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पद्म
पुराण
।।६४।
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एकर एकगज पांच पयादे तीनतुरंग इसका नामपत्ति और तीनस्थ तीनगज पंद्रह पयादे नव तुरंग इसको सेनाकहिये और नव रथ नव गज पैंतालीस पयादा सत्ताईस तुरंग इसे सेना मुख कहिये और संचाईस रथ सत्ताईस गज एक सौ पैंतीस पयादा इक्कासी अश्व इसे गुल्म कहिये और इक्यासीरथ इक्यासी गज चार से पांच पयारे दोसोतैंतालीस अश्व इसे वाहिनी कहिये और दोयसै तियालीस रथ दोयसौ तिया लीस गज बारासौ पंद्रह पया दे सात सौ उनतीस घोडे इसे प्रतिनाकहिये और सातसौ गुणनीय रथ सात गुणतीसगज छत्तीस पैंतालीसपयाद इक्कीस सौ सतासी तुरंग इसे चमू कहिये और इक्कीस सतासीरथ इक्कीससौ सत्यासीगज दसहजार नौसेपैंतीसपयादे और पैंसठसी इकसठ तुरंग इसे अनीकिनी कहिये सो पत्ति नतिक आठ भेदभऐ सोयहांलों तो तिगुने २ बढ़े और दश अनीकिनीकी एक चौहिणी हो उसका वरणन रथ इक्कीसहजार आठसौ सत्तर और गज इक्कीसहजार पाठ से सत्तर पियादे एकलाख नौहजार तीनसे पचास और घोड़े पैंसठहजार बैसोइस यह एक अक्षौहिणी का प्रमाणभया ऐसी चारहजार अचौहिंगी कर युक्त जो रावण उसे प्रति बलवान जानकर भी किह कन्धापुरके स्वामी सुग्रीवकी सेना श्रीराम के प्रसाद से निर्भय रावण के सन्मुख होती मई श्रीराम की सेनाको अतिनिकट आए हुए नाना पत्तको घरें जो लोक सो परस्पर इस भांति बार्ता करते भए देखो रावणरूप चन्द्रमा विमानरूप जे नक्षत्र तिनके समूहका स्वामी और शास्त्रमें प्रवीण सो पर स्त्री की इच्छारूप जे बादल तिनसे आवादितभया है जिसके महाकांतिकी घरणहारी अठारह हजार राणी तिनसे तो तृप्त न भया और देखो एक सीताके अर्थ शोक व्याप्त भयहि अब देखिये राचस |
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