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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३० : पद्मावती (१) बंग की ओर उस राजा के विरुद्ध कोई संघ बना था, और उस संघ का उन्मूलन करने में उस राजा का यश सर्वज्ञात है। (२) सिन्धु पार करके उस राजा ने वाहीकों को परास्त किया था। (३) दक्षिण के समुद्र-तट तक उसकी कीर्ति फैली हुई थी। इन तीनों बातों को भवनाग के सन्दर्भ में समझा जा सकता है। भवनाग के संघ शासन के विपरीत ही लिच्छवि और गुप्त वंश का गठबंधन हुआ होगा, जिसका प्रभाव पद्मावती के शासन पर पड़ा, और वह नागों के यश-सौरभ की राजधानी गुप्तों के अधिकार में चली गयी। पूर्व में ही नहीं, उत्तर में सिन्धु नदी के पार भी नागों का पराक्रम छा गया था, और वाहीकों को पराजित करने के सम्बन्ध में भी इतिहासकारों ने लिखा है । ___ जहाँ तक दक्षिण के समुद्र तक कीति फैल जाने का प्रश्न है, उसे विन्ध्यशक्ति और उसके द्वारा संस्थापित वाकाटक साम्राज्य के सन्दर्भ में रख कर भली-भाँति समझा जा सकता है। भवनाग को पुत्री का विवाह-सम्बन्ध दक्षिण में हो गया था। परिणामस्वरूप नवनागों का प्रभुत्व दक्षिण तक फैल चुका था। साथ ही नवनागों का दक्षिण तक का साम्राज्य सुरक्षित हो गया था । उधर सुदूर कांची में पल्लवों के साथ नाग राजकुमारी का विवाह-सम्बन्ध जुड़ चुका था । ये राजा भव के करद माण्डलिक नहीं थे, परन्तु संघीय सूत्रों में उससे सम्बद्ध थे। तभी भवनाग ने अधिराज का विरुद धारण किया। इस लेख से भवनाग के शासन के कुछ अन्य पक्षों पर भी प्रकाश पड़ता है। सबसे प्रधान पक्ष है-उसकी विष्णु पूजा का । पद्मावती के विष्णु मन्दिर की प्राप्ति यह निर्णय करने में सरलता ला देती है, कि शिव के साथ ही नाग राजा विष्णु में भी आस्था रखते थे । पद्मावती में तो एक विष्णु मूर्ति भी प्राप्त हुई है । इस युग में शैव और वैष्णव एक-दूसरे से पृथक् नहीं थे, वरन् इन दोनों मतावलम्बियों में समन्वय की भावना दृढ़ हो गयी थी। भवनाग की मुद्राओं पर अर्द्धचन्द्र की आकृति शिव की उपासना की ओर संकेत करती है । उसके सिक्कों पर अंकित चक्र के विषय में यह सम्भावना उचित प्रतीत होती है, कि यह विष्णु का सुदर्शन चक्र ही होगा। पद्मावती में शासन करने वाले अन्तिम नाग राजा हैं-गणपति । इसे गणेन्द्र अथवा गणपेन्द्र नाम भी दिया गया है । वाम नन्दी, वाम सिंह एवं परिक्रमा के भीतर वृक्ष के चिह्न इसकी मुद्राओं पर अंकित मिले हैं । इसका विरुद ‘महाराज श्री' मिलता है । गणपति नाग के अनेक सिक्के प्राप्त हुए हैं । भवनाग तो महाराजाधिराज था, किन्तु गणपति नाग केवल 'अधिराज' रह गया। इसका कारण यह हो सकता है, कि अत्यन्त विशाल साम्राज्य की व्यवस्था न सम्हाल पाने के कारण उसने उन राज्यों को स्वतंत्र घोषित किया हो, और केवल शान्तिपूर्ण सहअस्तित्व की नीति का परिपालन किया हो । सम्भव है, उन पर नैतिक आधिपत्य मात्र बना रहा हो। For Private and Personal Use Only
SR No.020523
Book TitlePadmavati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Sharma
PublisherMadhyapradesh Hingi Granth Academy
Publication Year1971
Total Pages147
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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