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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६४ : पद्मावती इस सम्बन्ध में जो सम्भावना अधिक उपयुक्त और युक्तिसंगत प्रतीत होती है वह यह है कि विजेता शक्ति के विजित शक्ति के प्रति धार्मिक अथवा वंशगत विद्वेश के कारण परवर्ती चबूतरे का निर्माण कराया गया हो। धार्मिक विद्वेशों में तो बौद्ध और हिन्दू धर्म के परस्पर विरोधी होने के प्रमाण मिलते हैं । किन्तु इस सम्भावना को अधिक प्रश्रय इसलिए नहीं मिल पा रहा है कि उत्खनन कार्य के समय बौद्ध धर्म के कोई अवशेष नहीं मिल पाये । यदि बौद्ध धर्म का अधिक प्रभाव पद्मावती पर रहा होता तो कुछ न कुछ अवशेष तो अवश्य ही मिलते । किन्तु ऐसा नहीं हुआ। इस कारण बौद्ध धर्म के विद्वेश का कारण उपस्थित नहीं होता। ऐतिहासिक साक्ष्यों के आधार पर एक तीसरी सम्भावना को अधिक प्रश्रय मिला है । पद्मावती पर नागवंश के बाद गुप्तवंश का शासन स्थापित हो गया था। समुद्रगुप्त ने पद्मावती पर अधिकार किया था। यह बात भी माननी होगी कि नागवंशीय कला गुप्तकालीन कला से कहीं श्रेष्ठतर और आकर्षक थी । गुप्त शासक सम्भवत: नागों की इस श्रेष्ठता को सहन न कर सके हों और उनकी श्रेष्ठता पर इस प्रकार पर्दा डाल दिया हो । यह भी सम्भव है कि यह कार्य समुद्रगुप्त के समय में न किया गया हो, कालान्तर में पूरा किया गया हो। इस मन्दिर के पास ही एक विष्णु-प्रतिमा की प्राप्ति हुई है और उसी के पास एक नाग राजा की मूर्ति भी मिली थी। इन समस्त अवशेषों से यह परिणाम निकाला गया है कि यह विष्णु मन्दिर पद्मावती के नाग राजाओं का था क्योंकि नाग शिव के उपासक तो थे ही विष्णु में भी उनकी अगाध श्रद्धा थी। इस मन्दिर का ऊपरी भाग किस प्रकार का बना हुआ था यह जानने के लिए हमारे पास आज कोई भी साधन नहीं है । परन्तु इसी मन्दिर के निकट लगभग १२ फुट लम्बा तोरण प्रस्तर प्राप्त हुआ है । इसके आधार पर यह सरलतापूर्वक कहा जा सकता है कि इन दोनों चबूतरों के ऊपर कोई मनोरम निर्माण रहा होगा जिसमें पत्थर और ईंटों के गर्भ-गृह प्रदक्षिणापथ बने हुए थे। पद्मावती के इस मन्दिर के पास ही अनेक मृण्मूर्तियाँ मिली हैं। इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि इन मूर्तियों का उपयोग विष्णु मन्दिर की दीवारों को सजाने के लिए किया जाता होगा । यहीं पर एक ऐसा स्तम्भ शीर्ष भी मिला है जो सम्भवतः मन्दिर के किसी प्रांगण में दबा पड़ा होगा । इसमें ताड़ वृक्ष की आकृति के साथ एक छोटा-सा नन्दी भी बना हुआ है । यह भी सम्भव है कि नाग राजाओं का यह राजचिह्न-युक्त-स्तम्भ इसी मन्दिर में स्थापित किया गया हो अथवा पास ही कहीं नागों की राजसभा हो, जिसे इस स्तम्भ के द्वारा सजाया जाता हो। पद्मावती का यह मन्दिर अपने मूल रूप में कैसा था यह अनुमान लगाना बड़ा कठिन है। इस प्रसंग में भूमरा के शिव मन्दिर का उल्लेख अधिक समीचीन प्रतीत होता है, जिससे पद्मावती के विष्णु मन्दिर के तत्कालीन स्वरूप पर कतिपय प्रकाश पड़ता है । ५.५ भूमरा का शिव मन्दिर पद्मावती के विष्णु मन्दिर की तुलना भूमरा के शिव मन्दिर से करने से कुछ नवीन For Private and Personal Use Only
SR No.020523
Book TitlePadmavati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Sharma
PublisherMadhyapradesh Hingi Granth Academy
Publication Year1971
Total Pages147
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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