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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पद्म पुराण ॥६ बंशी और बानरबंशी इनमें कौनका क्षयहोय रामकी सैनामें पवनका पुत्र हनूमान महा भयंकर देदीप्यमान जो शूरता सोई भई उष्णकिरण उनसे सूर्य तुल्य है इस भांति केयक तो राम के पक्ष के योधाओंके यश वर्णन करते भए और कैयक समुद्रसेपी अतिगंभीर जो रावणकी सेना उसका वर्णन करतेभए और कैयक जो दगडक बनमें खरदूषणका और लक्षमणकायुद्धभयाथा उसका वर्णन करतेभए और कहते भए चन्द्रोदय का पुत्र विराधित सा है शरीर तुल्य जिनके ऐसे लक्ष्मण तिन्होंने खरदपण हता अति बल के स्वामी लक्षमण तिनका बल क्या तुमने न जाना कैयक ऐसे कहते भए और कैयक कहते भए किराम लक्षमण की क्या बात वे तो बड़े पुरुष हैं एक हनुमानने केते काम किये मन्दोदरीका तिरस्कार कर सीता को धीर्य बंधाया और रावणकी सेना जीत लंकामें विघ्न किया कोटदरवाजे. ढाहे इसमान्ति नाना प्रकारके वचन कहतेभए तब एक सुवक्रनामा विद्याधर हँसकर कहा भया कि कहां समुद्र समान रावण की सेना और कहां गाय के खोज समान बानखशियों काबल जो रावण इन्द्रको पकड़ लाया और सबों का जीतनहारा सो वानवंशियों से कैसे जीता जाय सर्व तेजस्वीयोंके सिस्परतिष्ठे है मनुष्योंमें चक्रवर्ति के नामको सुने कौन धीर्य धरे और जिसके भाई कुम्भकरण महादलवान त्रिशलका धारक युद्ध में प्रलय कालकी अग्निसमान भासे है सोजगत्में प्रल पराक्रम का धारक कोनसे जीताजाय चन्द्रमा २.मान | जिसके छत्रको देखकर शत्रुवोंकी सेना रूप अंधकार नाश को प्राप्त होय है सो उदोर लेजका धनी उसके आगे कौन ठहर सके जो जीतव्य की बांछा तजे सोही उसके सन्मुख होय इस भान्ति अनेक प्रकार के राग द्वेषरूप वचन सेनाके लोग परस्पर कहते भए दोनों सेना में नाना प्रकारकी वार्ता लोकों के मुख । For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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