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प्रस्तावना
प्राचीन भारत में पद्मावती एक अत्यन्त प्रसिद्ध नगर रहा है। महाकवि भवभूति के अनुसार यह नगर निर्मल जल वाली नदियों, विशाल राजप्रासाद, देवमन्दिर, नगर-द्वार आदि से सुशोभित था। इसके एक ओर सिन्धु नदी बहती थी और दूसरी ओर पारा । नगर के एक ओर जलप्रपात था । 'मालती-माधव' में इस नगरी का भव्य वर्णन उपलब्ध है । भवभूति से पूर्व बाण के 'हर्षचरित' में भी पद्मावती का उल्लेख है जिससे उसके प्रसिद्ध होने का संकेत मिलता है। 'सरस्वती कण्ठाभरण' में यद्यपि पद्मावती का उल्लेख नहीं है, किन्तु इसमें पारा नदी के किनारे एक विहार की चर्चा है और सिन्धु नदी, फणीपति-वन एवं उच्च गिरि का भी इसके निकट होना बतलाया गया है । खजुराहो से प्राप्त लगभग १००० ई० के शिलालेख में पद्मावती का जो वर्णन मिलता है, उससे स्पष्ट है कि इस समय यह नगर सब प्रकार से उन्नत एवं समृद्ध रहा होगा । पुराणों में भी पद्मावती का उल्लेख आया है । इससे अनुमान होता है कि समृद्धि एवं प्राचीनता दोनों दृष्टियों से पद्मावती की गणना महत्वपूर्ण प्राचीन ऐतिहासिक नगरों में की जा सकती है।
डॉ. मिराशी के अनुसार यह स्थान विदर्भ के भण्डारा जिला में है, किन्तु अनेक आधुनिक विद्वानों के मत से यह स्थान मध्य-रेलवे के डबरा स्टेशन से लगभग १३ मील की दूरी पर पुराने ग्वालियर राज्य के अन्तर्गत स्थित है । आजकल इसे पवाया कहते हैं । उत्खनन से भी इस स्थान पर महत्वपूर्ण सामग्री प्राप्त हुई है, जिससे लगभग अब यह मान लिया गया है कि पवाया ही प्राचीन पद्मावती है। इस स्थान से प्राप्त हुई सामग्री ग्वालियर संग्रहालय में भी संग्रहीत है।
मध्यप्रदेशीय प्राचीन नगर-माला के अन्तर्गत 'पद्मावती' का प्रकाशन इस अकादमी द्वारा किया जा रहा है । अन्य बातों के समान प्राचीन ऐतिहासिक अवशेषों की दृष्टि से भी मध्यप्रदेश अत्यन्त भाग्यशाली राज्य है । इसमें पद्मावती का स्थान इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि इसके साथ नवनागों से लेकर अनेक राजवंशों का इतिहास गुंथा हुआ है । पद्मावती के नवनाग, जिनका उल्लेख विष्णु-पुराण तक में मिलता है, सभी दृष्टियों से महत्वपूर्ण हैं ।
-सात
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