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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अञ्ञाब्याकरण अज्ञब्याकरण नपुं. पांच प्रकार के व्याकरण (व्याख्यान). स्वयं द्वारा प्राप्त अर्हत्वावस्था की घोषणा या व्याख्यान णानि प्र. वि. ब. व. पञ्चिमानि भिक्खये अञ्ञाव्याकरणानि अ. नि. 2 (1).111: अज्ञाव्याकरणानीति अरहत्तव्याकरणानि अ. नि. अड. 3.41. अज्ञासिकोण्डज्ञ पु. अञ्ञाकोण्डञ्ञ के अन्त दृष्ट.. अञ्ञिन्द्रिय नपुं. कर्म. स. [बौ. सं. आज्ञेन्द्रिय], अर्हतअवस्था के ज्ञान द्वारा प्राप्त इन्द्रिय, अभिधर्म में निर्दिष्ट 22 इन्द्रियों में से एक यं प्र. वि., ए. व. तीणिन्द्रियानि अनञ्ञातञ्ञस्सामीतिन्द्रियं अञ्ञिन्द्रियं, अञ्ञतावीन्द्रियं दी. नि. 3.175; स. नि. 3 ( 2 ) . 280; इतिवु. 39; पु० प० 104; विभ. 137; नेत्ति 15; ध. स. 362. अञ्जुहिसिक त्रि [अन्योद्देश्यक]. दूसरों को उद्देश्य में रखकर प्रदत्त (वस्तु परिष्कार) केन पु. तृ. वि. ए. व. - अज्ञदत्धिकेन परिक्वारेन अञ्जुहिसिकेन सहिकेन अज्ञ चेतापेय्य निस्सग्गियं पाचित्तियं पाचि 340. अज्ञेय्य त्रि. आ + √ञ का सं. कृ. [आज्ञेय], अच्छी तरह से जानने योग्य, अर्हत के ज्ञान द्वारा साक्षात्करणीयय्यो " पु. प्र. वि. ए. व. कथं कथं नामायं भगवता धम्मो देसितो अय्यो अ. नि. 2(2) 62 : अज्ञेय्योति आजानितब्बो 31. f. 3. 3.116. अज्ञज्ञ त्रि. [ अन्योन्य], पारस्परिक परस्पर सापेक्ष उ नपुं. द्वि. वि. ए. व. न एक वदन्ति नाना वदन्ति विविधं वदन्ति अञ्ञञ्ञ वदन्ति, महानि० 214; पच्चयता अज्ञज्ञ पटिच्च यस्मा समं सह च धम्मे विसुद्धि. 2.150 निस्सित त्रि. [अन्योन्याश्रित] परस्पर एक दूसरे पर निर्भर - ता पु०, प्र. वि., ब. व. - सागारा अनगारा च, उभो अञ्ञञ्ञनिस्सिता, इतिवु. 79. अञ्हमान / अस्नमान त्रिअस का वर्त. कृ. आत्मने. भोजन कर रहा, उपभोग कर रहा, खा रहा - नो पु०, प्र० वि. ब. व. यदस्नमानो सुकतं सुनिद्वितं परेहि दिन्नं पयतं पणीत, सु. नि. 243; - ना प्र. वि., ए. व. धम्मेन लद्ध सतमस्नमाना, न कामकामा अलिकं भणन्ति सु नि. - - - - " - rid www.kobatirth.org - 242. अटट' नपुं., संख्या- विशेष, एक करोड़ की बारह गुनी अथवा दस लाख की बीस गुनी संख्या - अहह अबब वाटट सोगन्धिकुप्पलं अभि. प. 475; क. व्या. 397 रू. सि. 401, सद्द 3.833; 801; सेय्यथापि, भिक्खु, वीसति अटटा निरया एवमेको कुमुदो निरयो सु. नि. (पृ.) 182. 84 अटवी अटट' पु०, एक नरक का नाम टो प्र. वि. ए. व. सेय्यथापि, भिक्खु, वीसति अबबा निरया, एवमेको अटटो निरयो, स. नि. 1 (1). 178; अ. नि. 3(2).147. अटन नपुं, अट से व्यु. क्रि. ना. [अटन] घूमना, भ्रमण करना, धा. म. 525 का स्त्री. प्र. वि. ए. व. [अटनक]. इधर-उधर घूमने वाली / वाली घुमक्कड़, भगोड़ी चण्डा अटनका गावी ये पुरे न दुहामसे जा. अड. 5.100; अटनकाति पलायनसीला, तदे... अटनि स्त्री० [अनि ], मञ्च या पर्यङ्क का एक अङ्ग मञ्चावयव मञ्चङ्गे त्वटनित्थियं अभि. प. 309 निं द्वि. वि., ए. व. मञ्चकअटनि गहेत्वा निपज्जि, जा. अह. 2. 279 नियं सप्त वि. ए. व. तिखिणेन सत्येन तस्स मञ्चवाणं हेद्वाअटनियं तहं तहं छिन्दि, ध. प. अ. 1.133; नियो प्र. वि. ब. व. तथा चतस्सो अटनियो, ध. प. - " - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only - अट्ठ. 2.211. अटली स्त्री. एक प्रकार के जूते लियो प्र. वि. ब. व. अटलियो उपाहना आरुहित्वा म. नि. 2.369. पाठा. पटलियो अटलियोति गणणुपाहना म. नि. अट्ठ. (उप. प.) - - 3.289. " अटवी स्त्री. [अटवी]. क. बड़ा जङ्गल, बीहड़ जङ्गल, महारण्य अटवीत्थि महारज्ञ अभि. प. 536: अन्तरामणे च अमनुस्सपरिग्गहिता अटवी अत्थि, ध. प. अट्ठ. 1.9; - वियं सप्त वि., ए. व. अन्तो अटवियं चोरा मनुस्से विलुम्पित्वा पलायिंसु जा. अड्ड. 1.294 ख. ब. व. में वनदस्यु या जंगली डाकू के अर्थ में प्रयुक्त वियो प्र. वि., ब. य. अटदियो समुप्यन्ना रट्ठ विद्वंसयन्ति तं. जा. अह. 6.67, तत्थ अटवियोति अटविचोरा, जा. अट्ट. 6.68. - हि तृ. वि., ब.व. कुपितो अहु पच्चन्तो अटवीहि परन्तिहि चरिया 396: विगत त्रि.. [अटविगत ] वन में गया हुआ, वन में प्राप्त अटविगतं पोथेत्वा पठवियं पातनपच्चामित्तसदिसा जरा ध. स. अड्ड. 361 - विआरक्खिक पु. वनरक्षक अटविआरक्खकेसु सब्बजेको हुत्वा जा. अट्ठ. 2.278; चोर पु. [अटविचार]. वनदस्यु, वन का चोर, अटवी (ख) के अन्त, इष्ट विजनपद पु०, [अटविजनपद ], वन्य प्रदेश, जङ्गली जनपद या क्षेत्र दं द्वि. वि. ए. व. एक अटविजनपदं निस्साय अनेकसहस्सइसिपरिवारो वस्ति जा. अनु. 3.408 विमज्झ नपुं०, वन का मध्यभाग ज्झे सप्त वि. ए. व. अटविमज्झे पञ्चसता चोरा उट्ठहिंसु, जा० अट्ठ 2.278; - - - - - - - -
SR No.020528
Book TitlePali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Panth and Others
PublisherNav Nalanda Mahavihar
Publication Year2007
Total Pages761
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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