________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पद्मावती का वास्तु-शिल्प : ६७ अन्तर कोई साधारण अन्तर नहीं है । दोनों प्रकार के स्मारकों की तुलना करने पर यह युगान्तरकारी परिवर्तन सामने आ जाता है । किन्तु प्रकट प्रमाणों के अभाव में उन सभी विवरणों को प्रस्तुत नहीं किया जा सकता जो इस सम्बन्ध में अभी अनुमानित ही हैं । यदि उत्खनन का कार्य किया जाय तो इस तथ्य की पुष्टि विस्तारपूर्वक की जा सकती है।
प्राचीन काल से ले कर अर्वाचीन काल तक पद्मावती ने कला की दृष्टि से कई प्रकार के दिन देखे । नागवंशीय युग कला की दृष्टि से स्वर्ण युग था। इस युग में न केवल भव्यतम भवनों का ही निर्माण हुआ था अपितु मूर्तिकला की भी बहुत प्रगति हुई थी। मृण्मूर्तियों के अनेक प्रकार इस बात का प्रमाण हैं कि मूर्तिकला अपने उच्च शिखर पर पहुंच चुकी थी। भवनों और मन्दिरों की दीवारों को सजाने के अन्य उपकरणों के साथ मृण्मूर्तियों का भी आश्रय लिया जाता था। इतने ऊँचे-ऊँचे मकान बनते थे कि आज भी इनके विषय में कल्पना करके बड़ा कौतूहल होता है । पद्मावती में टकसाल थी, जहाँ सिक्के बना करते थे और जहाँ से अन्य स्थानों के व्यापारियों का आवागमन बना रहता था । वह एक ऐसा युग था जिसमें कला-कौशल की तो उन्नति हुई ही थी, पद्मावती में ज्ञान-विज्ञान की भी बहुत प्रगति हो चली थी। प्राचीनकालीन कला की तुलना में नवीन और बाद वाले कार्य अत्यन्त निम्न कोटि के प्रतीत होते हैं।
यद्यपि मुस्लिम बादशाहों में कला के प्रति बड़ी रुचि थी जिसका परिचय उन्होंने अन्य स्थानों पर दिया है, किन्तु पद्मावती में उन्होंने कोई ऐसा कार्य नहीं किया जिसकी प्रशंसा की जाय । इसका कारण यह है कि कालान्तर में पद्मावती का वैभव कम होने लगा था और यहाँ किसी प्रकार का ऐसा आर्कषण नहीं बचा था जिसके कारण बड़े-बड़े बादशाहों की दृष्टि इस नगर पर जाती। यद्यपि स्थिति की दृष्टि से पद्मावती आज भी आकर्षक प्रतीत होती है, नदियों का संगम और अन्य प्राकृतिक स्थल कुछ इस प्रकार के प्रतीत होते हैं कि आज तक यह बात समझ में नहीं आ पाती कि पद्मावती के पतन का क्या कारण रहा होगा। यदि देखा जाय तो जहाँ अन्य नगर जो नदियों के तट पर अथवा नदियों के संगम पर बसे हुए हैं आज भी वैसे ही बने रहे किन्तु पद्मावती का स्वरूप इतना विकृत हो गया कि आज इसके इतिहास की कड़ियाँ ही नहीं जुड़ पा रही हैं। आज इस बात की जानकारी भी बड़ी कठिन हो गयी है कि किन-किन शक्तियों ने इस पर शासन किया और उनका अपना क्या योगदान रहा, इस नगर के वैभव के दिन कैसे पलटे और किस प्रकार खण्डहरों में बदल गया । आज पद्मावती ही क्यों अनेक और भी संस्कृतियाँ बदल गयीं, प्राचीन वैभव चिह्न मिट गये और आज उनके विषय में बहुत कम जानकारी मिलती है । इस सम्बन्ध में एक बात तो सामान्य रूप से कही जा सकती है कि विजेता शक्तियों ने विजित शक्तियों के गौरव को मिटाने के अनेक प्रयोग किये । उनके इतिहास को मिटाने का प्रयत्न किया। यहां तक कि आधुनिक युग तक यह कार्य होता रहा और आज प्राचीन भारत की चर्मोत्कृष्ट वैभवशाली संस्कृति के अनेक अवशेष मिट्टी में मिल चुके हैं । पद्मावती भी इस विषय में अपवाद नहीं। आज उसके गौरव की स्मृति मात्र शेष है।
For Private and Personal Use Only