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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पद्मावती का वास्तु-शिल्प : ६५ तथ्यों पर प्रकाश पड़ता है। भूमरा भूतपूर्व नागोद राज्य के ऊचेहरा गाँव से बारह मील पश्चिम की ओर है। यहाँ एक प्राचीन शिव मन्दिर मिला है जो अब जर्जरित अवस्था में है । इस मन्दिर का नाम भाकुल शिव मन्दिर बताया गया है। भाकुल का अर्थ होता है भारशिव नागों के कुल देवता। इसके निकट ही दुरेहा नामक स्थान पर एक स्तम्भ मिला है जिस पर डॉ० जायसवाल ने 'वाकाटकानाम' पढ़ा था। इसके ऊपर एक चक्र बना हुआ है। यह चक्र हो सकता है विष्णु का सुदर्शन चक्र ही हो । भूमरा के दक्षिण में खोह नामक एक स्थान और है । इस स्थान पर एकमुख शिवलिंग की प्राप्ति हुई है, जो इसी युग का प्रतीत होता है । भूमरा से ही लगभग पन्द्रह मील की दूरी पर 'नचना' अथवा ऐतिहासिक चणक नामक एक स्थान और है जहाँ इसी युग का एक शिव मन्दिर मिला है और एक शिलालेख की प्राप्ति हुई है । इन अवशेषों से यही निष्कर्ष निकलता है कि यह स्थान भी पद्मावती के भारशिवों के अधिकार में रहा होगा। उसके बाद इसे वाकाटकों का संरक्षण मिला और अन्त में यह स्थान ही गुप्तों की राज्य सीमा बना होगा। ___ अब इस मन्दिर की रचना पर विचार किया जाय । इसमें एक गर्भगृह है जिसका क्षेत्रफल १४४ वर्गफुट है । यह वर्गाकार है । बीच में ६ फुट ऊँचा और ३ फुट व्यास का एक मुखलिंग स्थापित किया गया है । इसके मस्तक के तीसरे नेत्र और अलंकरणों की तुलना उदयगिरि की वीणा-गुहा के एक मुखलिंग के अलंकरण से की जा सकती है । गर्भगृह के चारों ओर प्रदक्षिणापथ बना हुआ है। इसके सामने एक सभामण्डप था जिसकी लम्बाई आठ फुट दो इंच और चौड़ाई पाँच फुट आठ इंच है। सभामण्डप के दोनों ओर दो छोटे-छोटे मन्दिर और बने हुए हैं। इस सम्बन्ध में जो बात विशेष महत्व की है, वह है, यहाँ के मन्दिर में ताड़-वृक्ष के तने के द्वार स्तम्भ । साथ ही ताड़-वृक्ष अन्य अलंकरणों में उपयोग में आया है। ताड़-वृक्ष का उपयोग केवल नागों द्वारा किया गया है अन्य कहीं भी इसका उपयोग नहीं मिलता। इस दृष्टि से निश्चय ही इन निर्माणों का सम्बन्ध नागों से किसी-न-किसी रूप में रहा होगा। इनके निर्माण का समय पद्मावती के अवशेषों के निर्माण के समय से मेल खाता है । इन अवशेषों में मूर्तियाँ भी मिली हैं। इनकी तुलना विदिशा में प्राप्त नागकालीन मूर्तियों से की जा सकती है । अतएव इनका निर्माण काल वही मानना होगा जो पद्मावती के अवशेषों का निर्धारित किया गया है। भारशिवों के साम्राज्य के विस्तार का स्पष्ट चित्र हमारे सामने नहीं है, फिर भी अवशेषों की समानता से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि पद्मावती के विष्णु-मन्दिर और भूमरा के शिव मन्दिर में एक कलागत समानता प्रतीत होती है। इसके अतिरिक्त राजगृह के निकट मणियार मठ में भी कुछ अवशेष मिले हैं, जिनके विषय में यह अनुमान लगाया जाता है कि ये नाग राजाओं के होंगे। यहाँ विष्णु, शिव और गणेश तीन देवताओं की मूर्तियाँ मिली हैं। पद्मावती के भारशिव भी विष्णु के उपासक थे, इस तथ्य को नहीं भुलाया जा सकता। इसके अतिरिक्त मणियार मठ में स्त्री-पुरुषों की कुल ऐसी मूर्तियाँ मिली हैं जिनके सिर पर नाग छत्र है । पद्मावती में भी इस प्रकार के नाग छत्र मिले हैं। इससे पद्मावती के नाग साम्राज्य की व्यापकता की एक झाँकी मिल जाती है। For Private and Personal Use Only
SR No.020523
Book TitlePadmavati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Sharma
PublisherMadhyapradesh Hingi Granth Academy
Publication Year1971
Total Pages147
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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