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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अतिपातो 111 अतिबहल सप्त. वि., ए. व. - दूरतोव ... असनं अतिपातेन्ते, स. नि. 3(2).513. अतिपातो निपा., [अतिप्रातः], बहुत सवेरे, अपेक्षाकृत बहुत । पहले - अतिपातोति कम्मं न करोति, दी. नि. 3.139, विलो. अतिसायं. अतिपासादिक त्रि.. [अतिप्रासादिकः], अत्यन्त प्रसन्न करनेवाला, अधिक श्रद्धा भर देनेवाला - पासादिको वतायं, भन्ते, धम्मपरियायो, अतिपासादिको ... धम्मपरियायो, दी. नि. 3.105; पाठा. सुपासादिको. अतिपीणित त्रि., [अतिप्रीण], अत्यधिक संतुष्ट, अत्यन्त प्रसन्न, अत्यन्त सुन्दर - अतिपीणितमेतं रूपं .... ध. प. अट्ठ. 1.42. अतिपीळित त्रि., [अतिपीड़ित], अत्यधिक पीड़ा से ग्रस्त, गंभीर रूप से कष्ट को प्राप्त - अतिगाळिताति पच्चत्थिकेहि अतिपीळिता विलुत्तसापतेय्या .... जा. अट्ठ. 5.397. अतिपुञता स्त्री॰, भाव. [अतिपुण्यता], पुण्यफलों की अधिकता, प्रचुरता या कुशलकर्मों को करने की मनोवृत्ति - राजा अतिपुञताय अधिपति .... मि. प. 259. अतिपुण्णत्त नपुं., भाव. [अतिपूर्णत्व], अत्यधिक परिपूर्णता, ऊपर तक भरपूर होने की स्थिति - पलिस्सुताहीति अतिपुण्णत्ता पग्घरमानेहि .... जा. अट्ठ. 7.225. अतिपूर पु.. [अतिपूर], अत्यन्त पूर्ण, अत्यधिक भरापन - अतिपूरेन नदी उत्तरति, मि. प. 258. अतिप्पगेव निपा., [अतिप्रागेव], बहुत जल्दी, भिनसारे, सबेरे-सबेरे - अतिप्पगेव आगतोसी ति आह, जा. अट्ठ 1.321; तुल. अतिप्पगो, पगेव तथा अतिप्पगा, पाठा. अतिप्पगोव. अतिप्पगो निपा., [बौ. सं. अतिप्रागः], सुबह, बहुत जल्दी, भिनसारे - अतिप्पगो खो ताव सावत्थियं पिण्डाय चरितुं दी. नि. 1.160; क. व्या. 36. अतिप्पदान नपुं.. [अतिप्रदान], अत्यधिक व्यय, फिजूलखर्ची, अपव्यय - तस्मा हि दाना धनमेव सेय्यो, अतिप्पदानेन कुला न होन्ति, पे. व. 300. अतिप्पमता स्त्री॰, भाव. [अतिप्रभात्व], अत्यधिक प्रभामयता, अतिशय प्रभास्वरता - सूरियो अतिप्पभताय तिमिरं घातेति. मि. प. 258. अतिप्पभेदगत त्रि., [अतिप्रभेदगत], अनेक भेदों-उपभेदों में प्रविभक्त - तिक्खस्स अतिप्पभेदगतं धम्मानुपस्सनासतिपट्टानं. म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).250. अतिप्पमाण त्रि., ब. स. [अतिप्रमाण], अतिशय विशाल - सब्बायसं कूटमतिप्पमाणं, जा. अट्ठ. 3.125. अतिप्पसङ्ग पु.. [अतिप्रसङ्ग], केवल व्याकरण के पारिभाषिक शब्द के रूप में ही प्रयुक्त, किसी व्याकरणीय विधान का अत्यन्त विस्तृत विनियोग - न चाति प्पसङ्गो योगविभागा इट्ठप्पसिद्धीति, मो. व्या. 1.55; 1.58. अतिप्पसत्थ त्रि., [अतिप्रशस्त], अत्यन्त प्रशंसनीय, अत्यन्त उत्तम, अतीव श्रेष्ठ - मासे जेट्ठोतिवुद्धातिप्पसत्थेसु च तीसु सो, अभि. प. 918. अतिप्पिय त्रि., [अतिप्रिय], अत्यधिक प्रिय, अधिक प्यारा - अयहि मेत्ता अप्पियपुग्गले, अतिप्पियसहायके, मज्झत्ते, वेरीपुग्गलेति इमेसु चतूसु पठमं न भावेतब्बा, विसुद्धि. 1.284. अतिफरुस त्रि., [अतिपरुष], अत्यन्त कर्कश, अतीव कठोर - त्वं मं कुण्ठसत्थकेन मुण्डेन्तो विय अतिफरुसं कथेसी ति, जा. अट्ठ. 3.325; - वचन नपुं., अत्यन्त कर्कश वचन, अत्यन्त कठोर वचन, अतिरुक्खवाचके के अन्त. द्रष्ट.. अतिफीत त्रि., [अतिस्फीत], अत्यन्त समृद्ध, अत्यन्त धनवान, अतीव धनाढ्य - पसूता नातिफीतम्हि, सालिं गोपेमहं तदा, अप. 2.223. अतिबद्ध त्रि., [अतिबद्ध], दृढ़ता के साथ बंधा हुआ, पंक्तिबद्ध - मय्हं बलिबद्दो अतिबद्धं सकटसतं पवट्टेतीति वत्वा ..., जा. अट्ट. 1.190; पाचि. 7. अतिबन्धित्वा अति + Vबन्ध का पू. का. कृ., पंक्ति में एक साथ बांधकर, दृढ़ता से बांधकर - सो ब्राह्मणो सकटसतं अतिबन्धित्वा .... पाचि. 7. अतिबल त्रि., ब. स. [अतिबल], अत्यन्त बलवान, अत्यन्त सुदृढ़ - मग्गेनेव अतिबलो सच्चनिक्कमो, जा. अट्ठ. 4.92; तं एतं अतिसाहसं अतिबलं नावारियं यो नरो, म. वं. 20.58; - ता स्त्री., अतिबल का भाव. [अतिबलता], अत्यधिक दृढ़ता, अतिशय शक्ति-सम्पन्नता - अच्चुग्गतातिबलता, अतिवेलं पभासिता .... जा. अट्ठ. 1.414. अतिबलवता स्त्री., [अतिबलवन्तता], अत्यधिक शक्तिसम्पन्नता - मल्लो अतिबलवताय पटिमल्लं खिप्पं उक्खिपति. मि. प. 258-259. अतिबहल त्रि., [अतिबहल]. अत्यन्त प्रगाढ़, बहुत गाढ़ा, अतीव सघन - कि भद्दे, अतिबहला यागूति, जा. अट्ट. 6.193; - लोट्ठकपोल त्रि., ब. स., अत्यन्त मोटे होठों और गालों वाला - अरे खुज्जे अतिबहलोडकपोलं ते मुखं, एवं नाम वदेही ति आह, ध. प. अट्ठ. 1.113. For Private and Personal Use Only
SR No.020528
Book TitlePali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Panth and Others
PublisherNav Nalanda Mahavihar
Publication Year2007
Total Pages761
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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