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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पद्मावती की संस्थापना : २३ जैसा कि ऊपर संकेत किया जा चुका है डॉ० जायसवाल के मतानुसार पुराणों में भारशिवों को नवनाग कहा गया है । भूतनन्दी के समय से नाग वंश के राजाओं के नाम के आगे नन्दी शब्द जुड़ने लग गया था। नन्दी शिव के वाहन वृष का प्रतीकात्मक शब्द है। भागवत में भी नवनागों का उल्लेख मिलता है। किन्तु उसमें भूतनन्दी से लेकर प्रवीरक तक के शासक ही वणित हैं । यदि भागवत के उल्लेख को सही माना जाय तो नवनागों का अंतर्भाव प्रवीरक के शासन में ही हो जाता है। किन्तु विष्णु पुराण में 'नवनागाः पद्मवत्यां कांतिपुर्यां मथुरायां' का उल्लेख मिलता है । इससे दो निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं । पहला यह कि एक ही समय में नवनागों की तीन शाखाओं ने तीन स्थानों पर शासन किया यथा पद्मावती, कान्तिपुरी और मथुरा । एक दूसरी सम्भावना यह कि नवनागों ने पहले पद्मावती पर अपना शासन किया । उसके पश्चात् उनका शासन कान्तिपुरी पर हुआ और अन्त में मथुरा को अपने शासन का केन्द्र बनाया । पद्मावती में लगता है भूतनन्दी के वंशज राजा शिवनन्दी के समय तक और उसके बाद प्रायः ५० वर्ष तक नागों की राजधानी रही होगी। उसके पश्चात् पद्मावती पर कुषाण क्षत्रपों का आधिपत्य हो गया, जिसका उल्लेख ऊपर किया जा चुका है। पबाया में प्राप्त स्वर्णबिन्दु नामक शिवलिंग की खोज अत्यन्त महत्वपूर्ण है । फ्लीट ने गुप्तवंशीय शिलालेखों में एक ताम्रलेख का उल्लेख किया है। इसमें भारशिव राजाओं का इतिहास अत्यन्त संक्षिप्त रूप में वर्णित है । ताम्रलेख का पाठ इस प्रकार है : __“अंशभार सन्निवेशित शिवलिंगोद्वहन शिवसुपरितुष्ट समुत्पादित राजवंशानाम् पराक्रम अधिगत-भागीरथी-अमलजल मूर्द्धाभिषिक्तानाम् दशाश्वमेध-अवभृथस्नानाम् भारशिवानाम् ।" उपर्युक्त अभिलेख का तात्पर्य यह है कि "उन भारशिवों (के वंश) का, जिनके राजवंश का प्रारम्भ इस प्रकार हुआ था कि उन्होंने शिवलिंग को अपने कंधे पर वहन करके शिव को परितुष्ट किया था-वे भारशिव जिनका राज्याभिषेक उस भागीरथी के पवित्र जल से हुआ था, जिसे उन्होंने अपने पराक्रम से प्राप्त किया था-वे भारशिव जिन्होंने दस अश्वमेध यज्ञ करके अवभृथ स्नान किया था।" पवाया में प्राप्त शिवलिंग इस बात की पुष्टि कर देता है कि पद्मावती के शासक न केवल शिव के उपासक थे, अपितु, किसी राजा ने प्रारम्भ में शिवलिंग की स्थापना करते हुए ही पद्मावती को अपनी राजधानी बनाया था । मानवाकार नन्दी जो पवाया में मिला है, इसी तथ्य को प्रगट करता है कि शिव के उपासक शिव के वाहन नन्दी को भी अपनी इष्टपूजा का एक अंग समझते हैं। पुराणों में एक भारशिव राजा के नाम का उल्लेख इस प्रकार हुआ है । 'भारशिवोमेकेमहाराज श्री भवन्नाग' । इसका अर्थ है भारशिव वंश के राजाओं में एक अर्थात् महाराज श्री भवनाग । इससे न केवल भारशिव वंश की अपितु भारशिवों के नाग होने की भी पुष्टि होती है । भारशिव नाम तो शिव को धारण करने के कारण पड़ गया था। For Private and Personal Use Only
SR No.020523
Book TitlePadmavati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Sharma
PublisherMadhyapradesh Hingi Granth Academy
Publication Year1971
Total Pages147
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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