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अट्ठकथिक
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अट्ठक्खुर अट्ठकथा लिखने वाले आचार्य - या प्र. वि., ए. व. - अट्ठकनिग्गहपेय्याला सन्धावनिया उपादाय .... कथा. अट्ठकथाचरिया पन ... वण्णयन्ति, सु. नि. अट्ठ. 1.20; 67. अट्ठकथाचरिया पनाहु, ध. स. अट्ठ. 168; विसुद्धि. 1.101; अट्ठकनिद्देस पु., पु. प. के आठवें परिच्छेद का शीर्षक, पु. म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).235; - कण्ड नपुं.. सारिपुत्र प. 185. द्वारा उपदिष्ट अर्थोद्धारपरक ध. स. के एक खण्ड का अट्ठकनिपात पु., अ. नि. के आठवें खण्ड या ग्रन्थ का शीर्षक, ध. स. 1384-1616; - ण्डं प्र. वि., ए. व. - कस्मा शीर्षक, अ. नि. 3(1).1-169. पनेतं अट्ठकथाकण्डं नाम जातन्ति? तेपिटकस्स बुद्धवचनस्स अट्ठकभत्त नपुं., आठ सलाकाओं द्वारा प्राप्त पिण्डपात या अत्थं उद्धरित्वा ठपितत्ता, ध, स. अट्ठ. 428; - ण्डेन तृ. भोजन - त्तं प्र. वि., ए. व. - सङ्घस्स अट्ठकभत्तं निबद्ध वि., ए. व. - तीसुपि हि पिटकेसु धम्मन्तरं आगतं दापेसि,ध. प. अट्ठ. 2.58; सिरिमाय अट्ठकभत्तं मे भुत्तं, वि. अट्ठकथाकण्डेनेव परिच्छिन्दित्वा .... ध. स. अट्ठ. 428; - व. अट्ठ. 60. कण्डवण्णना स्त्री., ध. स. के ऊपर निर्दिष्ट खण्ड का अट्ठकवग्ग पु., सु. नि. के चतुर्थ संग्रह का शीर्षक, सु. नि. वर्णन - अट्ठकथाकण्डवण्णना निहिता, ध. स. अट्ठ. 428- 772-981. 443; - गन्ध पु.. [अर्थकथा-ग्रन्थ], अट्ठकथाओं की पुस्तकें अट्ठकवग्गिक/अट्ठकवग्गिय त्रि., सु. नि. के अट्ठकवग्ग - न्धे द्वि. वि., ब. व. - बुद्धघोसो नाम थेरो सीहळदीपं नाम वाले चतुर्थ निपात के अन्त. आनेवाला - कानि नपुं., गन्त्वा सीहळभासाय लिखिते अट्ठकथागन्धे मागधभासाय द्वि. वि., ब. व. - आयस्मा सोणो भगवतो पटिस्सुणित्वा परिवत्तित्वा लिखि, सा. वं. 26; - नय पु.. [अर्थकथा-नय], सब्बानेव अट्ठकवग्गिकानि सरेन अभासि, महाव. 270; सोळस अट्ठकथाओं द्वारा अपनाई गई निर्वचन-पद्धति या व्याख्या- अट्ठकवग्गिकानि सब्बानेव सरभञ्जन अभणि ध. प. अट्ठ. प्रकार - येन तृ. वि., ए. व. - अट्ठकथानयेन यथानुरूप 2.340; - ये सप्त. वि., ए. व. - वुत्तमिद, भन्ते, भगवता वीमंसित्वा वेदितब्बा, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).42; अट्ठकवग्गिये मागण्डियपहे ..., स. नि. 2(1).9. पालिमुत्तकेन पन अट्ठकथानयेन अपरा पिछ पञत्तियो, पु. अट्ठकसिण नपुं, ध्यानभावना में सहायक पठवी, तेजो, आपो, प. अट्ठ. 26; - पाठ पु., अट्ठकथा में गृहीत या स्वीकृत एक वायो आदि दस कर्मस्थानों में आठ - णं प्र. वि., ए. व. - पाठ - ठो प्र. वि., ए. व. - पाळियं पन 'अगिद्धिमा ति ___अट्ठकसिणं सोळसक्खत्तुकं ध. स. 203. लिखितं, ततो अयं अट्ठकथापाठोव सुन्दरतरो, जा. अट्ठ. 2. अट्ठकहापण त्रि., ब. स. [अष्टकार्षापण], आठ कार्षापण 245; - मुत्तक त्रि., अट्ठकथाओं से सर्वथा स्वतन्त्र अन्य मूल्य वाला - अट्ठकहापणा दण्डोति, वि. व. अट्ठ. 61. आचार्यों द्वारा गृहीत व्याख्यानपद्धति - केन पु., तृ. वि., अट्ठकुटिक त्रि., ब. स. [अष्टकुटिक], आठ झोपड़ियों वाला ए. व. - अट्ठकथामुत्तकेन पन आचरियनयेन अपरा पि छ गांव - को पु., प्र. वि., ए. व. - अट्ठकटिको गामो, दी. नि. पञत्तियो, पु. प. अट्ठ. 27; - को पु., प्र. वि., ए. व. - अट्ठ. 1.252, पाठा. अट्ठङ्गिको. अयमेत्थ अट्ठकथामुत्तको एकस्स आचरियस्स मतिविनिच्छयो, अट्ठकोण त्रि., ब. स. [अष्टकोण], आठ कोनों वाला, ध. स. अट्ठ. 267.
अठपहल, अठकोना - णं द्वि. वि., ए. व. - गण्ठिकपट्टकञ्च अट्ठकथिक पु., अट्ठकथाओं का अध्ययन करने वाला अथवा पासक - पट्टञ्च अट्ठकोणम्पि सोळसकोणम्पि करोन्ति, पारा. उनमें रुचि रखने वाला, (प्रायः प्र. वि., ब. व. में प्रयुक्त) अट्ठ. 1.232. - जातकमाणका जातकं अट्ठकथिका अट्ठकथं ... साकच्छन्ति, अट्ठक्खणविनिम्मुत्त त्रि., आठ प्रकार के अक्षणों अथवा खु. पा. अट्ठ. 122.
दुर्गतियों से सर्वथा विमुक्त - त्तं नपुं.. प्र. वि., ए. व. - अट्ठकनागर पु., अट्ठक-नगर-निवासी, दसम-नामक गृहपति अट्ठक्खणविनिम्मुत्तं खणं परमदुल्लभं, सद्धम्मो. 4. का उपनाम - दसमो गहपति अट्ठकनागरो पाटलिपुत्तं अट्ठक्खत्तुं निपा., [अष्टकृत्वः], आठ बार - अट्ठक्खत्तुं अनुप्पत्तो, म. नि. 2.12; अ. नि. 3(2).308; - सुत्त नपुं.. नवक्खत्तुं दसक्खत्तुं एवमादयो अञपि सद्दा एवं योजेतब्बा, म. नि. के एक सुत का शीर्षक, म. नि. 2.12; अ. नि. 3(2).308. क. व्या. 648. अट्ठकनिग्गहपेय्याल पु., अठगुने खण्डनपरक सूत्रों का अट्ठक्खुर त्रि., ब. स. [अष्टखुर]. आठ खुरों वाला मृग, पुनरावृत्ति-परक समुच्चय या समूह - ला प्र. वि., ब. व. - एक-एक पैर में दो-दो खुरों वाला पशु - रं पु., वि. वि.,
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