जीवर, गृहत्यागी जीवन - यो वा अगारा एतं खो मम सारुप्पं, अनगारूपनिस्सयो, थेरीगा. 351, अनगारमेति, सु. नि. 378; - मुनि पु., गृहत्यागी यति, द्रष्ट. उपनिस्सय, आगे. परिव्राजक - ... छ मुनिनो- अगारमुनिनो, अनगारमुनिनो, अनग्ग त्रि., ब. स. [अनग्र], 1. अनुत्तम, तुच्छ, 2. अपरिमित, सेखमुनिनो ..., महानि. 41.
वह, जिसका न आदि हो, न अन्त हो- तस्मिं ... अधिकरणे अनगारिक/अनागारिक त्रि., बेघर, प्रव्रजित, भिक्षुभाव को विनिच्छयमाने अनग्गानि चेव भस्सानि जायन्ति .... चूळव. प्राप्त, परिव्राजक -... आगारिकेनापि अनागारिकेनापि दीपेतब्ब 474; - पाक पु., एक मुनि या परिव्राजक का नाम - ध. स. अट्ठ, 398; ... अनगारिकस्स वेज्जकम्मदूतकम्मादीनि तस्सपि तेनेव कारणेन अनग्गपाकोति नामं जातं, वज्जेत्वा धम्मेन समेन भिक्खाचरियाय जीविकं कप्पेन्तस्स, अप्पमाणपाकोति अत्थो, अ. नि. अट्ठ. 1.195; - वती स्त्री., ध. प. अट्ठ. 1.136; - मित्त पु., गृहत्यागी मित्र, प्रव्रजित अनुत्तम प्रकार की या तुच्छ-प्रकृति के लोगों वाली सभा - मित्र - मित्ताति द्वे मित्ता- अगारिकमित्तो च अनागारिकमित्तो कतमा च, भिक्खवे, अनग्गवती परिसा?, अ. नि. 1(1).86. च, चूळनि. 218; - रतन नपुं., रत्न के समान गृहत्यागी अनग्गहीत त्रि., अग्गहीत का निषे., अपेक्षित चित्तवृत्ति के या प्रव्रजित - पुरिसरतनम्पि दुविध, अगारिकरतनं, साथ अगृहीत - चत्तञ्च मुत्तञ्च अनग्गहीत, अ. नि. अनगारिकरतनञ्च, खु. पा. अट्ठ. 141; - विभूसा स्त्री., 2(1).46, पाठा. अनुग्गहीतं. गृहत्यागी अथवा प्रवजित मुनि की साज-सज्जा या उपकरण अनग्गिपक्क त्रि., अग्गिपक्क का निषे. [अनग्निपक्व], - तत्थ विभूसा दुविधा, अगारिकविभूसा, अनगारिकविभूसा आग में न पका हुआ या कच्चा - दन्तमूसलिको हुत्वा च, सु. नि. अट्ट, 1.89.
अनग्गिपक्कमेव खादति, जा. अट्ठ. 4.8.
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