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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अड - " अडमासकोपिस्सा मूलं न होती ति भूमियं खिपित्वा जा.. अह. 1.119; इति तव अड्डमासको मम अनुमासकोति मासकोव होति, जा. अट्ठ. 3.394; त्वं अम्हाकं सतसहस्सग्घनिकं सुवण्णपातिं अड्ढमासग्घनिकम्पि न अकासि जा. अट्ठ. 1.119; मासिक' त्रि [अर्धमासिक ] आधे मासे की तौल वाला, रू. सि. 360; द्रष्ट. मो० व्या. 4.41; मुण्डक त्रि.. [ अर्धमुण्डक], दासता अथवा पराधीनतासूचक चिह्न के रूप में आधे मुड़े हुये सिर वाला, आधा मुड़ा हुआ - सत्त सतानि पुरिसे कारेत्वा अडमुण्डके, म. वं. 6.42:- योजन नपुं., [अर्द्धयोजन] आधे योजन की दूरी, आधा योजन आरक्खं वड्ढेत्वा सब्बदिसासु अड्ढयोजने अड्ढयोजने ठपेसि, जा. अ. 1.69: सकट तकेसि योजन तक्केसि अद्वयोजनं तक्केसीति, ध. स. अट्ठ 187, तत्थ गावुतप्यमाणा एका अनुयोजनप्यमाणा जा. अड्ड. 1.64 सेसजन आदाय गच्चा अनुयोजनमते ठाने ठत्वा आगताम्हाति सासनं पहिणि ध. प. अड. 1.220 योजनिक त्रि.. [अर्द्धयोजनिक ], अर्द्धयोजन विस्तार वाला - तेसु सङ्को गावुतिको, एलो अड्ढयोजनिको, उप्पलो तिगावुतिको पुण्डरीको योजनिको, दी. नि. अड्ड. 1.229 - रतनिक त्रि.. [अर्द्धरत्निक] आधा रत्न माप वाला अतिसम्बाधे चह्नमे वित्थारतो रतनिके वा अङ्करतनिके वा चङ्कमन्तस्स ... जा. अ. 1.10 रत पु.. [ अर्धरात्र]. आधी रात, अर्द्धनिशा, महानिशा निसीथो मज्झिमा रत्ति अड्ढरत्तो महानिसा, अभि. प. 70. एतेनुपायेन बद्धं बद्धं विज्झापेन्तस्सेवस्स अङ्करतो जातो, जा. अनु. 4.260 न त्वं राध विजानासि अङ्गरते अनागते, जा. अट्ठ 1.473 - स्त्तसमय पु०, [अर्द्धरात्रसमय], आधी रात का समय यो वा तदहुपोसथे पन्नरसे विद्वे विगतबलाहके देवे अभिदो अङ्करत्तसमयं म. नि. 2.235 सिद्धत्थकुमारो अज्ज अडरतसमये महाभिनिक्खमन निक्खमिस्सति जा. अनु. 1.70 रत्ति स्त्री. [ अर्धरात्रि ]. आधी रात समये आधी रात में अथेकदिवस कतञ्जताय चोदियमानो अनुरत्तिसमये एकमन्तं अद्वासि, वि. व. अ. 214 लाबुसम त्रि. [ अर्धलाबुसम]. आधी लौकी या कद्दू के समान पयोधरा अपतिता, अड्ढलाबुसमा थना, जा. अड. 5.150 विवट त्रि.. [ अर्धविवृत] आधा खुला हुआ सा द्वारं अड्ढविवटं कत्वा, जा० अट्ठ. 5.283; - सार त्रि. ब. स. [ अर्धसार] वह सिक्का, जो आधे मूल्य का हो अयं छेको, अयं कूटो, अयं अद्धसारो ति इमं पन विभागं न जानाति, विसुद्धि. 2.64 - सोळस त्रि., [अर्धषोडश ], - www.kobatirth.org - 98 अड्डुसुत्त साढ़े पन्द्रह ततो अडतेलसानं भिक्खुसतानं पटियत्तं अङ्कुसोळसन्नं पापुणिरसतीति सु. नि. अ. 2.152: द्वाहकमत्त त्रि. [अर्धाढकमात्र ]. केवल आधे आढक की माप वाला अड्डाहकमतं वीहिं लभित्वा कोट्टेत्या एक तण्डुलनाळिं गहेत्वा भूमिय निक्खणित्वा ठपेसि ध ू प. अट्ठ. 2.212; ड्डाळहकोदन नपुं०, [अर्धाढकोदन] आधे आढक माप वाला (चावल या भात) उक्कट्ठो नाम पत्तो अड्डाळ्हकोदनं गण्हाति चतुभागं खादनं तदुषियं व्यञ्जनं पारा 365. अढता हि अद्भुता स्त्री भाव [आयता ]. समृद्धता अनन्ता मे परलोके भविस्सति, सद्धम्मो 316. अड्डदुक / अङ्कुरुक पु. नपुं. व्यु, अनिश्चित, उदर पर केशों की कुछ कतारों को कतरने के बाद छोड़े गये केश - न अड्डदुकं कारापेतव्यं, चूळव. 256: अङ्खदुकन्ति उदरे लोमराजिठपनं, चूळव. अट्ठ. 54. अड्डमासकराजा पु०, गङ्गमाल जातक के नायक एक राजा का नाम सो अड्डमासकराजा नाम अहोसि जा. अह. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir — 3.396. अनुयोग पु. [ अर्धयोग]. शा. अ. आधा अधूरा निर्माण, ला. अ. केवल एक ओर से ही छाया गया भवन, विहार का एक प्रकार, गरुड़ के वक्र पंखों की आकृति के अनुकरण पर वक्राकृति में बना भवन, भिक्षुओं का ऐसा आवासीय भवन जिसकी छत एक ओर ढाल वाली हो, और जिसके दोनों ओर भित्तियां न हों सुपण्णवसदनमयोगो, अभि. प. 209, एकपस्से येव छदनतो अड्डेव योगो अड्डयोगो, गरुलस्स पक्खेन सदिसछदनगेहं अभि. प. सूची अतिरेकलाभो विहारो अनुयोगो पासादो हम्मियं गुहा महाव. 66: अनुयोगोति सुपण्णवङ्कगेह, चूळव. अड. 58. - अड्डवग्ग पु. पाँच जातकों वाले पञ्चक निपात के अन्तिम वर्ग का शीर्षक, जा. अट्ठ. 3.184-199. अनुवाद पु. अपने धनी होने के विषय में बढ़-चढ़कर डींग हांकना दलिदोव अयमायस्मा समानो अनुवाद वदेति, अ. नि. 3 ( 2 ) . 37; अड्डवादं वदेय्याति अड्ढोहमस्मीति वादं वदेय्य, 31. f. 31. 3.298. For Private and Personal Use Only अद्धसमवृत्त त्रि. [ अर्धसमवृत्त], छन्दों के ऐसे उपवर्ग का नाम जिनमें गाथा का प्रथम एवं तृतीय पाद तथा द्वितीय एवं चतुर्थ पाद सममात्रिक होते है, वुत्तो. 106 116. अड्ढसुत्त नपुं., स. नि. के दो सुत्तों का शीर्षक, स. नि. 3.465-466, पाठा. महद्धनसुत्त
SR No.020528
Book TitlePali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Panth and Others
PublisherNav Nalanda Mahavihar
Publication Year2007
Total Pages761
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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