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पुराण
॥२॥
ऐसे मायामई तुरङ्ग जिनका वायु के समान तेज है और काली घटो समान मायामई गज चलायमान है घंग और सूंड जिनकी मायामई सिंह और बड़े २ बिमान उनकर मण्डित आकाश देखा उत्तर दिशा की ओर सेना के समूह देख राजा कीर्तिघवल ने क्रोध सहित हँसकर मन्त्रियों को युद्ध करनेकी आज्ञा दीनी तब श्रीकण्ठ लज्जा से नीचे होगए और श्रीकण्ठ ने कीर्तिधवल से कही कि मेरी स्त्री और मेरे कुटम्बकी तो रक्षा आपकरो और में आपके प्रताप से युद्धमें शत्रुओं को जीत पाऊंगा तब कीविधवल कहते भए कि यह बात तुमको कहनी अयुक्त है तुम सुख से तिष्ठो युद्ध करनेको हम बहुत हैं जो यह दुर्जन नरमी से शान्त होय तो भलाही है नहींतो इनको मृत्यु के मुखमें देखोगे असा कह अपने स्त्री के भाईको सुखसे अपने महलमें राख पुष्पोत्तरके निकट बड़ी बुद्धि और बड़े वय ( उमर ) के धारक दूत भेजे वय दूत जाय पुष्पोत्तर सो कहते भए कि हमारे मुखसे तुमको राजा कीर्तिधवल बहुत आदर से कहें है कि तुम बड़े कुल में उपजे हो तुम्हारी चेष्टा निर्मलहै तुम सर्व शास्त्रके बेता हो जगत् में प्रसिद्ध हो और सबमें वयकर बड़े हो तुमने जो मर्यादाकी रीति देखी है सो किसीने कानों से सुनी नहीं यह श्रीकण्ठ चन्द्रमाकी किरण समान निर्मल कुल में उपजा है, और धनवान है, विनयवान है, सुन्दर है, सर्व कलामें निपुण है, यह कन्या ऐसेही बरको देने योग्य है कन्या के और इसके रूप और कुल समान हैं इसलिये तुम्हारी हमारी सेनाका क्षय कौन अर्थ करावना, यह तो कन्याओं का स्वभावही है कि पराए
गृहका सेवन करें दूत जब तक यह बात कहही रहेथे कि पद्मामा की भेजी सखी पुष्पोत्तर के निकट आई | और कहती भई कि तुम्हारी पुत्री ने तुम्हारे चरणारविन्द को नमस्कार कर वीनती करी है कि मैं तो
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