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पद्म पद्मव
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चलते पति के कट में दोनों भुजासे लिपट गई और हिंदती भई जैसे गजेन्द्र के कंड में कमलनी लटके ..और कोई एक रौताणी वक्तर पहिरे पति के अंगसे लग अंगका स्पर्श न पाया सो खेद खिन्न होतो भई और कोई एक अर्द्धबालिका कहिए पेटी सो बल्लभ के अंग से लगी देख ईर्षा के रससे स्पर्श करती भई कि हम टार इनके दूजी इनके उर से कौन लंगे यह जान लोचन संकोचे तब पतिप्रिया की प्रसन्न जान कहते हे प्रिये यह भाषा वक्तर है स्त्री वाची शब्द नहीं तत्र पुरुषका शब्दसुन हर्ष को भई कोई एक अपने पति को ताम्बूल चत्रावती भई और आप तांबूल चावती भई कोई एक पति aaaaaaa art तीक दर पतिके पीछे पीछे जातीभई पतिके रक्की अभिलाषा सो इनकी और freit नहीं और की मेरी बाजी सो योधावों को चित्त रणभूमि में और स्त्रियों से विदाहोना सो दोनों कारणपाय योघावोंका चित्त मानों हिंडोले हींदताभ्या शैतानियोंको तज रावत चले तिन रौतानियोंने आंसू न डारे प्रांसु अमंगल हैं और कैएक योधा युद्ध में जायचेकी शीघ्रताकर वक्तरभी न पहिर सके जो हथियार हाथ आया सोही लेकर गर्वके भरे निकसे रणभेरी खुन उपजा है हर्ष जिनकी शरीर पुष्ट होय गया सो वक्तर अंग में न आवे और कइएक योधावोंके रणभेरी का शब्दसुन हर्ष उपजा सो पुराने घाव फटगए तिनमेंसे रुधिर निकसताभया और किसीने नवा वक्तर बनाय पहिरा सो हर्ष के होने
टूटगया सो मानों नया वक्तर पुराने वक्तरके भावको प्राप्तभया और काहू के सिरका टोप ढीला होयगया सोना वल्लभा कर देती भई और कोईएक सुभट संग्राम का लालसी उसके स्त्री सुगन्ध लगा यत्रेकी अभिलाषा करती भई सो सुगन्धमें चिल न दिया युद्धको निकसा और वे स्त्रियां व्याकुलतारूप
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