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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अतिनिपात 110 अतिपातेति अतिनिज्झायितत्तन्ति मह नानाविधानि रूपानि अतिपण्डितमानिताय परेहि वुत्तं कप्पियम्पि "अकप्पियन्ति मनसिकरोन्तस्स नानत्तसञआ उदपादि, इढ वा अनिट्ठ वा वदेति, ध. प. अट्ठ. 2.301. एकजातिकमेव मनसि करिस्सामीति ..., म. नि. अट्ट. अतिपण्डितः पु., एक प्राचीन सौदागर का नाम - तस्स (उप.प.) 3.154. अतिपण्डितो ति नाम अहोसि, जा. अट्ठ. 1.387. अतिनिपात पु.. [अतिनिपात], दृढ़ आत्म-अवमानना, हीनता अतिपदाना नपुं., अति + प + दान, द्रष्ट. अतिप्पदान की बलवती मनोवृत्ति - मान, ओमान, अतिमानं, अधिमान, (आगे). थम्भं अतिनिपातं ..., अ. नि. 2(2).131; अतिनिपातन्ति अतिपपञ्च पु., कर्म. स. [अतिप्रपञ्च], अत्यधिक विस्तार, हीनस्स हीनोहमस्मी ति मानं, अ. नि. अट्ठ. 3.140. अत्यधिक सांसारिक उलझन - सरीरं आकडित्वा गन्धमालाजट अतिनिवास पु., [अतिनिवास], किसी स्थान पर बहुत छिन्दन्तस्स अतिप्पपञ्चो अहोसि, जा. अट्ठ. 1.74; इमस्मि अधिक समय तक निवास - पश्चिमे, भिक्खवे, आदीनवा पनेत्थ वित्थारीयमाने अतिपपञ्चो होति, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) अतिनिवासे, अ. नि. 2(1).238. 1(1).206. अतिनीच त्रि., [अतिनीच], बहुत अधिक निचला, अत्यधिक अतिपभाते अ., प्रातःकाल होने के बहुत बाद में - सो निम्न, बहुत घटिया - ... भवग्गं अतिनीचं तव दोसो अतिरत्तिं वा वस्सति अतिपभाते वा, जा. अट्ठ. 2.254. अतिमहन्तो..., जा. अट्ठ. 4.405; ... चतुरङ्गिनिया सेनाय अतिपरिच्चाग पु., अत्यधिक दान या परित्याग - नातिउच्च नातिनीचं उच्चरुक्खानं हेट्ठाभागेन ..., खु. पा. अतिपरिच्चागतो ओरमित्वा कम्मन्ते पयोजेन्तो कुटुम्ब अट्ठ. 140; - क त्रि., बहुत नीचा - ब्रह्मलोको अतिनीचकोति सण्ठापेहीति, ध. प. अट्ठ. 2.8. ओकासो नेसं न भवेय्य, ध. प. अट्ठ. 1.176; चक्कवाळ अतिपरिप्फन्दनभाव पु., मन में अत्यधिक चंचलता का अतिसम्बाधं, ब्रह्मलोको अतिनीचको, वि. व. अट्ठ. 53. भाव, चित्त की अशान्त वृत्ति -- सन्तवृत्ति विचारो अतिन्द्रिय त्रि., [अतीन्द्रिय], इन्द्रियों की पहुंच से बाहर नातिपरिप्फन्दनभावो चित्तस्स, ध. स. अट्ठ. 160. वाला, अप्रत्यक्ष - अपच्चक्खं मनिन्द्रियं, अभि. प. 716. अतिपरिसुद्धता स्त्री., भाव. [अतिपरिशुद्धता], अत्यधिक अतिपक्खित्तमज्ज त्रि., ब. स. [अतिप्रक्षिप्तमद्य], वह, जिसमें परिशुद्धि, अत्यधिक निर्मलता - पदुम अतिपरिसुद्धताय न अत्यधिक मादक-वस्तुएं डाली गयी हों - तेन खो पन उपलिम्पति वारिकद्दमेन, मि. प. 258. समयेन छब्बग्गिया भिक्खू अतिपक्खित्तमज्जानि तेलानि अतिपवरता स्त्री॰, भाव. [अतिप्रवरता], अत्यधिक सूक्ष्मता, पचन्ति, महाव. 280. उच्च गुण-सम्पन्नता - अतिपवरताय दिबं वनमूलं गहितम्पि अतिपग्गहित त्रि., [अतिप्रगृहीत], अत्यधिक दृढ़, दृढ़ प्रयास हत्थपासे ठितानं परजनानं न दस्सयति, मि. प. 258. से युक्त - इति मे वीरियं न च अतिलीनं भविस्सति, न च । अतिपस्सित्वा अति + vदिस का पू. का. कृ., यथार्थ रूप अतिपग्गहितं भविस्सति, स. नि. 3(2).337. में देख कर - रो नागं अभिरुहित्वा नागवनं पविसित्वा अतिपच्छा निपा., बहुत अधिक पीछे - अतिपच्छा निसिन्नो आरञ्जकं नागं अतिपस्सित्वा ओ नागस्स गीवायं सचे दबुकामो होति .... पारा. अट्ट, 1.94. उपनिबन्धति, म. नि. 3.173. अतिपणीत त्रि., [अतिप्रणीत], बहुत उत्तम, अत्यन्त उत्कृष्ट अतिपातेति अति + /पत का प्रेर., वर्त, प्र. पु., ए. व. - अच्चन्तसन्तं पण्डितवेदनीयं अतिपणीतं अमतं निब्बानं अतिपातयति], शा. अ. हिंसा करता है, प्राण विनष्ट विभावेन्तो, उदा. अट्ठ. 318. करता है - यो पाणमतिपातेति, मुसावादञ्च भासति, ध. प. अतिपण्डित' त्रि., व्यङ्ग्यात्मकरूप में प्रयुक्त [अतिपण्डित], 246; ला. अ. आड़े-तिरछे उड़वाता है, किसी वस्तु के बीच बहुत पटु, चालाक - तुम्हे खो, भन्ते नागसेन, अतिपण्डिता. में से वाण को आर-पार कराता अथवा वाण गिरवाता है - मि. प. 89; तुम्हे च खो, महाराज, अतिपण्डिता, मि. प. 903; तेय्य विधि., प्र. पु., ए. व. - दळहधम्मा धनुग्गहो सिक्खितो - ता स्त्री॰, भाव, अत्यधिक पटुता - त्वं अतिपण्डितताय कतहत्थो ... तिरियं तालच्छायं अतिपातेय्य, म. नि. 1.1163; अत्तनो गेहे पाकभत्तमूलम्पि न निष्फादेसी ति आह, ध. प. स. नि. 1(1).76; अ. नि. 1(2).55; - तेस्सन्ति भवि., प्र. अट्ठ. 1.266; - मानिता स्त्री., [अतिपण्डितमानित्व], पु., ब. व. - यत्र हि नाम दूरतोव सुखुमेन ताळच्छिग्गळेन अपने को महान पण्डित मानने की मनोवृत्ति - सो ..... असनं अतिपातेस्सन्ति, स. नि. 3(2).513; - तेन्ते वर्त. कृ., For Private and Personal Use Only
SR No.020528
Book TitlePali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Panth and Others
PublisherNav Nalanda Mahavihar
Publication Year2007
Total Pages761
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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