SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 36
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८ : पद्मावती वाहन, कुषाण और क्षहरात आते हैं । इसी बीच जब नागों को विदिशा का परित्याग करना पड़ा, तो उन्होंने पद्मावती पर स्वतन्त्र शासक के रूप में अथवा मांडलिकों के रूप में अधिकार जमा लिया था। पद्मावती उनके शासन का प्रधान केन्द्र बन गई थी। यह प्राचीन समय का अपने ढंग का एक केन्द्रीय सत्ता प्रधान राज्य था । समस्त विन्ध्य अंचल में वे गणों के रूप में शक्तिशाली बने रहे तथा पद्मावती उन गणों का एक केन्द्र बन गई। विदिशा से चले जाने के पश्चात नाग राजाओं ने अपने वंश के द्योतन के लिए केवल 'नाग' शब्द को पर्याप्त न समझा होगा। फिर नाग तो शुंगों से पराजित हो चुके थे, जिससे उनकी प्रतिष्ठा को ठेस लगी थी, अतएव पद्मावती में आकर ये नाग 'नवनाग' बन गये। तब इन्होंने पर्याप्त शक्ति अजित कर ली थी और केन्द्रीय सत्ता समर्थित गणराज्यों का संचालन करने लगे थे। पद्मावती को इन गणों का प्रमुख केन्द्र बनने का गौरव मिल गया था । पद्मावती में टकसाल थी और उनके सिक्के लाखों की संख्या में मिलते हैं जिनके आधार पर यह सहज ही कहा जा सकता है कि ये शासक बड़े योग्य और धनधान्य से सम्पन्न थे। इनकी सम्पन्नता का एक कारण यह भी था कि पद्मावती मुख्य मार्ग पर स्थित होने के कारण व्यापार का भी बड़ा भारी केन्द्र था । पुराणों में उनके विषय में बहुत अधिक सामग्री बिखरी पड़ी है । गणपति नाग के विषय में समुद्रगुप्त के इलाहाबाद वाले स्तम्भ से प्रचुर सामग्री प्राप्त हो जाती है। उनके विषय में सामग्री प्राप्त करने का एक अन्य स्रोत वाकाटकों का शिलालेख भी है, जिसके आधार पर यह निश्चित किया जाता है कि भवनाग की राजकुमारी का विवाह प्रवरसेन के राजकुमार गौतमी पुत्र के साथ हुआ था। पद्मावती पर जिन नागों ने राज्य किया उनमें से कई राजाओं की मूर्तियाँ विदिशा एवं पद्मावती में प्राप्त होती हैं। अन्य सिक्कों के अतिरिक्त डॉ० हरिहर त्रिवेदी ने एक ऐसे सिक्के का भी उल्लेख किया है जिस पर दुबारा नाम तथा लांछन ठोका गया है । इस सिक्के पर उन्होंने 'महत' या 'मपत' पढ़ा है। इसके विषय में कुछ निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता। 'महत' या 'मपत' नाम भाषा की दृष्टि से भारतीय तो लगता नहीं। क्योंकि किसी अर्थ से इसका सम्बन्ध नहीं जुड़ता है । सम्भावना इस बात की रह जाती है कि यह कुषाण सिक्का हो। इस सिक्के का आकार एवं तौल विभुनाग के सिक्कों से मिलता-जुलता है । विभुनाग के अपेक्षाकृत कम सिक्के प्राप्त हुए हैं, इससे ऐसा लगता है कि कुषाणों ने विभुनाग को जीत कर पद्मावती पर भी अपना आधिपत्य जमा लिया हो और विभुनाग के सिक्कों पर भी स्वयं का लांछन ठोक दिया हो। श्री हरिहर निवास द्विवेदी ने इस घटना का कार्यकाल ईसवी सन् ८० और ६० ई० के बीच निर्धारित किया है । विभुनाग के राज्यकाल की समाप्ति ८० और ६० ई० सन् के आस-पास ही हो गई होगी। डॉ० जायसवाल ने प्रवरसेन वाकाटक का राज्यकाल ई० सन् २८४ से ३४४ तक माना है । डॉ० अल्तेकर ने इसे २७५ से ३३५ तक माना है। भवनाग की राजकुमारी का विवाह ई० सन् २८० के लगभग हुआ होगा । पद्मावती के एक अन्य राजा के विषय में भी समय का अनुमान लगाया गया है। इसका उल्लेख समुद्रगुप्त के शिलालेख में मिलता है। भवनाग को भारशिव राजाओं में अन्तिम समझा जाता है। इन राजाओं के विषय For Private and Personal Use Only
SR No.020523
Book TitlePadmavati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Sharma
PublisherMadhyapradesh Hingi Granth Academy
Publication Year1971
Total Pages147
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy