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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२ : पद्मावती - क्रम नाम लांछन विरुद चक्र श्री देवनागस्य देव ) देवेन्द्र प्रभाकर (पुंनाग) द० नंदी, वा० नंदी, द० सिंह, वा० सिंह, परशु, नंदी अधिराज या महाराज रविनाग भवनाग त्रिशूल, वा० नंदी, द० नंदी, वृत्त परिक्रमा में अर्द्धचन्द्र वृत्त सहित चन्द्र वा० नंदी वा० सिंह परिक्रमा के भीतर वृक्ष महाराज अधिराज श्री १३१. गणपति गणेन्द्र या गणेन्द्र महाराज श्री १. पद्मावती के नागों को नवनाग कहा गया है। ऊपर नागों की संख्या १३ गिनाई गई है। नव का एक अन्य अर्थ नौ भी है। किन्तु पुराणों में नागों अथवा गुप्त राजाओं की कोई संख्या नहीं दी है। अतएव पुराणों के 'नवनागाः पद्मावत्याम कांतिपुर्याम् मथुरायाम । अनुगंगा प्रयाग मागधा गुप्ताश्च भोक्ष्यंति' में गुप्तों के साथ मागधी विशेषण के रूप में आया है। इसी प्रकार नागों के साथ नव का प्रयोग विशेषण स्वरूप है । नव के अर्थ की दो संभावनायें रह जाती हैं : (१) पहली संभावना तो यह है कि विदिशा के नागों से भेद करने के लिये 'नये अथवा परवर्ती' नागों के अर्थ में इस शब्द का प्रयोग हुआ। शुंगों के पश्चात् ये विदिशा के नाग नवनाग बन गये थे। (२) एक दूसरी सम्भावना यह भी है कि यह नव किसी वंश विशेष का द्योतक हो जिसमें नवनाग नामक शासक भी रह चुका था। नागों का किसी वंश का नाम नव हो तो नव वंशीय नाग हो गये, अथवा यदि नव किसी राजा का नाम होगा तो नव राजा के वंश के नागों को भी नवनाग कहा जा सकता है। पुराणों में इसका कुछ भी स्पष्टीकरण नहीं मिलता है। प्रथम संभावना ही अधिक स्वाभाविक प्रतीत होती है जिसके पीछे इतिहास भी है। नव का अर्थ 'नवीन' 'परवर्ती' करना ही अधिक युक्तिसंगत प्रतीत होता है। For Private and Personal Use Only
SR No.020523
Book TitlePadmavati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Sharma
PublisherMadhyapradesh Hingi Granth Academy
Publication Year1971
Total Pages147
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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