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पद्म पुराण
म६६९ ।।
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अपनी २ सेजपर पड़रही प्रथमही लंका से हस्त प्रहस्त राजा युद्धको निकसे कैसे हैं दोनों सर्वं में मुख्य जो कीर्ति सोई भया अमृत उसके स्वाद में लालसी और हाथियों के रथ पर चढ़ नहीं सहस के हैं वैरियोंका शब्द और महा प्रताप के धारक शूरवीर सो रावणको विना पूछेही निकसे यद्यपि स्वामी की याज्ञा करी विना कार्य करना दोष है तथापि धनी के कार्य को बिना आज्ञा जायतो दोष नहीं गुण के भावको भजेहै मारीच सिंह जघन्य स्वयंभू शंभू प्रथम विस्तीर्ण बलसे मंडित शुक और सारस चांद सूर्य सारिखे गज और बीभत्स तथा वञ्चाच वज्रभूति गम्भीरनाद नक्र मकर वजघोष उग्रनाद सुन्दनिकुम्भकुंभ संध्याक्ष विभ्रमक्रूर माल्यवान खरनिश्चर जम्बूस्वामी शिखीवीर उर्दू के महा बल यह सामंत नाहरों के रथचढ़ निकसे और वजोदर शक्रप्रभ कृतान्त विगदोधर महामणि सण गोष चन्द्र चन्द्रनख मृत्युभीषण वज्रोदर धूम्रा मुदित विद्युज्ज महा मारीच कनक क्रोधनु क्षोभणबन्ध उद्दाम डिंडी डिंडम डिंभव प्रचंड डमर चंड कुंड हालाहल इत्यादि अनेक राजा व्याघ्रों के रथ चढ़े निकसे वह कहे मैं आगे रहूं वह कहे मैं आगे रहू शत्रु के विध्वंस करने को है प्रवृत बुद्धि जिनकी विद्या कौशिक विद्याविख्याक सर्पवाहू महाद्युति शंख प्रशंख राजभिन्न अंजनप्रभ पुष्पकर महारक्त घाश्र पुष्पखेचर अनंगकुसम कामवर्त्त स्मरागण कामाग्नि कामराशि. कनकप्रभ शशिमुख सौम्यवक्र महाकाम हैमगौर यह पवन सारिखे तेज़ तुरंगों के रथ चढ़े निकसे और कदंब विटप भीमनाद भयानाद भयानक शार्दूल सिंह वलांग विद्युदंग ल्हादन चपल चाल चंचल इत्यादि हाथियों के रथ चढ़े निकसे गौतम स्वामीराजा श्रेणिक से कहे हैं हे मगाधाधिपति कहां लग सामंतों के नाम कहें सब में अग्रेसर अढ़ाई कोड़ि निर्मलवंश के उपजे राक्षशों के कुमार
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