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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अध्याय छः पद्मावती के नवनागों की धर्म-साधना Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६.१ अश्वमेध यज्ञ पद्मावती के शासक भारशिवों ने काशी में दस अश्वमेध यज्ञ करके उस स्थान का नाम ही दशाश्वमेध घाट रखा। यह मत डॉ० काशी प्रसाद जायसवाल ने अभिव्यक्त किया है किन्तु डॉ० दिनेशचन्द्र सरकार इसे एक विचित्र कल्पना मात्र मानते हैं । किन्तु वाकाटकों के दान सम्बन्धी ताम्रपट्ट का यह उल्लेख 'दशाश्वमेधवभृथ-स्नानम्' 'भारशिवानाम्' अर्थात् उन भारशिवों का, जिन्होंने दस अश्वमेध यज्ञ और उनके अन्त में अवभृथ स्नान किये थे यह सिद्ध करता है कि भारशिवों ने दस अश्वमेध यज्ञ किये थे । इसके साथ ही उन्होंने गंगा की पवित्रता को समझा था और उसे एक राजकीय चिह्न मान लिया था । गंगा को राजकीय चिह्न मानना और सिक्कों तथा मूर्तियों के द्वारा इसका प्रचार एक प्रकार से धर्म के द्वारा साम्राज्य के विकास की बात सिद्ध होती है । गंगा को अपने पराक्रम से प्राप्त करने वाले भारशिव राजा ही थे । शिशुनाग ने तो पूरी गंगा को प्राप्त कर लिया था किन्तु यह भी सच है कि नवनागों ने उसे प्रयाग तक प्राप्त कर लिया था । नागों के अश्वमेध यज्ञ के सम्बन्ध में साँची की पहाड़ी के दक्षिण में लगभग १२ फुट लम्बे विशालकाय एक पशु की मूर्ति पर अपनी दृष्टि केन्द्रित की जाये तो यह मूर्ति घोड़े की-सी प्रतीत होती है । इसके पास ही एक नाग राजा की भी मूर्ति है जो देखने में बड़ी मनोरम प्रतीत होती है । किन्तु इन मूर्तियों पर कोई अभिलेख नहीं है । इसके अतिरिक्त काशी में भी दो पत्थर के अश्व प्राप्त हुये थे । इनमें से एक नगवा में था और दूसरा लखनऊ संग्रहालय में चला गया है । ऐसा प्रतीत होता है कि साँची के पाषाणश्व का सम्बन्ध भी अश्वमेध से ही होगा । उक्त ताम्रलेख का उल्लेख भी विश्वशनीय प्रतीत होता है । अश्वमेध के सम्बन्ध में एक अन्य स्रोत से भी सूचना मिलती है । डॉ० हरिहर त्रिवेदी उनके कथन के अनुसार इस सिक्के पर एक ओर ने एक नाग- मुद्रा का प्रकाशन किया था। १. नागरी प्रचारिणी पत्रिका - सम्वत् १९८४, पृष्ठ २२६ । २. वही सम्वत् १६८५, पृष्ठ १ । ३. दी जर्नल ऑफ न्यूनिस्मैटिक सोसायटी ऑफ इण्डिया मार्च, For Private and Personal Use Only १९५३ ।
SR No.020523
Book TitlePadmavati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Sharma
PublisherMadhyapradesh Hingi Granth Academy
Publication Year1971
Total Pages147
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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