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पन
काली घटा समान गम्भीर उदारहै शब्द जिसका ऐसा दशमुख सो लक्षमणसे ऊंचे स्वरकर कहताभया पुराण मानों ताडनाही करे है तेरा बल कहां जो मृत्युके कारण मेरे शस्त्र तू मेले तू औरों की ज्यों मुझे मत जाने ॥१११
हे दुर्बुद्धि लक्षमण जो मवा चाहे है तो मेरा यह शस्त्र झेल तब लक्षमणयद्यपि चिरकालका संग्राम कर अति खेद खिन्न भया है तथापि विभीषणको पीछेकर श्राप आगे होय रावणकी तरफ दौड़े तब रावणने महो क्रोधसे लक्षमणपर शक्ति चलाई कैसीहै शक्ति निकसे हैं तारावों के आकार स्फुलिंगावों के समूह जिससे सो लक्षमण का वक्षस्थल महा पर्वतके तट सपान उप्त शक्तिसे विदारागया कैसी है शक्ति मह दिव्य अति देपीप्यमान अमोघमोपा कहिए वृथा नहीं है लगना जिसका सो शक्ति लक्षमणके अंगसों लग कैसी सीहती भई मानो प्रेमकी भरी बधही है सो लक्षमण शक्तिके प्रहार कर पराधीन भयाहे शरीर जिसका सो भमि पर पड़ा जैसे वज्रका मारा पहाड़ परे सो उसे भूमि पर पड़ा देख श्रीराम कमल लोचन
शोकको दवाय शत्रुके घात करिने निमित्त उद्यमी भए सिंहोंके रथ चढे क्रोध के भरे शत्रुको तत्कालही । रथ रहित किया तब रावण और रथ चढ़ा तब रामने रावण का धनुष तोड़ा फिर रावण दूजा धनुष लेय।
तितने राम ने रावण का दूजा स्थभी तोड़ा सो राम के बाणों से विठ्ठल हुआ रावण धनुष वाण लेय असमर्थ भया तीब बाणों से राम रावण का रथ तोड़ डारें वह फिर रथ चढ़े सो अत्यन्त खेद खिन्नभया छेदाहै धनुष और वक्तर जिसका सो छहबार रामने स्थाहित किया तथापि रावण अद्भुतपराक्रम का धारी
राम कर हता न गया तब राम आश्चर्य पाय रावण से कहते भए तू अल्पायु नहीं कोईयक दिन आयुवाकी ।। है सो मेरे बाणों से न मूवा मेरी भुजाबोंसे चलाए बाण महातीक्षण तिनसे पहाढ़ भी भिद जाय मनुष्यों
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