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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पद्मावती : ५ पद्मावती नामक भव्य नगरी बसी हुई थी । इसके पश्चात श्री गर्दे ने उत्खनन का कार्य कराया और अब इस विषय में कोई शंका ही नहीं रह गई । पद्म-पवाया निश्चित रूप से पद्मावती का ही भग्नावशेष है । इसमें अब दो मत नहीं । १.५ पद्मावती सम्बन्धी जनश्रुति ऐतिहासिक अवशेषों के साथ-साथ श्री ग ने जन- परम्परा का भी साक्ष्य प्रस्तुत किया है, जो विचारणीय है । पवाया के निवासी अपने नगर को प्राचीन पद्मावती के रूप में पहचानते हैं । यह पीढ़ी दर पीढ़ी चली आई हुई बात है । नगरवासियों का यह विश्वास कि उनका नगर अति प्राचीन काल में किसी नागवंश की राजधानी रहा था, विचार करने योग्य है । इस सम्बन्ध में श्री मो० बा० गर्दे ने एक जनश्रुति का भी उल्लेख किया है । उनके अनुसार एक जनश्रुति में दो राजाओं का उल्लेख आता है । एक है धुन्दपाल, जिसे धन्यपाल भी कहा जाता है, और दूसरा है पुन्यपाल अथवा पुण्यपाल । इनमें से धुन्दपाल को पद्मावती का चक्रवर्ती सम्राट् कहा जाता है। एक समय की बात है राजा अपने न्यायालय में बैठा हुआ था। गर्मी का मौसम था । राजा को पसीना आ गया । क्रोध में राजा ने आदेश दिया कि सूर्य को पकड़ लिया जाए, क्योंकि परेशानी का कारण वही सिद्ध हो रहा था । उस समय अन्य देवी-देवताओं की उपासना के साथ सूर्य की उपासना भी प्रचलित रही होगी । राजा की इस अधार्मिक वृत्ति पर देवी, जो नगर देवी के नाम से जानी जाती थी, अप्रसन्न हो गईं । उसने शाप दिया कि नगर नष्ट हो जाये । परिणामतः नगर नष्ट हो गया । इस जनश्रुति से उक्त राजा के क्रोधी स्वभाव का ही परिचय मिलता है । इसमें उस राजा के वंश का उल्लेख नहीं किया गया है । यह बात तो सत्य है कि पद्मावती पर परमार वंश के राजाओं का राज्य रहा था । धुन्दपाल उस वंश का एक शक्तिशाली राजा था, जिसने किले का निर्माण कराया था । किन्तु वर्तमान किले के सम्बन्ध में यह सुना जाता है कि इसे नरवर के कछवाहा राजाओं ने बनवाया था। यह राजा दिल्ली सल्तनत का करदाता था । सकती । किन्तु प्राचीन इसे अस्वीकार भी नहीं । उक्त जनश्रुति में चाहे यह बात सही है कि जनश्रुति इतिहास का रूप नहीं ले इतिहास के किसी-न-किसी अंग पर जनश्रुति का प्रभाव पड़ता है, किया जा सकता । जनश्रुति का कुछ न कुछ तो आधार होता ही है और कोई बात सच न हो किन्तु यदि केवल इतनी ही बात सच हो कि पद्मावती पर कोई राजा राज्य करता था तो इससे आगे का मार्ग प्रशस्त हो जाता है एवं पद्मावती को किसी राज्य की राजधानी माना जा सकता है । केवल यह निश्चय करना शेष रह जाता है कि यह राज्य कौन सा था । १.६ वती : वाया - एक उल्लेख ऊपर इस बात पर तो विचार किया ही जा चुका है कि पदम पवाया में जो 'पदम' अंश है वह पद्मावती का स्मरण कराता है। श्री गर्दे ने इस परिवर्तन पर एक अन्य दृष्टिकोण से भी विचार किया है । उन्होंने वती के वाया में परिवर्तन को भी मान्यता दी है । इसी For Private and Personal Use Only
SR No.020523
Book TitlePadmavati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Sharma
PublisherMadhyapradesh Hingi Granth Academy
Publication Year1971
Total Pages147
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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