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अञ्जली
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अञ
किया गया सम्मान का भाव, सादर अभिवादन या नमस्कार - स्स ष. वि., ए. व. - अञ्जलिकम्मस्स अयमीदिसो विपाको, ध. प. अट्ठ. 1.21; - म्मं द्वि. वि., ए. व. - उभो हत्थे सिरस्मिं पतिद्वापेत्वा सब्बलोकेन कपिरमानं अञ्जलिकम्म अरहति, विसुद्धि. 1.212; ब्राह्मणमहासालानं ... अञ्जलिकम्म सादियेय्य, अ. नि. 2(2).260; - करणीय त्रि., [अञ्जलिकरणीय], हाथ जोड़कर सम्मान दिये जाने योग्य - यो पु., प्र. वि., ए. व. - भगवतो सावकसङ्घो आहुनेय्यो .... अञ्जलिकरणीयो, दी. नि. 2.74; म. नि. 1.48; अ. नि. 1(2).41, इतिवु. 64; अञ्जलिकम्म अरहतीति अञ्जलिकरणीयो, विसुद्धि. 1.212; - या ब. व. - सत्तिमे ... पुग्गला आहुनेय्या ... अञ्जलिकरणीया, अ. नि. 2(2).164; - का स्त्री., करतल, सम्मान में जुड़े हुए हाथ, करपुट, करसम्पुट - कं द्वि. वि., ए. व. - अभिवादयिं अञ्जलिकं अकासिं, वि. व.5; द्रष्ट. पञ्जलिका; - पग्गह त्रि., सम्मान प्रकट करने हेतु करसम्पुट को बांधने वाला, हाथ जोड़कर सम्मान को प्रकाशित करने वाला - हा पु., प्र. वि., ब. व. - अञ्जलिपग्गहा देवा पुप्फपुण्णघटा ततो, म. वं. 30.90; - पणाम पु., सम्मानपूर्वक प्रणति, सादर नमन, आदरयुक्त नमन - एको मनोपसादो,
सरणगमनमञ्जलिपणामो वा, मि. प. 228. अञ्जली स्त्री., एक भिक्षुणी का नाम, जो सङ्घमित्ता के साथ श्रीलङ्का गयी थी- महादेवी च पदुमा हेमासा च यसस्सिनी उन्नला अञ्जली सुमा, एता तदा भिक्खुनियो छळभिज्ञा महिद्धिका, दी. वं. 18.25(रो.). अञ्जस' त्रि., [अञ्जस], अकुटिल, सीधा, सरल, ईमानदार, सत्यवादी-संपु., द्वि. वि., ए. व. - यो अरियमनिकमञ्जसं उजु भावेति मग्गं अमतस्स पत्तिया, थेरगा. 35; सिक्खमाना अहं सन्ती, भावेन्ती मग्गमञ्जसं. थेरीगा. 99, असङ्घतं दुक्खनिरोधसस्सतं, मग्गञ्चिमं अकुटिलमञ्जसं सिवं, वि. व. 143; अञ्जसो निब्बानगामिनिपटिपदाभावतो अमतोगधो मग्गो अरियसच्चन्ति मं अवोचाति सम्बन्धो, वि. व. अट्ठ. 181. अञ्जस पु., [अञ्जस], सरल मार्ग, अकुटिल पथ - मग्गो पज्जो पथो पन्थो अजसं वटुमायनं, सु. नि. अट्ठ. 1.29; सुत्वान पटिपज्जिस्सं, अञ्जसं अमतोगधं, थेरगा. 179; असं ख्वाह, भिक्खवे, पुराणं मग्गं पुराणं अजसं पुब्बकेहि सम्मासम्बुद्धेहि अनुयातान्ति, मि. प. 205; - सा क्रि. वि. [अञ्जसा], ठीक तरह से, उचित रूप से, सरल मार्ग से - उजुमग्गस्सेतं वेवचनं अञ्जसा वा उजुकमेव एतेन
आयन्ति आगच्छन्तीति अञ्जसायनो, दी. नि. अट्ठ. 1.300; - सापरद्ध त्रि., सीधे मार्ग से लुप्त, सरल-पथ से भ्रष्ट -- द्धो पु., प्र. वि., ए. व. - विपथपक्खन्दो लोकसन्निवासो अञ्जसापरद्धो, पटि. म. 117; विपथपक्खन्दो अञ्जसापरद्धो महोघपक्खन्दो, उदा. अट्ठ. 114; - सायन पु., सीधा मार्ग, सरल पथ - नो प्र. वि., ए. व. - अञ्जसा वा उजुकमेव एतेन
आयन्ति आगच्छन्तीति अञ्जसायनो, दी. नि. अट्ट, 1.300. अञ्जस पु., एक चक्रवर्ती राजा का नाम - अञ्जसो नाम
खत्तियो, अप. 1.42. अञ्जापेसि अञ्ज, प्रेर. अद्य, प्र. पु., ए. व., अभ्यञ्जन
करवाया, किसी के द्वारा लेप करवाया - भद्दे, इमं भेसज्ज अजेही ति अज्जापेसिध. प. अट्ठ. 1.13. अजित त्रि०, अञ्जति का भू. क. कृ. [अक्त], अञ्जन से पोता हुआ, अञ्जन से लिप्त, अञ्जन लगाया हुआ - तानि नपुं.. वि. वि., ब. व. - सुअज्जितानि अक्खीनि हदयमसञ्च उब्बटेवा दिन्नं, जा. अट्ठ. 1.86; अजितक्खा मनोरमा,
जा. अट्ठ. 4.378. अञ' त्रि., [अन्य], 1. दूसरा, भिन्न, और, कोई और दूसरा, अपेक्षाकृत दूसरा, किसी एक से भिन्न, किसी अन्य की अपेक्षा असाधारण या नया - अं नपुं.. प्र. वि., ए. व. - इदमेव सच्चं मोघमझं, अ. नि. 3(2).164; अञदेव कायदण्डं, अझं वचीदण्ड, अझं मनोदण्डान्ति, म. नि. 2.39; अज्ञदेव उप्पज्जति अझं निरुज्झति, स. नि. 1(2).84; - जे पु.. प्र. वि., ब. व. - ये च सन्ति पाणिनो, सु. नि. 203; 2. वाक्य में पुनरावृत्ति होने पर विपरीत अर्थ का सूचक - अझं जीवं अझं सरीरं म. नि. 2.97; - ञा स्त्री., प्र. वि., ए. व. - अञआव सा भविस्सति अओ अत्ता, दी. नि. 1.166; - जो पु., प्र. वि., ए. व. - अज्ञो हि तिण्णस्स मनो, अओ होति पारेसिनो, जा. अट्ठ. 3.202; - खन्तिक त्रि., दूसरों की दृष्टियों या मतों पर मौन सहमति देने वाला, मतान्तरों के प्रति सहिष्णु - केन पु., तृ. वि., ए. व. - दुज्जानं खो एतं, पोट्टपाद, तया अज्ञदिद्विकेन अञखन्तिकेन ... अञत्राचरियकेन सञआपुरिसस्स अत्ताति, दी. नि. 1.166; - गतिक त्रि., दूसरों का आश्रय लेने वाला, परावलम्बी, पराश्रयी - का पु., प्र. वि., ब. व. - अत्तगतिकाव होथ, मा अजगतिका, स. नि. अट्ट. 3.235; - गोचर त्रि., [अन्यगोचर], अन्य आलम्बन को ज्ञान का विषय बनाने वाला, अन्यत्र विचरण करने वाला - रा पु., प्र. वि., ब. क. - मयं खो, काक,
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