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अतिपातो
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अतिबहल
सप्त. वि., ए. व. - दूरतोव ... असनं अतिपातेन्ते, स. नि. 3(2).513. अतिपातो निपा., [अतिप्रातः], बहुत सवेरे, अपेक्षाकृत बहुत । पहले - अतिपातोति कम्मं न करोति, दी. नि. 3.139, विलो. अतिसायं. अतिपासादिक त्रि.. [अतिप्रासादिकः], अत्यन्त प्रसन्न करनेवाला, अधिक श्रद्धा भर देनेवाला - पासादिको वतायं, भन्ते, धम्मपरियायो, अतिपासादिको ... धम्मपरियायो, दी. नि. 3.105; पाठा. सुपासादिको. अतिपीणित त्रि., [अतिप्रीण], अत्यधिक संतुष्ट, अत्यन्त प्रसन्न, अत्यन्त सुन्दर - अतिपीणितमेतं रूपं .... ध. प. अट्ठ. 1.42. अतिपीळित त्रि., [अतिपीड़ित], अत्यधिक पीड़ा से ग्रस्त, गंभीर रूप से कष्ट को प्राप्त - अतिगाळिताति पच्चत्थिकेहि अतिपीळिता विलुत्तसापतेय्या .... जा. अट्ठ. 5.397. अतिपुञता स्त्री॰, भाव. [अतिपुण्यता], पुण्यफलों की अधिकता, प्रचुरता या कुशलकर्मों को करने की मनोवृत्ति - राजा अतिपुञताय अधिपति .... मि. प. 259. अतिपुण्णत्त नपुं., भाव. [अतिपूर्णत्व], अत्यधिक परिपूर्णता, ऊपर तक भरपूर होने की स्थिति - पलिस्सुताहीति अतिपुण्णत्ता पग्घरमानेहि .... जा. अट्ठ. 7.225. अतिपूर पु.. [अतिपूर], अत्यन्त पूर्ण, अत्यधिक भरापन -
अतिपूरेन नदी उत्तरति, मि. प. 258. अतिप्पगेव निपा., [अतिप्रागेव], बहुत जल्दी, भिनसारे, सबेरे-सबेरे - अतिप्पगेव आगतोसी ति आह, जा. अट्ठ 1.321; तुल. अतिप्पगो, पगेव तथा अतिप्पगा, पाठा. अतिप्पगोव. अतिप्पगो निपा., [बौ. सं. अतिप्रागः], सुबह, बहुत जल्दी, भिनसारे - अतिप्पगो खो ताव सावत्थियं पिण्डाय चरितुं दी. नि. 1.160; क. व्या. 36. अतिप्पदान नपुं.. [अतिप्रदान], अत्यधिक व्यय, फिजूलखर्ची, अपव्यय - तस्मा हि दाना धनमेव सेय्यो, अतिप्पदानेन कुला न होन्ति, पे. व. 300. अतिप्पमता स्त्री॰, भाव. [अतिप्रभात्व], अत्यधिक प्रभामयता, अतिशय प्रभास्वरता - सूरियो अतिप्पभताय तिमिरं घातेति. मि. प. 258. अतिप्पभेदगत त्रि., [अतिप्रभेदगत], अनेक भेदों-उपभेदों में प्रविभक्त - तिक्खस्स अतिप्पभेदगतं धम्मानुपस्सनासतिपट्टानं. म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).250.
अतिप्पमाण त्रि., ब. स. [अतिप्रमाण], अतिशय विशाल -
सब्बायसं कूटमतिप्पमाणं, जा. अट्ठ. 3.125. अतिप्पसङ्ग पु.. [अतिप्रसङ्ग], केवल व्याकरण के पारिभाषिक शब्द के रूप में ही प्रयुक्त, किसी व्याकरणीय विधान का अत्यन्त विस्तृत विनियोग - न चाति प्पसङ्गो योगविभागा इट्ठप्पसिद्धीति, मो. व्या. 1.55; 1.58. अतिप्पसत्थ त्रि., [अतिप्रशस्त], अत्यन्त प्रशंसनीय, अत्यन्त उत्तम, अतीव श्रेष्ठ - मासे जेट्ठोतिवुद्धातिप्पसत्थेसु च तीसु
सो, अभि. प. 918. अतिप्पिय त्रि., [अतिप्रिय], अत्यधिक प्रिय, अधिक प्यारा - अयहि मेत्ता अप्पियपुग्गले, अतिप्पियसहायके, मज्झत्ते, वेरीपुग्गलेति इमेसु चतूसु पठमं न भावेतब्बा, विसुद्धि. 1.284. अतिफरुस त्रि., [अतिपरुष], अत्यन्त कर्कश, अतीव कठोर - त्वं मं कुण्ठसत्थकेन मुण्डेन्तो विय अतिफरुसं कथेसी ति, जा. अट्ठ. 3.325; - वचन नपुं., अत्यन्त कर्कश वचन, अत्यन्त कठोर वचन, अतिरुक्खवाचके के अन्त. द्रष्ट.. अतिफीत त्रि., [अतिस्फीत], अत्यन्त समृद्ध, अत्यन्त धनवान, अतीव धनाढ्य - पसूता नातिफीतम्हि, सालिं गोपेमहं तदा, अप. 2.223. अतिबद्ध त्रि., [अतिबद्ध], दृढ़ता के साथ बंधा हुआ, पंक्तिबद्ध - मय्हं बलिबद्दो अतिबद्धं सकटसतं पवट्टेतीति वत्वा ..., जा. अट्ट. 1.190; पाचि. 7. अतिबन्धित्वा अति + Vबन्ध का पू. का. कृ., पंक्ति में एक साथ बांधकर, दृढ़ता से बांधकर - सो ब्राह्मणो सकटसतं
अतिबन्धित्वा .... पाचि. 7. अतिबल त्रि., ब. स. [अतिबल], अत्यन्त बलवान, अत्यन्त सुदृढ़ - मग्गेनेव अतिबलो सच्चनिक्कमो, जा. अट्ठ. 4.92; तं एतं अतिसाहसं अतिबलं नावारियं यो नरो, म. वं. 20.58; - ता स्त्री., अतिबल का भाव. [अतिबलता], अत्यधिक दृढ़ता, अतिशय शक्ति-सम्पन्नता - अच्चुग्गतातिबलता, अतिवेलं पभासिता .... जा. अट्ठ. 1.414. अतिबलवता स्त्री., [अतिबलवन्तता], अत्यधिक शक्तिसम्पन्नता - मल्लो अतिबलवताय पटिमल्लं खिप्पं उक्खिपति. मि. प. 258-259. अतिबहल त्रि., [अतिबहल]. अत्यन्त प्रगाढ़, बहुत गाढ़ा, अतीव सघन - कि भद्दे, अतिबहला यागूति, जा. अट्ट. 6.193; - लोट्ठकपोल त्रि., ब. स., अत्यन्त मोटे होठों और गालों वाला - अरे खुज्जे अतिबहलोडकपोलं ते मुखं, एवं नाम वदेही ति आह, ध. प. अट्ठ. 1.113.
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