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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - पदा है रूप जिसका स्वर्ग रत्नों के कलशों से स्त्री स्नान करावती भई कैसी हैं स्त्री कांति रूप चांदनीसे पुराण मंडित है शरीर जिनका चंद्रमा समान वदन और सुफेद ममियों के कलशों से स्नान करावें सो अद्भुत ज्योति भासती भई और कई एक स्त्री कमल समान कांति को घरें मानों सांझ फूलरही है और उगते सूर्य समान सुवर्ण के कलश तिनसे स्नान करावें सो मानों सांझ ही जल बरसे हैं और कई एक स्त्री हरित मणि के कलशो से स्नान कगवती अतिहर्ष की भरी शामें हैं मानों साक्षात् लक्ष्मी ही हैं कमल पत्र हैं कलशों के मुख और कैयक केलेके गोभ समान कोमल महासुगंध शरीर जिन पर । भ्रमर गंजार करे हैं वे नानाप्रकार के सुगन्ध उबटना से रावणको नाना प्रकार के रत्नों कर जड़ित सिंहा सन पर स्नान करावतो भई सो रावण ने स्नान कर आभषण पहिरे महा सावधान भावों कर पर्ण | शांतिनाथ के मन्दिर में गया वहां अरहन्तदेव की पूजा कर स्तुति करताभया बारम्बार नमस्कार करता । भया फिर भोजनशालामें आया चार प्रकारका उत्तम ग्राहार किया प्रशन पान स्वाद्य खाद्य फिर भोजन कर विद्याकी परख निमित्त कोड़ा भमि में गया वह्यं विद्यासे अनेक रूप किये नानाप्रकारके अद्भुत कम् विद्याधरों से बनें सो बहुरूपिणी विद्यासे कीए अपने हाथकी घात कर भूकम्पः किया राम के कटक में कपियोंको ऐसा भय उपजा मानो मृत्यु आई और रावणको मन्त्रो कहते भए हे नाथ तम टार राघवका जोतनहारा और नहीं राम महा योधा है और क्राधान होवें तब क्या कहना, सो उसके सन्मुख तुम ही प्रावो और कोई रणमें रामके सन्मुख भावनेको समर्थ नहीं । अथानन्तर रावणने बहुरूपिणी विद्या से मायामई कटक बनाया और आप उद्यान में जहां सीता - - For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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