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पुरा ५२०॥
ने अपनी विद्या से निवार इन्द्रजीतपर आशीविष जातिका नाग वाण चलाया सो. इन्द्रजीत नागवाण से अचेत होय भूमि में पड़ा जैसे भामण्डल पड़ाथा और रोमने कुम्भकरण को स्थ रहित किया फिर || कुम्भकरण ने सूर्यवाण रामपर चलाया सो रामने उसका वाण निराकरण कर नागवाणकर उसे बेद्रा सो कुम्भरणभी नागों का वेढा थका धरतीपर पड़ा । यह कथा गौतमगणधर राजा श्रेणिक से कहहैं हे श्रेणिक बड़ा आश्चर्य है वे नागवाण धनुषके लगे उल्कापात स्वरूप होय जाय हैं और शवोंके शरीरके लम नागरूपहोय उसको बेढे हैं यह दिव्य शस्त्र देवो पुनोत हैं मनअंछित रूप करे हैं. एक क्षणमें वाण एक क्षणमें दण्ड क्षण एक में पाररूप होय फरणवे हैं जैसे कर्म पाशकर जीव बंधे तैसे नागपाशकर कुम्भ करण बंधा सो राम की आज्ञापाय भामण्डलने अपने स्थमें राखा कुम्भकरणको समने भामण्डलके झाले किया और इन्द्रजीतको लक्ष्मणने पकड़ा सो विराधितके हवाले किया सो विराधितने अपने रथमें राखा खेद सिन्न है शरीर जिसका उस समय युद्धमें रावण विभीषण को कहताभया कि यदि त अापको योधा । माने है तो एक मेरा घाव सह जिससे रणकी खाजबुझे यह रावणने कही कैसा है विभीषण क्रोधकर रावण
के सन्मुख है ओर विकराल करी है. रणक्रीड़ा जिसने रावणने कोपकर विभीषणपर त्रिशूल चलाया कैसा | है त्रिशूल प्रज्वलित अग्निके स्फुलिंगोंकर प्रकाश किया है. आकाश में जिसने सो. त्रिशूल लक्षमणने
विभीषणतक श्रावने न दिया अपने वाणकर बीचही भस्मकिया तब रावण अपने त्रिशूलको भस्मकिया | देख अति क्रोधायमान भया और नागेंद्रकी दई शक्ति महा दारुण सो ग्रही और आगे देखे तो इन्दीवर | कहिये नीलकमल उस समान श्याम सुन्दर महा देदीप्यमान पुरुषोत्तम गरुडध्वज लक्षमण खड़े हैं तब
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