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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पद्मावती को संस्थापना । १९ में प्रचुर सामग्री नहीं मिलती, जिसके आधार पर उनके विषय में विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया जा सके । प्रस्तुत साक्ष्य और नागकालीन सिक्कों पर विचार करने के पश्चात डॉ० जायसवाल ने नवनाग और वीरसेन के मध्य चार राजाओं का उल्लेख किया है । पहला हय. नाग जिसने तीस वर्ष या इससे कुछ अधिक समय तक राज्य किया, दूसरा चरजनाग जिसका शासन-काल भी तीस वर्ष अथवा इससे कुछ अधिक रहा, तीसरा बर्हिननाग जिसका शासनकाल तीस वर्ष तक रहा और चौथा त्रयनाग जिसके शासन काल की अवधि अभी तक ज्ञात नहीं हो सकी है । हयनाग के सिक्कों की लिपि को सबसे अधिक प्राचीन बताया गया है। उसके सिक्कों की लिपि वीरसेन के सिक्कों की लिपि से मेल खाती है। इस आधार पर हयनाग के शासन का समय २१० ई० के आस-पास ठहरता है। इन राजाओं के सिक्कों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इन पर समय भी दिया हुआ है और ताड़ का वृक्ष भी अंकित है । वीरसेन के शिलालेख में जो वृक्ष का चिह्न है वह भी इससे मिलता-जुलता है । भवनाग को तो प्रवरसेन का समकालीन ही बताया गया है। नवनागों के समय का निर्धारण भवनाग के समय के आधार पर किया जा सकता है । भवनाग का समय ३०० ई० निर्धारित होता है । यदि गणपति नाग के समय के अनुसार चलें तो गणपति नाग, भवनाग और विभुनाग का समय क्रमशः इस प्रकार दर्शाया जा सकता है : १--गणपतिनाग-ई० सन् ३४४-४५ तक विद्यमान रहा होगा। २-भवनाग-ई० सन् २६० के लगभग रहा होगा। ३-विभुनाग-ई० सन् ८०-६०। नागों के सिक्कों पर वृष, व्याघ्र और भीम के चिह्न कम मिलते हैं, तथा जो मिलते भी हैं वे अत्यन्त घिसे हुए हैं । इससे यह सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि वे शासक जिनके सिक्कों पर ये चिह्न हैं वे पूर्वकालीन होने चाहिये । विभु, देव तथा प्रभाकर के सिक्कों को तौल तथा आकार में एक जैसा बताया गया है । कुछ ऐसे सिक्के मिले जिन पर 'क' नाग तथा 'ख' नाग पढ़ा गया है । इन सभी को बसुनाग के सिक्के होना निश्चित किया गया है। डॉ० हरिहर त्रिवेदी ने एक सिक्के को श्रीप्रभ नामक किसी राजा का माना है। लगता है वह सिक्का प्रभाकर अथवा पुनाग का होना चाहिये। सिक्कों के आधार पर बसू और स्कंद नाग के समय को भी पास-पास का होना चाहिये , क्योंकि दोनों के सिक्कों पर एक समान लक्षण मिलते हैं । दोनों सिक्कों में दो रेखाएँ बनी हुई हैं । ये रेखाएँ किसी शस्त्र का ही प्रतीक हो सकती हैं । शस्त्र सम्भवतः वध होगा। ३.६ भारशिव जैसा कि नाम से ही प्रगट होता है भारशिव राजा शिव के भक्त थे । वे शिव को धारण करते थे । शिव उनके इष्टदेव तो थे ही, राजदेव भी थे। उनका राज्य हिन्दू सभ्यता और संस्कृति का राज्य था । इन्होंने हिंदू साम्राज्य की रचना और उसके गठन में पूरा-पूरा सहयोग दिया । भारशिवों के अवशेषों से भी यह बात स्पष्ट हो जाती है कि इन राजाओं को For Private and Personal Use Only
SR No.020523
Book TitlePadmavati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Sharma
PublisherMadhyapradesh Hingi Granth Academy
Publication Year1971
Total Pages147
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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